कोरोना काल में अदालतों पर मुकदमों का बोझ और बढ़ा, 19 हजार कोर्ट में 5 हजार से ज्यादा जजों की कमी

कोरोना और इसकी वजह से हुए लॉकडाउन को साल भर से ज्यादा का समय बीत गया है. लेकिन एक बार फिर से कोरोना ने अपना विकराल रूप दिखाना शुरू कर दिया है. कोरोना के चलते देश की अदालतों में सुनवाई भी फिजिकल से वर्चुअल होने लगी. कहने को तो सुनवाई चल रही है न्याय भी मिल रहा है, लेकिन ये भी उतना ही सच है कि अदालतों पर मुकदमों का बोझ भी बढ़ रहा है.

नए मुकदमों की आमद और पुराने के निपटारे के बीच पिछले सालों के औसत के मुकाबले 19 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इस आंकड़े यानी 19 फीसदी के हिसाब से ये संख्या चार करोड़ चालीस लाख बैठती है. ये आंकड़े सिर्फ सुप्रीम कोर्ट या देश के 25 हाईकोर्ट के ही नहीं बल्कि इसमें पूरे देश के 19000 से भी ज्यादा जिला और सत्र अदालतों के मामले भी शामिल हैं.
सुप्रीम कोर्ट में जब लंबित मामलों के बोझ को कम करने के लिए एड हॉक यानी अस्थायी जजों की नियुक्ति का प्रस्ताव चीफ जस्टिस ने रखा तो केंद्र सरकार ने कई बातें कहते हुए उसमें उत्साह नहीं दिखाया. केंद्र सरकार के न्याय विभाग के आंकड़ों से ही खुलासा हुआ कि पिछले साल 2020 के मार्च में देश भर की अदालतों में 3 करोड़ 68 लाख मामले लंबित थे, वहीं अब इसी समय 4 करोड़ 31 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं. इन लंबित मामलों में 61 फीसदी तो ऐसे हैं जो करीब तीस सालों से लंबित ही हैं.
आंकड़ों के विस्तार में जाएं तो दिसंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट में 56994 मामले, तमाम हाई कोर्ट में 49 लाख 80 हजार और स्थानीय निचली अदालतों में 2.9 करोड़ मुकदमे लंबित थे. लेकिन सवा साल से भी कम समय की अवधि यानी मार्च 2020 में ये आंकड़ा बढ़कर सुप्रीम कोर्ट में 60603, हाई कोर्ट में 46 लाख 60 हजार और स्थानीय अदालतों में तीन करोड़ बीस लाख हो गया है.
ये स्थिति लॉकडाउन से पहले तक थी, अब लॉक डाउन लागू होने के बाद की बात करते हैं. जून 2020 में सुप्रीम कोर्ट के आंकड़े तो मामूली बढ़े यानी 60603 से 25 मुकदमें बढ़कर ये 60628 हो गये. हाईकोर्ट्स में करीब दो लाख की बढ़ोतरी के साथ आंकड़ा 48 लाख दस हजार तक आ गया. उसी अनुपात में निचली अदालतों में तीन करोड़ तीस लाख मुकदमे बढ़ गये.
जनवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट में पांच हजार मामले बढ़ कर 65086 और हाईकोर्ट्स में साढ़े आठ लाख मुकदमे नए दर्ज होकर 56 लाख साठ हजार हो गये. निचली अदालतों में भी 20 लाख की अनुपातिक वृद्धि दर्ज की गई. तीन महीने बाद अप्रैल 2021 में सुप्रीम कोर्ट में 67279, हाईकोर्ट्स में 57 लाख 50 हजार और निचली अदालतों में तीन करोड़ 80 लाख मुकदमे नए दर्ज किए गये. कानून और न्यायिक प्रणाली के जानकारों के मुताबिक, मुकदमों के बढ़ते बोझ के पीछे मौजूद कारणों में सबसे बड़ा तो अदालतों का आधुनिकीकरण ना हो पाना है. कई दशकों से ये प्रक्रिया चल रही है, लेकिन रफ्तार बहुत धीमी है. निचली अदालतों के कंप्यूटराइजेशन नहीं होने से डिजिटलीकरण नहीं हो पा रहा है. इसके अलावा वकील भी मुकदमा टलवाने के लिए प्रक्रिया में मौजूद खामियों को औजार के रूप में इस्तेमाल करते हैं. हमारी अदालतों में मुकदमे निपटाने या फैसला आने की मौजूदा रफ्तार के मुताबिक तो मुकदमों का बोझ निपटने में 324 साल लगेंगे.
इसके अलावा जजों की तादाद में कमी भी बड़ी वजह है. देश के सुप्रीम कोर्ट में जजों की तय संख्या से चार जज कम हैं. अप्रैल खत्म होने से पहले चीफ जस्टिस बोबडे के रिटायर होते ही ये संख्या पांच हो जाएगी. हाईकोर्ट्स में चार सौ जजों की कमी है. निचली अदालतों में मुकदमों को बोझ के अनुपात में ही जजों की कमी का आंकड़ा भी कदमताल कर रहा है. यानी देश की 19 हजार अदालतों में पांच हजार से ज्यादा जजों की कमी है.
अभी दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने खुलासा किया कि उच्च अदालतों में जजों की नियुक्ति को लेकर हाईकोर्ट्स कॉलेजियम से भी सिफारिशें उस अनुपात में नहीं आ रही हैं, जितनी वहां कमी है. साथ ही, जब सिफारिशें आती भी हैं तो विभिन्न जगहों पर वो अटकी रहती हैं. इसमें कभी सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम तो कभी केंद्र सरकार के न्याय विभाग में फाइलें महीनों ही नहीं बरसों अटकी रहती हैं.
हालांकि केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिया है कि आगे से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिशों पर सरकार तीन महीनों में फैसला ले लेगी. तो उम्मीद करें कि अब मुकदमों का बोझ जल्दी कम होगा.
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