साढ़े नौ लाख वर्ष पहले हुआ था देव के सूर्य मंदिर का निर्माण, जानिए इस मंदिर की खासियत के बारे में

मनीष कुमार, औरंगाबाद। जिले के देव में स्थित सूर्य मंदिर (Sun Temple of Dev) देश ही नहीं विदेशों में भी काफी प्रसिद्ध है।मान्‍यता के अनुसार यह करीब 9 लाख 49 हजार 128 वर्ष पहले बना था। मंदिर का निर्माण त्रेतायुग में किया गया था। हालांकि वास्तुकार इसका निर्माण काल गुप्तकालीन (Gupta Period) बताते हैं तो एएसआइ इसे पांचवीं से छठी शताब्दी के बीच का बताता है। निर्माण जब भी हुआ हो लेकिन यहां लोगों की आस्‍था असीम है। हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।

त्रेतायुग में इला के पुत्र एेल ने करवाया था सूर्य मंदिर का निर्माण
मंदिर के निर्माण से संबंधित शिलालेख मंदिर परिसर में प्रवेश द्वार पर दाहिने तरफ लगा है। शिलालेख के अनुसार माघ मास शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि गुरुवार को इला के पुत्र ऐल ने त्रेतायुग में मंदिर का निर्माण कराया था। त्रेतायुग के 12 लाख 16 हजार वर्ष बीत जाने के बाद सूर्यमंदिर का शिलान्यास किया गया था। शिलालेख के अनुसार त्रेतायुग 12 लाख 86 हजार वर्ष का होता है। इसमें 12 लाख 16 हजार वर्ष घटा देने के बाद 80 हजार वर्ष होता है। त्रेतायुग के बाद द्वापरयुग आया है। यह आठ लाख 64 हजार वर्ष का था। वर्तमान कलियुग के 6128 वर्ष बीत चुके हैं। इस प्रकार वर्तमान संवत 2078 को सूर्य मंदिर के बने करीब 9 लाख 49 हजार 128 वर्ष हो चुके हैं।
काले पत्थरों को तराशकर बनाए गए सूर्य मंदिर के हर पत्थरों पर नक्काशी व कलाकृतियां उकेरी गई है। ऐसी कलाकृति दक्षिण भारत के मंदिरों में देखी जाती है। मंदिर की बनावट उड़ीसा के मंदिरों से मिलती है। करीब एक सौ फीट ऊंचे सूर्य मंदिर के सबसे ऊपर कमल के आकार का बना गुंबद पर करीब पांच फीट लंबा सोने का कलश स्थापित किया गया है। मंदिर के निर्माण में सीमेंट का उपयोग नहीं किया गया है। हर पत्थर को लोहे की कील से जोड़कर मंदिर का निर्माण किया गया है। मंदिर के निर्माण में इस कदर संतुलन बनाया गया है कि हर पत्थर एक दूसरे से गुबंद तक जुड़े हैं।
भयानक भूकंप में भी मंदिर रहा सही-सलामत
कई बार भूकंप आने के बावजूद मंदिर का संतुलन नहीं गड़बड़ाया है। मंदिर का गुबंद इस तरह का बनाया गया है कि उसपर कोई चढ़ नहीं सकता है। गुंबद के नीचे से ही मंदिर की सजावट की जाती है। मंदिर के मुख्य पुजारी सच्चिदानंद पाठक बताते हैं कि मंदिर में विद्यमान तीन स्वरुपी भगवान सूर्य की प्रतिमा जीवंत है। प्रतिमा के सामने जो भी श्रद्धालु खड़े होकर जो मांगते हैं वह मिलता है। मंदिर परिसर में भगवान सूर्य के अलावा कई देवी देवताओं की प्रतिमा दर्शनीय और लाभकारी है। मंदिर बिहार की नहीं देश की पौराणिक विरासत है। इसे संरक्षित करना सरकार एवं सबका दायित्व है।
विश्‍व धरोहर (World Heritage) में शामिल करने की है जरूरत
देव का सूर्यमंदिर को विश्‍व विरासत में शामिल करने की जरूरत है। संरक्षण के अभाव में मंदिर का पत्थर टूटकर गिर रहा है। मंदिर के गर्भ गृह में मुख्य द्वार के बिंब में दरार आ गया है। प्रवेश द्वार के ऊपर पत्थर थोड़ा दरक गया है। जानकारों के अनुसार अगर एक भी पत्थर का संतुलन बिगड़ा तो मंदिर को काफी नुकसान हो सकता है। वर्तमान में मंदिर धार्मिक न्यास बोर्ड के अधीन है। बोर्ड के द्वारा मंदिर के रख रखाव एवं देख रेख के लिए मंदिर न्याय समिति का गठन कर उसके अधीन दिया गया है। सदर एसडीएम कमेटी के अध्यक्ष हैं।
केमिकल पेंट से मंदिर को नुकसान
बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष आचार्य किशोर कुणाल ने जब इस मंदिर का निरीक्षण किया था तब वे मंदिर परिसर में सीमेंट के बनाए गए देवी मंदिर के अलावा अन्य स्ट्रक्चर का विरोध किया था। मंदिर के पत्थर पर किए गए केमिकल पेंट को भी मंदिर के लिए नुकसान बताया था। हालांकि पूर्व अध्यक्ष के आदेश पर आजतक अमल नहीं किया गया है। वर्तमान में मंदिर की सुरक्षा को लेकर पत्थरों में किसी भी तरह का कील गाड़ने पर कमेटी के द्वारा प्रतिबंध लगाया गया है।
हर वर्ष 18 लाख से अधिक पहुंचते है श्रद्धालु व पर्यटक
देव सूर्यमंदिर को देखने और दर्शन करने हर वर्ष 20 लाख से अधिक श्रद्धालु और पर्यटक पहुंचते हैं। हालांकि कोरोना के संक्रमण के कारण पिछले वर्ष से श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों की संख्या में काफी कमी आई है। कोरोना संक्रमण के पूर्व यहां कार्तिक एवं चैत्र मास में लगने वाला छठ मेला में देश के कोने कोने से करीब 15 से 18 लाख श्रद्धालु आते थे। यह मंदिर नई दिल्ली से कोलकाता को जाने वाली जीटी रोड अब एशियन हाइवे वन से करीब 6 किमी हटकर है जिसकारण इस हाइवे से आवागमन करने वाले श्रद्धालु एवं पर्यटक यहां पहुंचते हैं।

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