सहनशीलता का पैगाम देता है माह-ए-रमजान

संवाद सूत्र, पुरैनी (मधेपुरा) : माह-ए-रमजान के पवित्र माह में पांचों वक्त का नमाज अदा करना सभी मुस्लिम अकीदतमंदो का परम कर्तव्य है। इससे समाज में धार्मिक विचारधारा का जन्म होता है। माह-ए-रमजान का रोजा दु:ख और गरीबी का एहसास कराने के अलावा शारीरिक कष्ट को भी दूर करता है। रोजा रखने वालों को किसी प्रकार की नुमाइश नहीं करनी चाहिए। रमजान का मुबारक माह मुस्लिम भाइयों के जीवन मे शालीनता,सहनशीलता एवं धार्मिक भावना जैसे कई अन्य आचरण को निखारता है। मुस्लिम अकीदतमंदो की मानें तो सुबह की नमाज को फजर, दोपहर की नमाज को जोहर, शाम से पहले की नमाज को अस्त्र, शाम के वक्त की नमाज को मगरिब एवं शाम के बाद रात में पढ़ी जाने वाली नमाज को इशा कहा जाता हैं। ये पांचों वक्त का नमाज इस्लाम में बेहद महत्वपूर्ण है। रमजान के महीने में नमाज की खास अहमियत है। मुस्लिम समुदाय के लोग दिन में पांच वक्त की नमाज पढ़ते हैं। इसके अलावा मुस्लिम समुदाय के लोग रमजान में तराबीह की विशेष नमाज को सामूहिक रूप अदा करते हैं। रोजा रखने वाले व्यक्तियों का चेहरा हमेशा ही स्वच्छ व निर्मल होना चाहिए। जबतक रोजा रखने वाला व्यक्ति स्वयं यह न कहे कि वे रोजा से है तबतक कोई नही जान सकता कि वह रोजा से है तभी रोजा रखने की महत्ता है। माह-ए-रमजान में एक माह तक रोजा रखने से व्यक्ति के पूरे साल का शारीरिक कष्ट स्वयं दूर हो जाता है। इस कारण धनवान,निर्धन,कमजोर एवं बलवान सभी अल्लाह की राह में रोजा रखकर भूख एवं प्यास का एहसास कराता है, जिसके परिणामस्वरूप उनके दिल में गरीबी और दु:खी मनुष्यों के प्रति पीड़ा का एहसास होता है। इसी एहसास के बल पर वह गरीब एवं दीन-दु:खियों की मदद के लिए आगे बढ़ते है। रोजा रखने के दौरान मानव शरीर के कई अंगो को विश्राम करने का समय मिलता है, जिससे मानव शरीर पहले से भी स्वस्थ और निरोग हो जाता है। साथ ही व्यक्ति में आत्म नियंत्रण की भावना भी जागृत होती है। रमजान के महीने में मुस्लिम अकीदतमंद अल्लाह से सच्चा एवं गहरा रिश्ता स्थापित करते है। यह रिश्ता आत्मीय एवं सुपवित्र माना जाता है। इतना ही नही उक्त रिश्तों से व्यक्ति या रोजेदारों के अन्दर आत्मविश्वास,स्नेह,प्रेम एवं परस्पर सहभागिता व सहयोग की भावना का भी विकास होता है। रोजा को सिर्फ इस्लाम के अंदर ही नही बल्कि दुनियां के तमाम मजाहिद के अंदर एक अहम मुकाम हासिल है। रोजा का मतलब नफ्श खुशी रहने के कारण ही दुनियां के तमाम मजाहिद के लोग रोजा रखते है।


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