अकीदतमंदों ने नौवां रोजा रखकर शिद्दत से की अल्लाह की इबादत

गोपालगंज। जिले के अकीदतमंद इन दिनों माह-ए-रमजान में काफी शिद्दत के साथ रोजा रख रहे हैं और अल्लाह की इबादत भी कर रहे हैं। गुरुवार को अकीदतमंदों में माह-ए-रमजान का नौवां रोजा रखा। सुबह में निर्धारित समय से पूर्व सेहरी कर दिनभर रोजा रखा और शाम में निर्धारित समय में इफ्तार किया। इफ्तार के बाद कई रोजेदारों ने तरावीह की नमाज पढ़ी और कुरानशरीफ की तिलावत भी की। कोरोना काल में मस्जिदों में सामूहिक नमाज पढ़ने और इफ्तार करने पर रोक लगने के कारण रोजेदारों ने अपने-अपने घरों में नमाज पढ़ी और इफ्तार भी किया। वहीं, शहर के निवासी समाजसेवी इम्तेयाज अली भुट्टो ने बताया कि रमजान का महीना इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। रमजान के महीने में ईद की नमाज से पहले फितरा और जकात देना हर हैसियतमंद मुसलमान पर फर्ज होता है। रमजान में रोजा रखना नमाज पढ़ना और कुरआन की तिलावत के साथ जकात और फितरा (दान)देने का भी बहुत महत्व है। जकात इस्लाम के 5 स्तंभों में से एक है। इस्लाम के मुताबिक जिस मुसलमान के इतना पैसा या संपत्ति हो कि वो उसके अपने खर्च पूरे हो रहे हों और वो किसी की मदद करने की स्थिति में हो तो वह दान करने का पात्र बन जाता है। रमजान में इस दान को दो रूप फितरा और जकात में बांटा गया है। उन्होंने बताया कि अल्लाह ने ईद का त्योहार गरीब और अमीर सभी के लिए बनाया है। गरीबी की वजह से लोगों की खुशी में कमी ना आए, इसलिए अल्लाह ताला ने हर संपन्न मुसलमान पर जकात और फितरा देना फर्ज करार दिया है।

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क्या है जकात (दान)
इस्लाम में रमजान के पाक महीने में हर हैसियतमंद मुसलमान पर जकात देना जरूरी बताया गया है। आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है, उसका 2.5 प्रतिशत हिस्सा किसी गरीब या जरूरतमंद को दिया जाता है, जिसे जकात कहते हैं। मुसलमान इस महीने में अपनी पूरे साल की कमाई का आकलन करते हैं और उसमें से 2.5 फीसदी दान करते हैं। असल में ईद से पहले यानी रमजान में जकात अदा करने की परंपरा है। यह जकात खासकर गरीबों, विधवा महिलाओं, अनाथ बच्चों या किसी बीमार व कमजोर व्यक्ति को दी जाती है। महिलाओं के पास यदि साढ़े बावन तोला चांदी और साढ़े सात तोला सोना मौजूद है तो उसकी कीमत के हिसाब से भी 2.5 प्रतिशत जकात निकाली जाती है। जकात के बारे में पैगंबर मोहम्मद साहब ने फरमाया है कि ‘जो लोग रमजान के महीने में जकात नहीं देते हैं, उनके रोजे और इबादत कुबूल नहीं होती है।
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क्या है फितरा
फितरा वो रकम होती है जो खाते-पीते, साधन संपन्न घरानों के लोग आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को देते हैं। ईद की नमाज से पहले इसका अदा करना जरूरी होता है। इस तरह अमीर के साथ ही गरीब की भी ईद मन जाती है। फितरे की रकम भी गरीबों, बेवाओं व यतीमों और सभी जरूरतमंदों को दी जाती है। इस्लाम मे फितरा के पीछे सोच यही है कि ईद के दिन तंगी के कारण कोई मायूस न रहे। इमारते शरिया द्वारा इस वर्ष फितरा प्रत्येक व्यक्ति (बालिग व नाबालिग) एक किलो 692 ग्राम गेंहू,आटा,सत्तू,जौ या उसके बराबर कीमत तय की गई है।

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