जिले में रोक के बावजूद खेतों में जलाए जा रहे पराली

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प्रशासन मूकदर्शक
धीरे-धीरे आग की लपटें एक खेत से दूसरे खेत होकर कृष्णापाली, परमानंदपुर, गोसोपाली व कुरमटोला गांव तक पहुंच गई थी
गेहूं का डंठल जलाने से घट जाती है जमीन की उर्वरा शक्ति
डंठल के बचे अवशेष से बनाया जा सकता है जैविक खाद
01 लाख 5 हजार हेक्टेयर में इस साल हुई थी गेहूं की बुआई
70 फीसदी तक गेहूं की कटनी कंबाइन हार्वेस्टर से की गई है
फोटो :07 शुक्रवार को दरौली के चकदह में गेहूं की फसल का जलता अवशेष।
सीवान/दरौली/रघुनाथपुर। हिटी
जिले में गेहूं की पराली (डंठल) जलाने पर रोक के बावजूद किसान इसे जलाने से बाज नहीं आ रहे हैं। गेहूं की कटनी हो जाने के बाद खेत में बचे फसल के अवशेष को जलाने का काम दर्जनों गांव में बदस्तूर जारी है। बावजूद प्रशासनिक अफसर मूकदर्शक बने हुए हैं। हालांकि जो किसान चालाक हैं, वे गेहूं के डंठल जलाने का विरोध कर रहे हैं। लेकिन, नासमझ लोग नहीं मान रहे हैं। फसल का अवशेष जलाने के चलते एक तो पर्यावरण को इससे नुकसान पहुंच रहा है वहीं खेत की उर्वरा शक्ति भी इससे कम हो रही है। जो डंठल नहीं जलाना चाह रहे हैं, उनके खेत तक भी यह आग पहुंच जा रही है। दरौली प्रखंड के कृष्णापाली निवासी किसान अरविंद पांडेय व रंजन सिंह ने बताया कि पिछले सप्ताह किसी किसान ने निकरी की तरफ एक खेत में आग लगा दी थी। धीरे-धीरे आग की लपटें एक खेत से दूसरे खेत होकर कृष्णापाली, परमानंदपुर, गोसोपाली व कुरमटोला गांव तक पहुंचकर यहां के हजारों एकड़ में मौजूद गेहूं के अवशेष डंठलों को जला दिया। अगर कृष्णापाली गांव के लोग मिलजुल कर आग नहीं बुझाते तो इससे पूरे गांव में आग फैल जाती। रघुनाथपुर के किसान सलाहकार नवीन पांडेय ने कहा कि बहुतेरे जगह खेत में बचे गेहूं के अवशेष से लोगों ने भूसा बनवा लिया हैं। कुछ ही खेत में गेहूं के अवशेष पड़े होंगे।
शरारती बच्चे भी डंठल में आग लगाने का कर रहे काम
डंठल में आग लगाने का काम शरारती बच्चे भी कर रहे हैं। दो दिन पहले ही निखती कला के रसोई गैस एजेंसी के पास खेतों में मौजूद डंठल धू-धू कर जल रह थे। इससे रसोई गैस एजेंसी तक आग के फैलने का डर पैदा हो गया था। गांव के लोगों ने कहा कि शरारती बच्चों का काम था। गेहूं की पराली जलाने की समस्या कोई एक-दो प्रखंड का नहीं पूरे जिले की है। पूरे जिले में इस साल 1 लाख 5 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की बुआई हुई थी। इसमें करीब 70 फीसदी गेहूं की कटनी कंबाइन हार्वेस्टर से हुई है।
पराली जलाने से लाभदायक बैक्टीरिया हो जाते हैं खत्म
जिले में आजकल गेहूं की दौनी के झंझट से मुक्ति के लिए अधिकांश किसान कंबाइन हार्वेस्टर से ही गेहूं की कटनी करा रहे हैं। इससे खेत में ही गेहूं का कुछ अवशेष रह जा रहा है। हालांकि उस खेत से भूसा बनवा लेने के बाद उतना अवशेष बच नहीं पा रहा है जिसे जलाना पड़े। खेत में मौजूद गेहूं के डंठल से भूसा बन जाने के बाद जो कुछ बच रहा है, वह मानसून की पहली बारिश से पहले ही सड़-गल जाएंगे। बावजूद नासमझ लोग इस प्रकार की हरकत कर रहे हैं। कोई एक डंठल जलाने का काम कर रहा है तो दूसरा भी उसका देखा-देखी करने लग जा रहा है। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस तरह की हरकत से खेत में मौजूद लाभदायक बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं।
क्या कहते हैं अधिकारी
कृषि कर्मियों को ऐसे किसानों को चिन्हित करने को कहा गया है, जो पराली जला रहे हैं। ऐसे किसानों का रजिस्ट्रेशन तीन साल तक के लिए ब्लॉक कर दिया जाएगा। उन्हें कृषि विभाग से कोई भी सहायता नहीं दी जाएगी। डीएओ ने किसानों से गेहूं के बचे हुए अवशेष को भूसा बनवा लेने या सड़ा-गलाकर खाद बनवाने की अपील की।
जयराम पाल, जिला कृषि पदाधिकारी

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