अन्नदाता पर मंडराता संक्रमण का साया, लागत मूल्य पर भी आफत

-400 हेक्टेयर खेतों में किसानों ने की है मक्के की खेती

-कोरोना संक्रमण के साथ-साथ उपज का उचित मूल्य नहीं मिलने से घबराए हैं किसान -मक्के का भी समर्थन मूल्य घोषित करे सरकार, ताकि किसानों की बच सके जान ------------------------------------- जागरण संवाददाता, सुपौल: कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप ने लोगों के जीवन में उथल-पुथल मचा रखा है। महामारी का डर हर तबके के लोगों में समाया हुआ है। हालांकि लोग इस महामारी से बचने के लिए हर संभव सावधानी बरत रहे हैं। बावजूद मन में यह अंदेशा हमेशा बना रहता है कि कब उन्हें कोरोना अपने चपेट में ले लेगा। लेकिन संक्रमण का सबसे बड़ा खतरा यहां के अन्नदाता के ऊपर मंडराता हुआ दिख रहा है। वह कोरोना संक्रमण के साथ-साथ उपज का उचित मूल्य नहीं मिलने से घबराए हुए हैं। खासकर वैसे किसान जिन्होंने मक्के की खेती की है, उन्हें लग रहा है कि यदि स्थिति में बदलाव नहीं हुआ तो फिर गत वर्ष की तरह इस वर्ष भी मक्के की खेती संक्रमण की भेंट न चढ़ कर रह जाए। दरअसल पिछले वर्ष कोरोना संक्रमण के कारण सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन के कारण मक्के फसल की उचित कीमत किसानों को नहीं मिल पाई थी, जिससे किसानों को काफी घाटा सहना पड़ा था। एक बार फिर किसानों के खेतों में लगे मक्के की फसल पकने की स्थिति में है। जल्द ही इसकी कटाई भी शुरू हो जाएगी। इधर संक्रमण की जो स्थिति है ऐसे में मक्के फसल की उचित कीमत उन्हें मिल पाएगी इस बात को ले किसान सशंकित हैं।

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लागत अनुरूप नहीं मिलता दाम
दरअसल यहां की जलवायु और मिट्टी मक्का फसल के अनुकूल होने के कारण हाल के दिनों में किसानों का झुकाव इस खेती की ओर बढ़ा है। जिससे हर वर्ष जिले में मक्के खेती का रकबा बढ़ता ही गया है। इस वर्ष भी जिले में करीब 400 हेक्टेयर खेतों में मक्के की खेती की गई है। लेकिन संक्रमण को देख किसानों को लगने लगा है कि कहीं पिछले साल की तरह इस साल भी फसल तैयार होने पर कोरोना के कारण व्यापारी उनकी तैयार फसल को खरीदने नहीं आएंगे। पिछले वर्ष की तरह ही कम कीमत पर उन लोगों को अपनी फसल बेचनी पड़ेगी। किसानों का कहना है कि पिछले बार मक्के की खेती करने वाले किसानों को काफी हानि हुई। किसानों का कहना है कि एक बीघा मक्के की फसल लगाने में 10 से 15 हजार खर्च आता है, जबकि मक्के की फसल तैयार होने के बाद पिछले वर्ष व्यापारी 800 से लेकर 1000 प्रति क्विटल खरीदते थे। दो वर्ष पूर्व मक्के की कीमत 13 सौ से 1600 प्रति क्विटल थी, जिससे कि किसानों की लागत ऊपर हो गई थी।
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कहते हैं किसान
मक्का खेती से जुड़े किसान बताते हैं कि गत वर्ष मक्के की खेती से हुई हानि की भरपाई को लेकर वे लोग हिम्मत करके इस वर्ष मक्के की फसल लगाई। फसल भी अच्छी है, जिससे बेहतर उपज की संभावना है। अब जबकि मक्के की फसल तैयार होने के कगार पर है तो एक बार फिर कोरोना संक्रमण ने उन लोगों के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। यदि स्थिति ऐसी ही रही तो फिर इस वर्ष भी उन लोगों को कौड़ी के भाव मक्के बेचने होंगे। ऐसे में किसानों की कमर टूटना स्वभाविक है। किसानों का कहना है कि सरकार मक्का का भी समर्थन मूल्य घोषित कर खरीदारी की व्यवस्था करे ताकि किसानों की जान बच सके।
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