विश्व श्रमिक दिवस के अवसर पर एक दिवसीय सत्याग्रह का आयोजन

जागरण संवाददाता, सुपौल: मानव समाज घोर, घनघोर संकट में एक बार फिर है। 1918 के फ्लू महामारी में तकरीबन डेढ़ करोड़ से ज्यादा भारतीयों की अकाल मृत्यु हुई थी। तब न तो विज्ञान-तंत्रज्ञान आज की तरह सर्वव्यापी था और न ही आज की तरह सर्वव्यापी अपनी सरकार थी। दूसरा महाघात 1942-46 के बीच का बंगाल का अकाल रहा जिसमें महज एक सूबे में 20 लाख से ज्यादा लोग मौत के गोद में समा गए थे तब भी हम राजनीतिक गुलाम थे। तीसरा महाघात अब है। जहां सर्वव्यापी सरकार और विज्ञान के बावजूद इंसानी जीवन घड़ी का पेंडुलम बन गया है। मौत और बेबसी की खबर आम हो गई है। इंसानियत आवाक है। उक्त बातें पंचम भाई व भगवान जी पाठक ने कही। कहा कि


जिसके आदेश पर थाली और ताली पीटने के बावजूद मौत की धारा अविरल बहती जा रही हम आजाद हैं, लोकतांत्रिक हैं, संविधान सम्मत हैं, सरकार आच्छादित है। लेकिन मौत, कोविड का मौत कुछ सुनता नहीं और हम अच्छे दिन की ओर टकटकी लगाए हैं। मौत है जो थमता नहीं।
हम लोकतांत्रिक हैं इसलिए इस अंतहीन शोक और बेबसी के आलम में एक कर्तव्यदक्ष नागरिक की भूमिका अदा करनी है । हम संविधान सम्मत हैं, इसलिए सरकार से जवाब तलब भी करना है तथा बतौर नागरिक अपने नागरिक होने के कारण इस महासंकट से देश को उबारने में अपनी भूमिका भी अदा करनी है। बताया कि एक मई को विश्व श्रमिक दिवस के अवसर पर बतौर लोकतांत्रिक नागरिक जीवन अधिकार के लिए अपने घर और कार्यालयों में एक दिवसीय सत्याग्रह का आयोजन किया गया है। यह आयोजन सुबह आठ से शाम आठ बजे तक कोविड नियम का पालन करते हुए अपने निज घर पर आयोजित किया जा रहा है। इस सत्याग्रह में पंचम भाई लोक भारती सेवा आश्रम बीरपुर, मिथिलेश गुप्ता, राजेन्द्र यादव, देवनारायण मेहता, यदुनंदन कुमार, भगवान जी पाठक कोशी कंसोर्टियम अपने आवास व कार्यालय में शामिल होंगे। सत्याग्रह के दौरान पूर्ण उपवास तथा मौन रहा जाएगा। ध्यान लगाकर स्व साम‌र्थ्य को जागृत किया जाएगा।
महामारी के विविध आयाम पर शोध का स्वास्थ्य किया जाएगा। प्रधानमंत्री तथा मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी, निराशा प्रकट की जाएगी तथा महामारी से बचाव हेतु उचित मांगे रखी जाएंगी साथ ही अपने संपूर्ण सहयोग का सरकार को आश्वासन देने का भरोसा भी।
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