रमजान में मुस्लिम भाइयों ने घर पर ही नमाज अदा की

रमजान में मुस्लिम भाइयों ने घर पर ही नमाज अदा की

पिछले साल की तरह इस साल भी मस्जिदें रही सूनी
छपरा। नगर प्रतिनिधि
गंगा- जमुनी संस्कृति को कायम रखने और मजहरुल हक से लेकर लोकनायक जेपी की धरती माने जाने वाले सारण का नाम देश मे प्रसिद्ध है। सारण में भी रमजान के रोजा मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोग रख रहे हैं। इस्लाम में सबसे मुकद्दस महीना रमजान का माना जाता है। रमजान माह में मस्जिदों को सजाया जाता है, लेकिन इस साल ऐसा कुछ भी नहीं है। कोरोना की वजह से लॉकडाउन चल रहा है। ज्यादातर इबादतगाह बंद हैं, गुलजार रहने वाले बाजार सूने पड़े हुए हैं। कई साल के इतिहास में ऐसा लगातार दूसरी बार हुआ है जब रमजान के महीने में हमेशा गुलजार रहने वाले बाजार बंद है। बाजार अंग्रेजी हुकूमत के दौरान से गुलजार होते रहे हैं।
मायूसी के माहौल में मना जुमा-तुल-विदा
लॉकडाउन के बीच रमजान का आखिरी जुमा यानी अलविदा मनाया गया। मस्जिदों के बंद होने के कारण पिछले साल की तरह इस साल भी लोगों को घर पर ही नमाज अदा करनी पड़ी। अलविदा का मतलब होता है रुखसत होना। यानी रमजान जैसा अफजल और नेकी का महीना अब हमारे बीच से रुखसत होने वाला है। रमजान के आखिरी जुमे को सैय्यदुल अय्याम भी कहा जाता है। ये सभी दिनों से अफजल होता है। जाहिर बात है जब ऐसा मौका मुसलमानों के बीच से रुखसत हो रहा हो तो उनका गमगीन होना लाजिमी है। इसलिए अलविदा के मौके पर मुसलामन भाई खास एहतमाम करते हैं। नमाज में अल्लाह से अगला रमजान पाने की इच्छा जताते हैं।
बदला-बदला सा रहा मंजर
मस्जिदों से आजान तो हुई मगर कोई नमाजी नहीं पहुंचा। रास्तों पर सन्नाटा पसरा रहा सिर पर टोपियां लगाए कुर्ता पजामा पहने लोग घरों से नहीं निकले। मस्जिदों में चहल-पहल नहीं हुई। नमाजियों की तादाद बढ़ने से जगह की कमी नहीं हुई बल्कि मस्जिदें सुनी और वीरान रहीं। केवल आजान देने वाले मोअज्जिन, इमाम और एक-दो खादिम ने मस्जिद में नमाज पढ़ीं जबकि रोजेदार दिल मसोस कर अफसोस करते रहे। चूंकि जुमे या ईद की नमाज के लिए खुत्बा जरूरी होता है और खुत्बा हर किसी को याद नहीं होता। ये एक प्रकार की तकरीर होती है जिसमें दुआएं शामिल होती हैं। इस लिए लोगों ने घरों पर जोहर की सामान्य नमाज अदा की। वहीं अल्लाह से जल्द से जल्द कोरोना से दुनिया को मुक्त करने की दुआ की ताकि इंसानियत की रक्षा हो सके।
मदद मांगने वालों को हुई मायूसी
जुमा की नमाज के दिन बड़ी संख्या में मस्जिदों के बाहर मदद मांगने वाले मजबूर और गरीब लोग पहुंचते थे। रोजेदार जकात और फितरे की रकम से उनकी मदद करते थे। लॉकडाउन की वजह से उन्हें आसानी से मिलने वाली यह मदद नहीं मिल सकी। अहमद रजा खान वेलफेयर ट्रस्ट के अध्यक्ष हाजी आफताब आलम खान ने बताया कि शहर और देहात से आने वाले गरीब, मजबूर और मदरसा आदि के संचालकों को इस बार काफी दिक्कत हो रही है। या तो वे आ नहीं सके या फिर उन्हें मुहल्ले और घरों तक पहुंचने में दुश्वारी हो रही है। वहीं जकात-फितरा निकालने वालों को भी तकसीम करने में परेशानी है।

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