कंप्यूटर के Keyboard में ये ABCD उल्टे-पुल्‍टे क्‍यों होते हैं. A के बाद S और Q के बाद W क्यों आता है?

कोरोना काल में आईटी, कंप्यूटर इंजीनियरिंग, डिजाइनिंग, मीडिया, मैनेजमेंट ऐसे ढेर सारे सेक्टर्स हैं, जो इन दिनों Work From Home यानी घरों से काम कर रहे हैं. दिनभर कंप्यूटर या लैपटॉप पर आपकी ऊंगलियां खट-पिट, खट-पिट करती होगी. ऑफिस में काम के दौरान भी कीबोर्ड की खट-पिट खूब होती है. कंप्यूटर या लैपटॉप के कीबोर्ड पर आपकी ऊंगलियां अब बैठ गई होंगी यानी आपको इसका अभ्यास हो चुका होगा और आप काफी तेजी से अब टाइपिंग कर पा रहे होंगे.

काम के दौरान अब आप जो Type करना चाहते हैं, Keyboard के उन्हीं बटन्स पर आपकी ऊंगलियां पहुंचती रहती हैं. कीबोर्ड पर अल्फाबेट के लेटर्स ABCD… वगैरह सीरियली नहीं होते हैं फिर भी आप सुविधाजनक लगातार टाइप करते चले जाते हैं. अभी नहीं तो शुरुआत में तो आपके दिमाग में यह ख्याल जरूर आया होगा कि कीबोर्ड पे ये बटन्स यानी Letters Alphabetical Order में क्यों नहीं होते हैं? क्यों ये लेटर्स A, B, C, D, E … में न होकर Q, W, E, R, T, Y फॉरमेट में होते हैं?
कंप्यूटर और लैपटॉप से पहले टाइपराइटर में भी और अब हमारे स्मार्टफोन (SmartPhone) में भी ये लेटर्स QWERTY फॉर्मेट में ही होते हैं. इसके पीछे क्या कोई रॉकेट साइंस है? पहले कीबोर्ड कैसे होते थे? और आखिर कब और क्यों ऐसा QWERTY फॉर्मेट तैयार किया गया होगा? आइए यहां हम इन्हीं सवालों के जवाब जानते हैं…
कंप्यूटर या लैपटॉप से पहले टाइपराइटर मशीन में भी यही फॉर्मेट
आप किसी टाइपराइटर मशीन को देखिए. इसमें QWERTY फॉर्मेट ही हुआ करता है. कंप्यूटर या लैपटॉप के आने से पहले ही Keyboard का ये फॉर्मेट चलन में था. इस स्टाइल को तैयार किया था Christopher Latham Sholes ने. सबसे पहले साल 1874 में आए टाइपराइटर में लेटर्स का इस्तेमाल इसी तरह हो रहा था. तब इसे रेमिंग्टन-1 (Remington-1) के नाम से जाना गया. लेकिन क्या शुरुआत से यही फॉर्मेट चलन में था या इससे पहले A,B,C,D क्रम में हुआ करते थे.
(Typewriter)
QWERTY से पहले ABCD मॉडल हुआ करता था
पहले Typewriter के Keyboard भी A,B,C,D फॉर्मेट में हुआ करते थे. लेकिन इससे टाइप करने में स्पीड नहीं आती थी और यह असुविधाजनक भी था. कई लोगों ने Typing स्पीड बढ़ाने के लिए कुछ न कुछ प्रयोग किए, लेकिन सबसे सफल मॉडल QWERTY के रूप में ही सामने आया. इससे टाइप करने में भी आसानी होती थी, और स्पीड भी अच्छी बन जाती थी.
ABCD में QWERTY में क्यों बदला गया फार्मेट
दरअसल, ABCD वाले कीबोर्ड की वजह से टाइपराइटर पर टाइप करना मुश्किल हो रहा था. एक तो ये कि उसके बटन एक दूसरे के काफी करीब होते थे, जिससे टाइपिंग में मुश्किल होती थी. दूसरा कारण बड़ा था. दरअसल, अंग्रेजी में कुछ अक्षर ऐसे हैं, जिनका ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है (जैसे E,I,S,M वगैरह) और कुछ शब्दों की बहुत कम ही जरूरत पड़ती है (जैसे Z, X वगैरह).
ज्यादा इस्तेमाल होनेवाले इन अक्षरों के लिए उंगली को पूरे कीबोर्ड पर घुमाना पड़ता था और इससे टाइपिंग स्पीड काफी स्लो हो जाती थी. इसलिए इसको लेकर एक्सपेरिमेंट्स शुरू हुए. काफी कोशिशें नाकाम रहीं और तब जाकर 1870 के दशक में QWERTY Format आया. इस फॉर्मेट में जरूरी यानी ज्यादा इस्तेमाल होने वाले लेटर्स को ऊंगलियों की रीच में सेट कर दिया गया.
(Keyboard)
बीच में एक और मॉडल आया था Dvorak
जब टाइपिंग को सुविधाजनक बनाने के लिए एक्सपेरिमेंट्स हो रहे थे तब एक और फॉर्मेट आया था- Dvorak Model के रूप में. हालांकि यह फॉर्मेट अपनी Keys सेटिंग्स से फेमस नहीं हुआ था, बल्कि इसे तैयार करने वाले August Dvorak के नाम पर इस फॉर्मेट को नाम दिया गया. हालांकि, यह कीबोर्ड बहुत दिन तक चर्चा में नहीं रहा. यह न तो अल्फाबेटिकल था और न ही टाइपिंग की दृष्टि से आसान था. लोगों को QWERTY मॉडल ही सबसे ज्यादा सुविधाजनक लगा. यही लोगों को पसंद आया और यही प्र​चलित हो गया.
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