मास्क पहनकर बोलने में नहीं होगी दिक्कत! केरल के छात्र ने बनाई माइक्रोफोन और एम्पलीफायर से लैस डिवाइस

क्या मास्क या फेसशील्ड पहनने से दूसरों से बात करने में दिक्कत होती है? कई लेयर वाला मास्क पहनने पर खास तौर पर ये परेशानी सामने आती है. कोविड वार्ड्स, आईसीयू वार्ड्स में डॉक्टर्स और हेल्थकेयर स्टाफ को भी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है जब उन्हें बात समझाने के लिए ऊंची आवाज में बोलना पड़ता है. इस समस्या का समाधान ढूंढने का दावा केरल के एक इंजीनियरिंग छात्र ने किया है.

केरल के त्रिशूर में गवर्मेंट इंजीनियरिंग कॉलेज में कम्प्यूटर इंजीनियरिंग के फर्स्ट ईयर के छात्र केविन जैकब ने ऐसी डिवाइस बनाई है जो किसी भी मास्क या फेस शील्ड में फिट हो सकती है. ये डिवाइस माइक्रोफोन और एम्पलीफॉयर (स्पीकर) से लैस है. केविन ने इस डिवाइस को 3D प्रिंटर तकनीक की की मदद से बनाया. केविन के मुताबिक इस डिवाइस को अटैच करने के लिए मास्क के मैटीरियल में छेद करने की जरूरत नहीं पड़ती.
दरअसल केविन के माता-पिता डॉक्टर हैं जो मास्क पहने हुए अन्य लोगों से बात करने में दिक्कत महसूस करते थे और उन्हें मास्क को नीचे करना पड़ता था. इससे संक्रमण का खतरा भी बढ़ता था. केविन के माता-पिता का हर दिन ड्यूटी से लौटने के बाद गला बैठा होता था. N95 मास्क और फेस शील्ड पहने होने की वजह से उन्हें ऊंचे गले से बात करनी पड़ती थी.
माता-पिता की इसी दिक्कत को देखते हुए केविन ने मास्क से जुड़ी इस समस्या को दूर करने के लिए सोचना शुरू किया. केविन ने इस पर खुद से सवाल किया कि क्यों न ऐसी डिवाइस बनाई जाए जो मास्क के साथ लगाने पर इंसान की आवाज को ऊंचा कर दे जैसे कि माइक से होती है. केविन ने इसके लिए ऐसा प्रोटोटाइप बनाया जो माइक्रोफोन और स्पीकर से लैस था. इस तरह की डिवाइस से लैस मास्क पहना होने पर बिना गले पर जोर डाले आवाज को ऊंचा किया जा सकता था.
केविन की पहली कोशिश थी कि मास्क के लिए माइक्रोफोन और स्पीकर वजन में बहुत हल्के होने चाहिए. केविन ने इसके लिए जब सर्च किया तो माइक्रोफोन और स्पीकर या तो भारी थे या बहुत महंगे थे.
केविन ने माइक्रोफोन और स्पीकर को रेप्लिकेट (प्रतिकृति बनाने) करने के लिए 3D तकनीक का इस्तेमाल किया. इसके लिए केविन ने कई रिसर्च पेपर्स और यूट्यूब पर उपलब्ध वीडियो को स्टडी किया. केविन की डिवाइस में इस्तेमाल वायस एम्पलीफायर 2 सेंटीमीटर चौड़ाई और 3 सेंटीमीटर लंबाई का होता है.
केविन ने ऐसे सर्किट बोर्ड्स भी बनाए जो डिवाइस को चार्ज कर सकें. केविन ने माइक और एम्पलिफायर को रखने के लिए डबल साइड वाले ठोस चुंबकों का इस्तेमाल किया. ऐसा इसलिए किया कि एम्पलीफायर को रिपेयर करने के लिए मास्क के मैटीरियल को न छेड़ना पड़े.
केविन के मुताबिक ये आसान काम नहीं था. केविन को दो डिवाइस बनानी पड़ी. पहली डिवाइस को साउंड क्वालिटी की वजह से डॉक्टरों से अच्छा रेस्पॉन्स नहीं मिला. इसके बाद केविन ने सर्किट में कुछ बदलाव किए. साथ ही एम्पलीफायर के केस को बदला.
अभी ऐसे सिंगल एम्पलीफायर के दाम 900 रुपए हैं. केविन के मुताबिक जब औद्योगिक उत्पादन होगा तो दाम घटकर 500 रुपए पर आ जाएंगे. केविन के माता-पिता डॉ ज्योति और डॉ सनूज अब बेटे के फाइनल प्रोटोटाइप को पहन कर हर दिन काम करते हैं. उन्होने अन्य अस्पतालों में काम करने वाले दोस्तों को भी इसके बारे में बताया.
धीरे धीरे केविन को अपनी डिवाइस के लिए ऑर्डर मिलने शुरू हो गए हैं. वो 60 से अधिक डिवाइस बना चुका है. तिरुवनंतपुरम और कोझिकोड जैसे शहरों में केविन की डिवाइस का इस्तेमाल किया जा रहा है.

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