पूर्णिया में मातृ मृत्यु दर में कमी लाने में स्वास्थ्य विभाग की मदद करेगा आइसीडीएस

पूर्णिया। जिले में मातृ मृत्यु दर में कमी लाने के लिए स्वास्थ्य विभाग प्रयासरत है। सरकार प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व योजना अंतर्गत जिले में प्रत्येक माह गर्भवती महिलाओं का पीएचसी स्तर तक संपूर्ण जांच की जाती है।

प्रसव पूर्व व प्रसव बाद महिलाओं का ख्याल रखा जाता है। गर्भधारण के बाद नियमित जांच और दवाओं के साथ पोषण की भी जानकारी दी जाती है। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग की आशा कार्यकर्ता फील्ड में गर्भवती महिलाओं की पहचान और नियमित जांच के लिए पीएचसी भेजने के लिए प्रेरित करती है। अब इस अभियान बल देने के लिए आंगनबाड़ी सेविका और सहायिका की भी मदद विभाग ले रहा है। समेकित बाल विकास परियोजना और स्वास्थ्य विभाग का यह संयुक्त अभियान है। जिले में 3200 से अधिक आंगनबाड़ी केंद्र हैं। सभी अपने पोषक क्षेत्र में आने वाली गर्भवती महिलाओं की पहचान कर स्वास्थ्य विभाग की आशा कार्यकर्ता और एएनएम की मदद से सहायता उपलब्ध कराती है। इस अभियान के अंतर्गत उच्च जोखिम वाले मामले की पहचान होती है। गर्भवती महिलाओं को समुचित सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। महिलाओं में असुरक्षित प्रसव आदि से संक्रमण फैलने के कारण भी मौत हो जाती है। गर्भवती महिलाओं की नियमित फोलोअप की जाती है। गर्भधारण में समय से एएनसी जांच की निगरानी की जाएगी। आशा और एएनएम के अलावा आईसीडीएस के आंगनबाड़ी से सेविका की मदद भी इस अभियान में ली जा रही है।

समय पर गर्भवती महिलाओं का होगा निबंधन -:
आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ता की मदद से गर्भवती महिलाओं को उचित समय पर निबंधन होगा। समय - समय पर चेकअप और निगरानी की जाएगी। गर्भवती महिला की प्रसव होने के बाद किसी गंभीर बीमारी के कारण या प्रसव होने के 42 दिनों के अंदर मौत हो जाए तो वह मातृ मृत्यु की श्रेणी में आता हैं। गर्भावस्था और प्रसव के दौरान होने वाली जटिलताएं मातृ मृत्यु के लिए अधिक जिम्मेदार होती हैं।
जोखिम वाले मामले की होगी पहचान -:
मातृ मृत्यु को रोकने के लिए उच्च जोखिम वाले गर्भवती महिलाओं की पहचान स्वास्थ्य विभाग करेगा। गर्भवती महिलाओं का पंजीकरण गर्भधारण के 12 सप्ताह के अंदर कराना सुनिश्चित किया जाएगा। इसी बीच रक्तचाप, खून की कमी, महिला का संपूर्ण चेकअप गर्भधारण के दौरान कम से कम चार बार कराना सुनिश्चित कराया जाएगा। अगर खून की कमी होती हैं तो उसे आयरन फोलिक एसिड की गोलियां दी जाती है। गर्भवती महिलाओं की मृत्यु की जांच और सर्वे फॉर्म में पूरी जानकारी के साथ भर कर प्रतिमाह स्थानीय स्तर पर पीएचसी में उपलब्ध कराया जाएगा। मौत के कारणों का पता लगाकर भविष्य में ऐसी घटना न हो उसे रोका जा सके।
चलाया जा रहा है जागरूकता अभियान :-
ग्रामीण स्तर पर आशा कार्यकर्ताओं के माध्यम से लोगों को जागरूक भी किया जा रहा है। संस्थागत प्रसव ही कराएं इसके लिए प्रेरित किया जाता है। सरकारी अस्पताल में मिल रही सुविधाओं की जानकारी दी जाती है। गायनोकोलोजिस्ट डॉ. आभा प्रसाद ने बताया कि प्रसव के समय या बाद में लगातार खून का बहना मातृ मृत्यु का मुख्य कारण होता है। खून की मात्रा गर्भवती महिलाओं के शरीर को नुकसान हो जाता है। महिलाओं की मृत्यु रक्तस्त्राव के कारण हो जाती है।
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कोट के लिए -:
उच्च जोखिम वाले मामले की पहचान कर समुचित सुविधा व फोलोअप के लिए संयुक्त अभियान चलाया जा रहा है। 40 फीसद महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान रक्त की कमी और रक्तचाप की समस्या से होती है। समय पर इसका उपचार किया जाए तो काफी हद तक मृत्यु में कमी आ सकती है। इसके लिए क्षेत्र में एएनएम और आशा कार्यकर्ताओं की सबसे अधिक भूमिका है।
डॉ. एसके वर्मा, सिविल सर्जन
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