30 हजार हेक्टेयर जमीन हुई बर्बाद, उठी मुआवजे की मांग

शिवहर । कभी बागमती नदी की धाराएं किसानों की समृद्धि का आधार थी। लेकिन बदलते वक्त में यह नदी किसानों के लिए अभिशाप बन गई है। हालत यह हैं कि जमीन रहते हुए भी इलाके के अन्नदाता अन्न से अनजान है। बागमती नदी तटबंधों के आसपास के इलाकों के किसानों की हालत बेहद खराब है। पुरनहिया प्रखंड के अदौरी, बराही, खैरा पहाड़ी, दोस्तिया ,कटैया, आसोपुर व बैरिया, पिपराही प्रखंड के पकडी बकटपुर, धनकौल, इनरवा, सिगरहिया, माधोपुर, दोस्तियां, रतनपुर, उकनी, परसौनी बैज, देकुली धर्मपुर, मोहारी व कोपगढ आदि दर्जनों गांवों के सैकड़ों रैयतों की 30 हजार एकड़ की जमीन या तो नदी की पेटी में है या फिर बागमती नदी के कारण बलुहट हो गई है। जिसमें फसल उपजाना टेढी खीर साबित हो रहा है। नदी के दोनों किनारे बांध का निर्माण किया हुआ है। उसमें किसानों की जमीन से ही मिट्टी काटकर उपयोग किया गया। मिट्टी काटे जाने के चलते किसानों की जमीन की बचीखुची उर्वरता भी समाप्त हो गई है। इतना ही नहीं नदी की पेटी में गई जमीन पर भी सरकार कब्जा कर रही है। इससे किसानों की परेशानी बढ़ गई है। किसान हताश, निराश और परेशान है। मालगुजारी अदा करने के बावजूद किसानों के लिए यह जमीन किसी काम की नहीं रह गई है। मामले को लेकर कांग्रेस नेता कमलेश कुमार सिंह ने अब आंदोलन की तैयारी शुरू कर दी है। उन्होंने जिलाधिकारी से किसानों की हित में नीति बनाने की मांग की है। ताकि, किसानों को उनके फसल की क्षतिपूर्ति के लिए उचित मुआवजा मिल सके। अन्यथा किसानों के साथ चरणबद्ध तरीके से आंदोलन की चेतावनी दी है। श्री सिंह ने कहा कि, दशकों से इलाके के किसान बागमती नदी की मार झेल रहे है। लेकिन शासन-प्रशासन को इसकी चिता नहीं है। ऐसे में किसानों के हक के लिए आंदोलन किया जाएगा।


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