आतंकी ठप्पे के साथ गुजरात की जेल में गुजारे 11 साल, UAPA से बरी होकर घर पहुंचा कश्मीरी शख्स

श्रीनगर, 1 जुलाई। सोचिए कोई शख्स 11 साल तक आतंकवाद के आरोपों में जेल में बंद रहा हो और फिर बरी हो जाए तो वह इस बात पर खुशी जताएगा या उन 11 सालों के लिए दुखी होगा। जम्मू-कश्मीर के बशीर अहमद के साथ भी ऐसा ही कुछ है जो 11 साल बाद अपने घर श्रीनगर पहुंचे हैं। अहमद को 11 साल पहले गुजरात में आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

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19 जून को वडोदरा की एक अदालत ने सुनवाई करते हुए फैसला दिया कि अभियोजन पक्ष गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत लगाए गए आरोपों को साबित करने में विफल रहा है। कोर्ट ने बचाव पक्ष की उस दलील को स्वीकार किया कि अहमद कैंसर के बाद केयर के लिए 4 दिन के कैम्प में शामिल होने के लिए गुजरात आए हुए थे। कोर्ट से बरी होने के बाद 23 जून को अहमद कश्मीर पहुंचे हैं।
गुजरात एटीएस ने बशीर अहमद को 13 मार्च 2010 को आनंद से गिरफ्तार किया था। एटीएस ने कहा था कि अहमद हिजबुल मुजाहिदीन के लिए आतंकी नेटवर्क बनाने के लिए रेकी कर रहे थे। उनका काम 2002 के दंगों से नाराज युवाओं को हिजबुल के आतंकी नेटवर्क में शामिल होने के लिए तैयार करना था। एटीएस के मुताबिक अहमद हिजबुल मुजाहिदीन के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन और एक प्रमुख कमांडर बिलाल अहमद शेरा के साथ फोन और ईमेल पर संपर्क में थे।
अपने 87 पेज के फैसले में कोर्ट ने कहा "आरोपी के खिलाफ लगाया गया चार्ज, कि वह गुजरात में रुका था और उसे गुजरात में आतंकी नेटवर्क तैयार करने के लिए वित्तीय सहायता मिली थी, साबित नहीं हो पाया है। न ही इन आरोपों की साबित करने के लिए कोई सबूत पेश किए गए कि उसने ऐसी कोई रकम ली थी या फिर ऐसा कोई आतंकी मॉड्यूल स्थापित किया था। अभियोजन पक्ष साफ तौर पर अभियुक्त के खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित करने में असफल रहा है। अभियोजन पक्ष ऐसा कोई भी प्रमाण पेश करने में असफल रहा है कि वह (आरोपी) हिजबुल कमांडर के संपर्क में था।"
ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए गुजरात गए थे अहमद
2010 में जब अहमद को गिरफ्तार किया गया था तो वह एक ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए गुजरात गए हुए थे। वह गुजरात स्थित एक एनजीओ प्रोजेक्ट के हेड थे जो कटे होंठ वाले बच्चों की मदद करता था।
अहमद के वकील खालिद शेख के मुताबिक श्रीनगर के एक डॉक्टर ने उन्हें कैम्प में जाकर ट्रेनिंग लेने की सिफारिश की थी जिससे वह घाटी में कैंसर के बाद की देखभाल सेवाओं की स्थापना में मदद कर सकें। उनका 15 दिनों में श्रीनगर वापसी का प्रोग्राम था। 28 फरवरी 2010 को उनका वापसी का टिकट भी बुक था। लेकिन इसके पहले ही एटीएस ने अहमद को उनके हॉस्टल से उठा लिया। उन्हें हिजबुल आतंकी बताते हुए टीवी कैमरों के सामने परेड कराई गई।
एटीएस ने आरोपों में कहा था अहमद ने उस डॉक्टर के लैपटॉप का इस्तेमाल किया था, जिसके शिविर में वह पाकिस्तान में अपने हिजबुल आकाओं को ईमेल भेजने के लिए भाग ले रहा था। एटीएस के मुताबिक वह दिन में कई बार संदिग्ध फोन कॉल करते और खाना खाने या नमाज अदा करने के बहाने शिविर से बाहर निकलते देखा गया था।"
बहुत कुछ खोया लेकिन उम्मीद नहीं खोई
अब 11 साल बाद घर पहुंचने वाले बशीर अहमद को खुशी और दुख दोनों है। जेल में रहते हुए राजनीति और लोक प्रशासन में मास्टर किया। इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में उन्होंने कहा "मुझे पता था कि मैं निर्दोष था और इसलिए मैंने कभी उम्मीद नहीं खोई। मुझे पता था कि मुझे एक दिन सम्मान के साथ रिहा किया जाएगा।"
जब वह श्रीनगर लौटे तो सबसे पहले उनके भतीजे और भतीजी ने उन्हें देखा था। अहमद याद करते हैं "मैं कैसे बयां करूं कि मुझे कैसा लगा? यह एक साथ अपार खुशी और दुख का क्षण था।"
बशीर अहमद का सबसे बड़ा दुख इस दौरान अपने पिता को खो देने का है। उनके पिता गुलाम नबी बाबा सात साल तक लगातार अपने बेटे की रिहाई के लिए हर दरवाजे पर दस्तक दी लेकिन जब बेटा रिहा होकर घर लौटा तो वह स्वागत के लिए मौजूद नहीं थे। उनकी 2017 में कैंसर से मौत हो गई। बशीर अहमद को इस बात अफसोस है कि जब वह बेगुनाह साबित होकर घर लौटे हैं तो ये बात देखने के लिए उनके पिता मौजूद नहीं हैं।
source: oneindia.com

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