Real Estate News: घर खरीदते वक्त इस बात का ध्यान रखें, बिल्डर के दीवालिया होने पर भी आपकी पूंजी सुरक्षित रहेगी

नई दिल्ली. देश में कई रियल एस्टेट प्रॉजेक्ट (Real Estate Projects) अटके पड़े हैं या कंपनी के दीवालिया होने की वजह से बंद हो गए है. इनमें लाखों घर खरीदारों की जिंदगी भर की कमाई फंसी हुई है. उन्हें वह घर कब मिलेगा, इसे लेकर अनिश्चितता बरकरार है. आप भी घर खरीद रहे हैं तो इस बात पर ध्यान दें कि बिल्डर या डेवलपर कंपनी कैसी है? रियल एस्टेट के जानकार मनोज सिंह मीक बताते हैं कि रियल एस्टेट में सुस्ती की वजह से प्रोजेक्ट्स अटक गए हैं. पहले बिल्डर या कंपनी घर खरीदारों से पैसा लेकर दूसरे प्रोजेक्ट्स की जमीन खरीदने में लगा देते थे. लेकिन जैसे ही सुस्ती आई तो नए प्रोजेक्ट टल गए और फिर बिल्डरों के पास पुराने प्रोजेक्ट्स के लिए लिक्विडिटी की कमी आ गई. फिर रेरा और इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) कानून की खामियों की वजह से घर खरीदार और परेशान हो गए. पढ़ें : नौकरी की बात : वीडियो देखकर खाना बनाना सीख सकते हैं लेकिन स्किल में महारत हासिल करने के लिए मेंटर जरूरी 205 मामलों में से सिर्फ 8 रिजॉल्यूशन प्लान ही मंजूर इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) को आए पांच साल हो गए हैं. इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक इस दरमियान रियल एस्टेट सेक्टर के केवल 8 रिजॉल्यूशन प्लान मंजूर हुए हैं, जबकि मार्च 2021 तक सबमिट हुए मामलों की संख्या 205 थी. इस प्रकार रियल एस्टेट के मामले में IBC (Insolvency and Bankruptcy Code) की सक्सेस रेट 4 फीसदी से भी कम है. दूसरे सेक्टर्स के हालात थोड़े बहतर अन्य सेक्टर्स के मामले में बैंक या ऑपरेशनल क्रेडिटर्स जैसे कि सप्लायर कंपनियों को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल लेकर गए. वहीं रियल एस्टेट सेक्टर में ऐसा नहीं है. यहां घर खरीदारों की संख्या बहुत ज्यादा है और यह आम इंसान हैं. उन्हें कानून की ज्यादा जानकारी नहीं है. वहीं, रियल एस्टेट एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां सरकार ने घर खरीदारों को ऑपरेशनल लेनदारों की श्रेणी से वित्तीय लेनदारों की श्रेणी में लाकर एक अपवाद क्रिएट किया. उन्हें नए रिजॉल्यूशन आवेदक को तय करने में समान अधिकार दिया गया. इससे लोग कंपनी के खिलाफ दिवालिया कोर्ट में मामला सही तरीके से रख नहीं पाते हैं. पढ़ें : इनकम टैक्स अलर्ट : फटाफट कर लें यह काम, नहीं तो रूक जाएगी आपकी सैलरी कंपनी या बिल्डर का पुराना रिकॉर्ड देखें मीक बताते हैं कि जब भी घर खरीदना हो तो बिल्डर का रिकॉर्ड जरूर देखना चाहिए. उसकी बैलेंसशीट के साथ तमाम अथॉरिटी के एप्रूवल जांचें. ध्यान रखें कि जमीन पर ज्यादा लोगों के मालिकाना हक नहीं होना चाहिए. यानी कि जो कंपनी या बिल्डर आपको घर बेच रहे हैं, उनके ही नाम पर प्रॉपर्टी का मालिकाना हक होना चाहिए. अब चूंकि रेरा आ गया है तो फंड डायवर्ट वाली दिक्कत कम हो गई है. ऐसे प्रोजेक्ट ज्यादा बेहतर होते हैं जिनमें कि बिल्डर ने बड़े वित्तीय संस्थानों से लोन लिया हो. ऐसे में बिल्डर दीवालिया भी होता है तो बड़े वित्तीय संस्थान उचित कानूनी कार्रवाई कर सकेंगे. अन्य सेक्टर्स के मुकाबले रियल एस्टेट में ज्यादा जटिलताएं अन्य सेक्टर्स के मुकाबले रियल एस्टेट में ज्यादा जटिलताएं हैं. केवल IBC ही नहीं बल्कि रेरा पर भी नजर डालनी चाहिए. इसके अलावा नियमों में बदलाव होता रहता है, जिससे जब कोई डेवलपर किसी प्रॉजेक्ट को टेक ओवर करना चाहता है तो नए दिशानिर्देशों का पालन करना मुश्किल हो जाता है. मूल रूप से ये प्रावधान और दिशानिर्देश प्रगति पर हैं और इन्हें और बदलाव की जरूरत है. नहीं भूलना चाहिए कि पहले रियल एस्टेट के लिए कोई प्रावधान और रिड्रेसल मैकेनिज्म नहीं था. उस हिसाब से तो नए प्रावधान बड़े अपग्रेड कहे जा सकते हैं. आईबीसी में यह सबसे बड़ी खामी रियल एस्टेट की कीमतों में गिरावट तेजी से हुई है. इससे प्रॉजेक्ट रिजॉल्यूशन आवेदकों के लिए अव्यवहारिक बन जाता है. रिजॉल्यूशन प्रोफशनल हरिगोपाल पाटीदार कहते हैं कि कई मामलों में फंड डायवर्ट किया जाता है और कंपनी के पास यूनिट का निर्माण करने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं होता. ऐसे मामलों में प्रॉजेक्ट अटक जाते हैं. इसके अलावा मार्केट के पास भी रियल एस्टेट मामलों को सपोर्ट करने के लिए पर्याप्त लिक्विडिटी नहीं होती है. अगर जमीन पर एक से ज्यादा एंटिटी का हक है तो दूसरी जटिलताएं पैदा हो जाती हैं. ऐसे मामलों में प्रॉजेक्ट इन्वॉल्वेंसी कानूनों को लागू किया जाना चाहिए, जबकि IBC में हमारे पास प्रॉजेक्ट या ग्रुप इन्सॉल्वेंसी प्रावधान नहीं हैं.

अन्य समाचार