बिना इंजेक्शन लगेगी भारत की नई Zydus Cadila वैक्सीन, बच्चों के लिए भी सुरक्षित, हर बात जानिए

नई दिल्ली, 1 जुलाई: भारतीय दवा कंपनी जायडस कैडिला ने गुरुवार को कहा है कि उसने अपनी तीन-डोज वाली कोविड-19 वैक्सीन की इमरजेंसी अप्रूवल के लिए आवेदन दिया है। कंपनी के मुताबिक अंतरिम अध्ययन में यह वैक्सीन 66.6% प्रभावी पाई गई है। अगर इसे ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीजीसीआई ) से मंजूरी मिल जाती है तो यह देश में विकसित दूसरी वैक्सीन होगी। पहली स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सिन है, जिसे भारत बायोटेक ने आईसीएमआर के साथ मिलकर बनाया है। जायडस कैडिला को अगर इस्तेमाल की मंजूरी मिल जाती है तो भारत में ऐसी मंजूरी पाने वाली यह पांचवीं वैक्सीन होगी। इससे पहले चार वैक्सीन- कोविशील्ड, कोवैक्सिन, स्पूतनिक V और मॉडर्ना को यह मंजूरी मिली है, लेकिन जायडस की वैक्सीन पहली चारों से कई मायने में अलग है।

जायडस ने कहा है कि उसकी वैक्सीन एफिकैसी का परिणाम 28,000 से ज्यादा वॉलंटियर्स पर अंतिम स्टेज की ट्रायल के विश्लेषण के आधार पर है, जिसमें 1,000 सब्जेक्ट 12 से 18 साल आयु वर्ग के भी शामिल किए गए थे। भारत में किसी भी वैक्सीन पर यह सबसे बड़ा ट्रायल है। जायडस कैडिला की इस वैक्सीन का नाम ZyCoV-D है, जो दुनिया की पहली डीएनए वैक्सीन होगी। इस वैक्सीन की खासियत ये है कि बाकी की दो खुराक लेनी पड़ती है, लेकिन यह तीन-खुराक वाली वैक्सीन है। यही नहीं इसकी सबसे बड़ी विशेषता ये है कि इसे लगाने के लिए सुई की जरूरत नहीं पड़ेगी और इसे फार्माजेट तकनीक से लगाया जाता है, जिससे वैक्सीन लगने के बाद होने वाले साइड इफेक्ट की संभावना कम हो जाएगी।
जायडस ने दावा किया है कि कोरोना के सिम्पटोमेटिक मामलों में यह 66.6% प्रभावी है, लेकिन मॉडरेट केस में यह 100% असरदार है। कंपनी के मुताबिक इस वैक्सीन की तीसरे फेज की ट्रायल तब हुई जब देश में डेल्टा वैरिएंट फैला हुआ था, जिसे कि भारत में दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार माना जाता है और माना जा रहा है कि अब दूसरे देशों में इसी के केस बढ़ रहे हैं। रॉयटर्स के मुताबिक जायडस की ओर एक बयान में कहा गया है कि यह डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ भी कारगर है, क्योंकि यह स्टडी 'तब की गई जब कोविडि-19 की दूसरी लहर (भारत में) चरम पर थी, इससे वैक्सीन की एफिकैसी की पुष्टि नए म्यूटेंट खासकर डेल्टा वैरिएंट पर भी हो गई।'
जायडस ने यह भी कहा है कि अभी तक यह वैक्सीन 12 से 18 साल के बच्चों के लिए भी सुरक्षित है। लेकिन इसकी ट्रायलट डेटा की अभी तक समीक्षा नहीं की गई है। खास बात ये है कि फार्माजोट तकनीक के इस्तेमाल की वजह से इसके लिए इंजेक्शन की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसकी दवा बिना सुई वाले इंजेक्शन में डालकर एक मशीन के जरिए बांह पर लगाते हैं और फिर उस मशीन पर लगे बटन के दबाते ही वैक्सीन शरीर के अंदर चली जाती है। जायडस के मुताबिक यह एक प्लास्मिड डीएनए वैक्सीन है, जिसे इंजेक्ट किया जाता है, तो कोरोनावायरस का स्पाइक प्रोटीन पैदा होता है जिससे एक इम्यून रेस्पॉन्स उत्तेजित होता है। कंपनी का कहना है कि प्लास्मिड डीएनए प्लेटफॉर्म को जल्द ही नए म्यूटेशन से निपटने के लिए मोडिफाई भी किया जा सकता है।
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कंपनी इस वैक्सीन की सालाना 12 करोड़ डोज बनाने की योजना पर काम कर रही है और तीन डोज और बिना सुई की वजह से इसके साइड इफेक्ट की आशंका भी कम बताई जा रही है। एक और बड़ी बात ये है कि यह वैक्सीन 2 से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान पर स्टोर की जाती है, लेकिन 25 डिग्री तापमान पर कम से कम तीन महीने तक रखने के बाद भी इसने अच्छी स्थिरता दिखाई है। इसका फायदा यह हो सकता है कि इसकी ढुलाई आसान हो जाएगी और इसे सुरक्षित रखने के लिए कोल्ड चेन की चुनौतियों का भी सामना नहीं करना पड़ेगा।
source: oneindia.com

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