Hassen Dillruba ने फैंस के उम्मीदों पर फेरा पानी, स्टारकास्ट होने के बावूजद भी फीकी पड़ी फिल्म

अश्वनी कुमार, मुंबई। ट्रेलर जब कुछ और निकले और पिक्चर कुछ और तो बड़ा दर्द होता है। 'हसीन दिलरुबा' (Haseen Dillruba Review) का ट्रेलर देखकर लगा था कि राइटर कनिका ढिल्लों और तापसी पन्नु की केमिस्ट्री कुछ कमाल रंग दिखाएगी । लेकिन इस बार मामला उलटा हो गया। मनमर्ज़ियां से बनी ये कमाल जोड़ी इस बार ऐसी औंधे मुंह गिरी है कि पूछिए नहीं। कहानी में सब कुछ है, एक बड़े शहर की ऊंची-ऊंची सोच वाली हॉट लड़की, एक छोटे शहर का प्यार तलाशता एक लड़का। हरिद्वार के ज्वालापुर का बैकड्रॉप, सासू मां की उम्मीदें, मायके वालों की सलाहें, एक दोस्त, एक आशिक, लेकिन फिर भी कुछ कमी है।

एक्चुली इस बार कमी है राइटिंग में। कनिका ढिल्लों ने इस बार हसीन दिलरूबा को गढ़ने में अपनी मनमर्ज़िया का सस्ता वर्ज़न दिखा दिया है। दरअसल - बस और ट्रेन स्टेशन पर बिकने वाली - मर्डर मिस्ट्री जैसी - थ्रिल, सस्पेंस और सेंसुअश फिल्म बनाने के चक्कर में हसीन दिलरुबा जो एक बार फिसली, तो फिसलती चली गई। कहानी शुरु होती है एक धमाके से। धमाके में हाथ पर लिखा - रानी मिलता है... यानि पति की मौत हो गई है। पत्नी का अफेयर, दूसरे लड़के नील के साथ चल चुका है, ये एक खुला सच है। पति और पत्नी के बीच चलती खींचतान के गवाह सब हैं, ज़ाहिर है कि शक़ पत्नी पर जाएगा। ऐसे में अब सस्पेंस बनाना है, क़ातिल को बचाना है... बीच-बीच में रानी के कैरेक्टर में ऐसा कुछ दिखाना है कि वो शक़ उस पर से हट ना पाए। लेकिन उपन्यास टाइप की ये कहानी डेवलप करने के चक्कर में, राइटर कनिका ढिल्लों इस बार मिस हो गईं।
नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई हसीन दिलरूबा के पास तापसी पन्नू जैसी काबिल स्टार, विक्रांत मैसी जैसा मंझा कलाकार, हर्षवर्धन राणे जैसा उम्मीदों से भरा हुआ एक्टर सब कुछ था। मगर ये परफेक्ट कॉम्बीनेशन, सतही कहानी और चलताऊ डायलॉग्स की भेंट चढ़ गए।
डायरेक्टर विनील को बहुत दिनों के बाद कुछ अच्छा करने का मौका मिला था, उन्होने कोशिश की भी। लेकिन कहानी शुरु में अटकती है, बीच में लटकती है और क्लाइमेक्स में फिसलती है। गाने फिल्म में सूट करते हैं, लेकिन फिल्म ख़त्म होने पर याद नहीं रहते। यनि यहां भी पासिंग मार्क।
परफॉरमेंस पर आएं... तो इस तापसी हॉट लगी हैं, एक्सप्रेशन्स भी अच्छे हैं, लेकिन तापसी के तेवर गायब हैं। उनके कैरेक्टर में गुंजाइश बहुत थी, लेकिन वही पासिंग मार्क वाली बात उन पर भी लागू होती है। विक्रांत मैसी इस फिल्म में बहुत कुछ करना चाहते थे, लेकिन बड़ी एक्ट्रेस के साथ पैकेज डील में आए विक्रांत की परफॉरमेंस एबव एवरेज है, ब्रिलिएंट नहीं। हर्षवर्धन राणे इस तिकड़ी में सबसे ज़्यादा निखर कर आए हैं। उनमें स्टार वाली बात तो है। आदित्य श्रीवास्तव यानि सीआईडी के दया अपने फॉर्म में हैं। बाकी कैरेक्टर्स को ज़्यादा निखरने का स्कोप नहीं मिला है।
वैसे ये बता दूं कि हसीन दिलरूबा इतनी भी बुरी फिल्म नहीं है, एक बार देखी जा सकती है। दूसरी कई फिल्मों से बेहतर है, लेकिन जब आपको किसी स्टूडेंट से टॉप करने की उम्मीद हो और वो सिर्फ़ 50 परसेंट मार्क्स लाकर पास हो जाए, तो ज़्यादा तकलीफ़ होती है।
हसीन दिलरूबा को 2.5 स्टार।

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