Haseen Dillruba Review: छोटे कस्बे में बसा पल्प फिक्शन है 'हसीन दिलरुबा'

Haseen Dillruba Review: पल्प फिक्शन हिंदी साहित्य की अवैध संतान मानी जाती है जबकि हिंदी फिल्मों में पल्प फिक्शन श्रेणी के उपन्यासों पर करीब 5 दशकों से फिल्में बनती आ रही हैं. अधिकांश उपन्यासकारों को कहानीकार का क्रेडिट तक नहीं मिलता, पैसा मिलना तो छोड़िये. परिस्थितयों में परिवर्तन आया है और फिल्म की कहानियां मुंबई या दिल्ली छोड़कर, चंडीगढ़, कानपुर से आगे निकल कर बरेली, अलीगढ़ और इन शहरों के कस्बों में पहुंच गयी है. आकार में छोटे इन शहरों में पल्प फिक्शन धड़ल्ले से बिकता है. बस स्टैंड या रेलवे के एएच व्हीलर के पास वेद प्रकाश शर्मा, सुरेंद्र मोहन पाठक, अनिल शर्मा जैसे उपन्यास मिल जाते हैं. इसी तरह के किसी उपन्यास की कहानी जैसी है नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ फिल्म 'हसीन दिलरुबा'. फिल्म मज़ेदार है, थोड़ी एडिटिंग में कमी रह गयी बस.हसीन दिलरुबा की लेखिका हैं कनिका ढिल्लों जो अमृतसर की रहने वाली हैं, मुंबई में और लंदन में पढ़ी हैं और शाहरुख़ खान की कंपनी रेड चिलीज़ से काफी समय से जुडी हुई हैं. कनिका की आखिरी रिलीज़ फिल्में थी 'जजमेंटल है क्या', 'मनमर्ज़ियां' और नेटफ्लिक्स की ही फिल्म 'गिल्टी'. तीनों फिल्में कुछ खास पसंद नहीं की गयी थी. जजमेंटल है क्या में कंगना राणावत का अभिनय अच्छा था लेकिन फिल्म कमजोर निकली. मनमर्ज़ियां भी फ्लॉप ही रही थी और कियारा अडवाणी वाली गिल्टी तो समझने में समय लग गया.हसीन दिलरुबा में 'मनमर्ज़ियां' की तरह दो हीरो हैं, एक तापसी पन्नू हैं. दिल्ली की तेज लड़की रानी कश्यप (तापसी पन्नू) की शादी दो बॉयफ्रैंड्स से ब्रेकअप के बाद छोटे शहर के बिजली विभाग के इंजीनियर ऋषि (विक्रांत मैसी) से हो जाती है. तापसी पल्प फिक्शन पढ़ने की शौकीन है और उसके मन में जीवन साथी की जो तस्वीर है विक्रांत उसके ठीक विपरीत हैं. दोनों कोशिश करते हैं अपने दिल की बात एक दूसरे को समझाने की लेकिन बात बनती नहीं. विक्रांत के रिश्ते के भाई नील (हर्षवर्धन राणे) एक स्वछन्द किस्म के नौजवान हैं, उनकी स्टाइल से तापसी प्रभावित हो जाती हैं और उनसे शारीरिक संबंध बना लेती हैं. तापसी विक्रांत को छोड़ कर हर्ष के साथ जाने की प्लानिंग करती है और विक्रांत को बता भी देती हैं लेकिन इस बीच कमिटमेंट से दूर रहने वाले हर्ष गायब हो जाते हैं. तापसी फिर विक्रांत के साथ अपने सम्बन्ध सुधारने की कोशिश करती है और दोनों पिछला सब कुछ भूल कर नयी शुरुआत करते हैं. कुछ समय बाद घर में विस्फोट होता है और विक्रांत की मौत हो जाती है. पुलिस को शक होता है तापसी पर और वो उसे अलग अलग तरीके से जुर्म कुबूल करने के लिए मजबूर करती है. हकीकत क्या है, ये इस फिल्म का सस्पेंस है.विज्ञापन फिल्मों की दुनिया में एक प्रसिद्ध नाम विनिल मैथ्यू इस फिल्म के निर्देशक हैं. उन्होंने इसके पहले परिणीति चोपड़ा सिद्धार्थ मल्होत्रा अभिनीत हंसी तो फंसी फिल्म का निर्देशन किया था. हसीन दिलरुबा उनकी दूसरी फिल्म है. इस फिल्म में विनिल ने टेलीविजन से जुड़ी लेखिका अंकना जोशी के डायलॉग की मदद से फिल्म में हंसते मुस्कुराते कई दृश्यों से रोमांस और कॉमेडी का मिला जुला स्वरुप प्रस्तुत किया है. तापसी और विक्रांत के बीच के सीन गुदगुदाते हैं. शादी के लिए तापसी को देखने के लिए आये विक्रांत से अपने किचन का पंखा सुधरवाना, अपनी मासी के कहने पर बार बार पल्लू गिरा कर तापसी का विक्रांत को रिझाने की कोशिश करना, विक्रांत का चाय बनाना जैसे कुछ रोज़मर्रा के किस्सों की तरह अपने से लगते हैं.. विनिल ने थोड़ी सी बोझिल पटकथा को बांध के रखने में पूरी मेहनत की है.हर्षवर्धन राणे युवा लड़कियों को बहुत पसंद हैं. उनकी फिल्म सनम तेरी कसम से उनकी प्रसिद्धि कुछ ज़्यादा ही बढ़ गयी थी हालांकि उन्हें बहुत काम नहीं मिला. इस फिल्म में उनकी भूमिका छोटी है. एक केयर फ्री नौजवान जो रिवर राफ्टिंग जैसे खेलों में दिलचस्पी रखता है, कोई मॉरल नहीं है, अपनी भाभी के साथ संबंध बनाने में उसे कुछ नहीं लगता. अपने ही भाई को धोखा देने में और उसे पीटने में भी उसके मन में कोई अफसोस नहीं होता. हर्षवर्धन की डायलॉग डिलीवरी इतनी प्रभावी नहीं है. उनके पास एक्सप्रेशन भी कम हैं इसलिए वो ये छोटा रोल निभा ले जाते हैं, हालांकि इम्प्रेस नहीं करते. विक्रांत मैसी एक छोटे शहर के बाशिंदे हैं लेकिन मॉडर्न ख़यालात रखना चाहते हैं. शाकाहारी घर में मटन खा लेते हैं, रविवार के दिन मुफ्त में मोहल्ले के लोगों के टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन ठीक करते हैं और अपनी पत्नी की बेवफाई को समझ नहीं पाते हैं. यश चोपड़ा की फिल्म सिलसिला में संजीव कुमार को जब अपनी पत्नी रेखा और अमिताभ के प्रेम संबंधों का पता चलता है तो वो जिस तरह अंदर ही अंदर छटपटाते हैं, विक्रांत ने उसी मिज़ाज का अभिनय किया है. विक्रांत की रिएक्शन पावर बहुत जबरदस्त है और उनकी प्रतिभा इस फिल्म में साफ नजर आती है. उन्हें और काम मिल सकता है लेकिन वो कन्वेंशनल हीरो की तरह नहीं हैं इसलिए शायद निर्माता उन्हें लेने में डरते हैं.हसीन दिलरुबा के प्रेम त्रिकोण का तीसरा कोण है तापसी पन्नू जो इस फिल्म का केंद्र हैं और सबसे कमज़ोर कड़ी हैं. दिल्ली में रहने वाली लड़की जिसका एक बॉयफ्रेंड 5 साल और एक बॉयफ्रेंड 2 साल तक चला हो, एक सीधे सादे लड़के के शादी के लिए हाँ कह देती है. प्रेम का अनुभव कर चुकी लडकियां, लड़कों के किरदार को जल्दी भांप लेती हैं. इसके बावजूद तापसी विक्रांत से शादी कर लेती हैं. अपनी मासी के कहने सुनने में रहती हैं और शादी के बाद जिस एडवेंचर की तलाश में वो रहती हैं, वो बड़ा ही सतही दिखाया गया है. मर्डर मिस्ट्री नॉवेल्स पढ़ते पढ़ते उनका दिमाग भी खुराफाती हो जाता है लेकिन उनका किरदार कभी भी ऐसा रूप नहीं इख़्तियार कर पाता जहां, उनसे या तो नफरत की जा सके या सहानुभूति दिखाई जा सके. अपने अधिकारों का झंडा उठाने वाली फेमिनिस्ट लड़की का किरदार वो पहले भी निभा चुकी हैं और इस रोमांटिक फिल्म में भी वो अपनी अदाकारी में कोई नयापन नहीं ला पाती. सिर्फ इंस्पेक्टर (आदित्य श्रीवास्तव) के साथ वाले सीन में उनका अभिनय अच्छा है. किसी उपन्यास में पढ़ी तकनीक से वो जिस तरह से 'लाय डिटेक्टर टेस्ट' से बचती हैं, वो मज़ेदार है. तापसी को अपने रोल्स के चयन में ध्यान रखना होगा और ये तो खासकर देखना होगा कि वो टाइपकास्ट तो नहीं हो रहीं हैं. इस फिल्म में उनका काम काफी औसत माना जा सकता है.फिल्म की सिनेमेटोग्राफी जयकृष्ण गुम्माडी ने की है और अच्छा काम किया है. तापसी की खूबसूरती को अच्छे से दिखाया है. हंसी तो फंसी, गैंग्स ऑफ़ वासेपुर, न्यूटन, और कलंक जैसी फिल्मों की एडिटर श्वेता वेंकट ने फिल्म को ठीक ठाक एडिट किया है. इस फिल्म में से 15 मिनिट और कम किये जा सकते थे. विक्रांत और तापसी के कुछ सीन बिना बात के ही फिल्म में घुसे हुए लगते हैं और इसी वजह से तापसी के पुलिस थाने के दृश्य बेहतर हो सकते थे. अतुल तिवारी का किरदार यूँही चला आता है. आशीष वर्मा एक अच्छे अभिनेता हैं लेकिन इस फिल्म में उनके साथ नाइंसाफी की गयी है. तनु वेड्स मनु या रांझणा में छोटे शहरों की जो आदतें पकड़ी गयी थीं, इस फिल्म से पूरी तरह गायब हैं और इसी वजह से फिल्म से कोई रिश्ता नहीं जुड़ पाता। संगीत अमित त्रिवेदी का है. फिसल जा तू के अलावा कोई और गाना प्रभावी नहीं है.बहुत उम्मीदों से फिल्म मत देखिएगा. फिल्म का पहला हिस्सा अच्छा है. हल्का फुल्का रोमांस, मज़ाक, थोड़ी मस्ती और थोड़ी प्यारी सिचुएशंस हैं. दूसरे हिस्से में विक्रांत की हत्या का षड्यंत्र रचा जाता है और उसे दिखाने के लिए इंस्पेक्टर को एक उपन्यास पढ़ते हुए दिखाया है जो कि दर्शकों की थ्रिल की उम्मीद पर पानी फेर देता है. घर बैठे हैं तो फिल्म देख लीजिये. टाइम पास हो जायेगा.

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