पेट्रोल-डीजल के दामों में रिकार्ड बढ़ोतरी से सब्जी, फल, किराना, ट्रांसपोर्ट सब महंगा

नई दिल्ली. पेट्रोल-डीजल के दामों में रिकाॅर्ड बढ़ोतरी से सिर्फ कार-बाइक चलाना ही महंगा नहीं हो रहा है. बल्कि अब कोरोनाकाल में पहले से संकट से जूझ रही देश की अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ने लगा है. ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट में इजाफा होने से तकरीबन हर चीजों के दाम बढ़ने लगे हैं जिससे महंगाई आम आदमी की कमर तोड़ने लगी है. न्यूज18 की इस खास रिपोर्ट में पेट्रोल-डीजल के दामों में वृद्धि से देश की अर्थव्यवस्था और आम आदमी पर असर जानिए. सोमवार को दिल्ली में पेट्रोल के भाव प्रति लीटर 99.86 रुपए और डीजल के दाम 89.36 रुपए पर पहुंच गए है. मंुबई में यही भाव क्रमश: 105.92 और 96.91 पहुंच गए हैं. देश में सबसे बड़ी ऑयल कपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (Indian Oil corporation) के आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन साल में मुंबई में पेट्रोल का भाव 25 फीसदी से ज्यादा बढ़ा है. इसी दौरान डीजल के भाव में करीब 33 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों का सीधा असर मुद्रास्फीति (inflation) यानी महंगाई पर पड़ रही है. उधर, दूसरी कमोडिटी (commodities) की कीमतों में भी तेजी का रुख है. यही नहीं छोटे-छोटे लेकिन जरूरी चीजों के दाम बढ़ गए हैं. हाल ही में अमूल ने भी अपने दुग्ध उत्पादों के दामों में इजाफे की घोषण की है. इसी तरह से, साबुन, तेल, ग्लास, टूथपेस्ट, किचन एम्पलायंसेस, घरेलू उपकरण सबके दाम बढ़े हैं. पढ़ें : नौकरी की बात : वीडियो देखकर खाना बनाना सीख सकते हैं लेकिन स्किल में महारत हासिल करने के लिए मेंटर जरूरी ट्रांसपोर्ट की लागत करीब 30 से 35 फीसदी बढ़ी ऑल इंडिया ट्रांसपोर्ट वेलफेयर एसोसिएशन के चेयरमैन प्रदीप सिंघल बताते हैं कि डीजल के दाम बढ़ने से ही ट्रांसपोर्ट की लागत बढ़ गई है. यही नहीं यदि लॉकडाउन के बाद से डीजल की कीमतें देखी जाए तो इसमें औसत 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. यही नहीं, सैनिटाइजेशन, टोल, इंश्योरेंस और मेंटेनेंस कॉस्ट में भी इजाफा हो गया है. कुल मिलाकर ट्रांसपोर्ट की लागत करीब 30 से 35 फीसदी बढ़ गई है. कोरोनामहामारी की वजह से डिमांड कम हुई, इसलिए भाड़े में ज्यादा बढ़ोतरी संभव नहीं है. फिर भी 15 से 20 फीसदी तक फ्रेट दरें बढ़ाना जरूरी है. ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कॉन्ग्रेस (AIMTC) के प्रेसिडेंट कुलतारन सिंह अटवाल ने कहा कि पेट्रोल और डीजल की ऊंची कीमतों के चलते लाखों छोटे ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर्स और उनसे जुड़े लोगों की रोजी-रोटी पर असर पड़ा है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार ईंधन की कीमतों में कमी नहीं करती तो वे इस हफ्ते देशभर में विरोध जताएंगे. जरूरत पड़ने पर हड़ताल की भी योजना है. भाड़े में 20 से 25 फीसदी तक बढ़ोतरी करने का फैसला करीब 90 लाख ट्रक ऑनर्स के संगठन ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआईएमटीसी) के प्रवक्ता नवीन कुमार गुप्ता कहना है कि बीते कुछ सालों से डीजल के रेट लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन मांग न होने से फ्रेट की दरें वर्ष 2012 जितनी ही हैं. बढ़ती लागत को देखते हुए ट्रांसपोर्टर अब भाड़ा बढ़ाने पर भी विचार करने लगे हैं. एआईएमटीसी वेस्ट जोन के अध्यक्ष विजय कालरा ने कहा कि हमने तय किया है कि भाड़े में 20 से 25 फीसदी तक बढ़ोतरी की जाए. इस पर औपचारिक फैसला इसी सप्ताह हो जाएगा. यदि ट्रांसपोर्ट महंगा हुआ तो इसका असर सब्जी और किराना समेत सभी तरह के उत्पादों पर पड़ेगा. पढ़ें : विदेशी पर्यटक भारत में रोजाना ढाई हजार खर्च करते हैं, इन्हें लुभाने के लिए सरकार ने शुरू की बड़ी स्कीम फल-सब्जियों पर माल भाड़े में 25 प्रतिशत का इजाफा दिल्ली स्थित आजादपुर सब्जी मंडी के अध्यक्ष एमआर सिपलानी बताते हैं कि अभी डिमांड ज्यादा नहीं है, इसलिए माल भाड़े में बढ़ोतरी कम हुई है., लेकिन आने वाले समय में फल-सब्जियों को लाने वाले ट्रकों का माल भाड़ा बढ़ सकता है. थोक सब्जी व्यापारी पवन खटीक का कहना है कि फल-सब्जी की कुल कीमत में भाड़े का योगदान 30 प्रतिशत तक रहता है, इसलिए भाड़ा 10 से 20 प्रतिशत भी बढ़ता है तो सब्जियां भी 10 प्रतिशत तक महंगी हो जाएंगी. हालांकि, बारिश की वजह से सब्जियों की आपूर्ति कम है, इसलिए सब्जी के दामों में 30 से 40 प्रतिशत का इजाफा हो चुका है. डीजल के दाम बढ़ने से ट्रांसपोर्ट के महंगे होने का गणित समझे एआईएमटीसी वेस्ट जोन के अध्यक्ष विजय कालरा ने बताया कि ट्रांसपोर्ट की लागत में 65% हिस्सा डीजल का होता है. 20-25% हिस्सा मेंटनेंस, लोन किस्त आदि का होता है. इंदौर से चेन्नई तक अगर एक ट्रक (16 टन वाला) अभी 65 हजार रुपए में बुक होता है तो इसमें करीब 40 हजार रुपए डीजल का लग जाता है. ट्रांसपोर्टर के पास 25 हजार बचते हैं, जिसमें मेंटेनेंस, ड्राइवर की सैलरी, किस्तें और कमाई आदि का खर्च निकलता है. अब डीजल का खर्च 8,000 बढ़कर 48 हजार रुपए हो जाएगा. अन्य खर्चों के लिए 17 हजार ही बचेंगे. इसकी भरपाई कहीं न कहीं भाड़े के रेट बढ़ाकर ही हो सकती है. ओवरआल असर : लोगों की खर्च करने योग्य आय घटी इक्रा (Icra) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पेट्रोल और डीजल पर ज्यादा टैक्स के चलते लोगों की खर्च करने योग्य आय (disposable income) घट रही है. इससे महंगाई पर भी दबाव बढ़ रहा है. इक्रा के वाइस-प्रेसिडेंट प्रशांत वशिष्ठ ने कहा कि पेट्रोल और डीजल की ऊंची कीमतों का असर ग्रोथ पर पड़ेगा. यह अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने की संभावनाओं को भी प्रभावित करेगा. कीमतें एक स्तर से ज्यादा हो जाने पर लोगों को दिक्कत होने लगती है. वे ट्रेवल करना कम कर देते हैं और ईंधन खर्च (fuel expediture) घटाना करना शुरू कर देते हैं. देश पर असर : वित्तीय घाटे में हो रहा इजाफा भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है. हमारे यहां सबसे अधिक तेल सऊदी अरब और इराक से आयात किया जाता है. तेल का इतना बड़ा आयातक देश होने की वजह से भारत पर विदेशी मुद्रा भंडार का अतिरिक्त भार पड़ता है. आरबीआई की एक रिपोर्ट कहती है कि कच्चे तेल के दामों में प्रति बैरल $10 की कीमत वृद्धि होने से भारत सरकार का 12.5 बिलियन डॉलर का घाटा बढ़ जाता है. भारत 100 बिलियन डालर से अधिक का खर्च पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर करता है. वर्तमान में बढ़ते कच्चे तेल के दाम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही रूप से देश की अर्थव्यवस्था में महंगाई का कारण बन जाते हैं. पिछले सालों में पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में ऐतिहासिक बढ़ोतरी हुई है. राज्य सरकारों का राजस्व अप्रत्याशित रूप से घटा अर्थशास्त्री मदन सबनबीस बताते हैं कि तेल के दामों में बेतहाशा वृद्धि की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ने वाला है. तेल के बढ़ते दाम महंगाई का एक बहुत बड़ा कारण बनेंगे और आम जनता की कमाई और खर्च में बड़ी गिरावट पैदा करेंगे. कोविड-19 की आर्थिक तबाही ने पहले ही आम जनता की कमाई में बड़ी कटौती की है और तेल के बढ़ते दाम इस प्रभाव को दोगुना कर देंगे. लेकिन सरकार भी यहां बहुत कुछ कर नहीं सकती है. आर्थिक गतिविधियों के बंद रहने की वजह से पहले ही वित्तीय घाटा अप्रत्याशित रूप से बढ़ा हुआ है. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर संग्रह भी निर्धारित लक्ष्य से बेहद कम है. इधर राज्य सरकारें तो बिल्कुल ही नहीं चाहेंगी कि उनको किसी तरीके की कर कटौती के जरिए तेल के दामों को कम करना पड़े. कोविड-19 के दौरान पहले ही राज्य सरकारों का राजस्व अप्रत्याशित रूप से घटा है और ऐसी स्थिति में किसी भी तरीके की कर कटौती राज्य सरकारों के खजाने को खाली कर देगी. इसलिए आने वाले अभी कुछ महीनों तक तेल के दामों में किसी भी तरीके की बड़ी कटौती का अनुमान नहीं किया जा सकता है. दाम बढ़ने की वजह, सरकार ने जमकर बढ़ाया टैक्स पेट्रोल पर केंद्र सरकार का टैक्स (tax) पिछले सात साल में बढ़कर तीन गुना हो गया है. इसी दौरान डीजल पर केंद्र सरकार का टैक्स करीब सात गुना हो गया है. इससे पेट्रोल और डीजल की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई हैं. देश के कई हिस्सों में पेट्रोल का भाव 100 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा हो गया है. वैश्विक मांग बढ़ने की यह है वजह इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी ने अनुमान जताया है कि क्रूड की वैश्विक मांग महामारी के पूर्व के स्तर पर लौट सकती है. अमेरिका में लॉकडाउन में छूट के कारण अधिक वाहनों का परिवहन और हवाई यातायात बढ़ने से तेल की मांग में वृद्धि हो रही है. जबकि, उत्तरी कनाडा और उत्तरी सागर में मेंटेनेंस का मौसम है. इसके अलावा, तेल बाजार में संतुलन के लिए ओपेक (OPEC)का कम्प्लायंस, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ तेहरान के परमाणु समझौते में शामिल होने पर बातचीत खींचने से ईरान से जल्द ही बाजार में अतिरिक्त आपूर्ति आने की संभावना धूमिल हो गई है.

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