समूह से जुड़कर महिलाएं कर रहीं रोजगार, बांका में प्रशिक्षण लेकर 1700 परिवारों ने शुरू किया अपना काम

बांका [सुधांशु कुमार]। निश्शक्त और बेसहारा महिलाएं, अबतक भोजन से लेकर हर चीज के लिए दूसरों की दया पर आश्रित थीं, आज वे स्वरोजगार से स्वावलंबी बन रहीं हैं। सतत जीविकोपार्जन योजना इन महिलाओं के जीवन में नया सवेरा लेकर आया है।

इस योजना के तहत जिले में 2112 लक्षित परिवारों को चिन्हित किया गया है। इसमें से 693 परिवारों को जीविकोपार्जन के लिए सहयोग प्रदान किया गया है। साथ ही अब तक 1743 महिलाओं को सूक्ष्म व्यवसाय करने के लिए प्रशिक्षण दिया जा चुका है।
तीन फेज में किया गया है लागू
जिले में सतत जीविकोपार्जन योजना को तीन चरणों में लागू किया गया है। पहले चरण में रजौन और धोरैया प्रखंड में 2018-19 में शुरू किया गया। दूसरे चरण में 2019-20 में फुल्लीडुमर, बेलहर, बांका सदर और बौंसी प्रखंड में शुरु किया गया है। वहीं, तीसरे चरण में 2020-21 में चांदन, कटोरिया और शंभुगंज प्रखंड में इस योजना को लागू किया गया है। हालांकि अब तक अमरपुर और बाराहाट प्रखंड में इसे शुरू नहीं किया गया है।
इस तरह दिया जाता है योजना का लाभ
सतत जीविकोपार्जन योजना का लाभ बेहद गरीब परिवार को दी जाती है। ऐसे परिवार की पहचान की जिम्मेदारी जीविका समूह को दी गई है। इसके बाद उसे रोजगार को लेकर प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके बाद सतत जीवकोपार्जन योजना के तहत कारोबार शुरू करने के लिए तीन चरणों में सरकार अनुदान देती है। पहले चरण में 20 हजार रुपये तक अनुदान दिया जाता है। इसके बाद दूसरे और तीसरे चरण में अनुदान दिया जाता है। इन परिवार को कारोबार करने में कोई परेशानी न हो इसके लिए प्रत्येक 30 से 35 परिवारों पर एक मास्टर संसाधन सेवियों का चयन किया गया है। जिले में 52 चयनित मास्टर संसाधन सेवियों को प्रशिक्षित किया गया है। जो इन परिवारों की मॉनीटङ्क्षरग कर रहे हैं।
केस स्टडी-1
रजौन मझगांय निवासी कल्पना देवी के पति की करीब छह साल पहले मौत हो गई थी। बेटे की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। ऐसे में उनको दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रहा था। किसी तरह वह गुजर-बसर कर रही थी। लेकिन अब इसे योजना का लाभ मिलने के बाद वह किराना दुकान चला रहीं हैं। इससे वह ठीक से गुजर-बसर कर रही हैं।
केस स्टडी-2
रजौन सिमरोधा गांव निवासी निर्मला देवी के पति का निधन भी कई वर्ष पूर्व हो गया है। उनको एक पुत्री है, जिसकी उम्र महज आठ साल है। खेती-किसानी के लिए जमीन भी नहीं है। ऐसे में उनके सामने परिवार का भ्रण-पोषण करना बड़ी चुनौती थी। इस बीच जीविका समूह से प्रेरित होकर उन्होंने दुकान शुरू की। साथ ही सरस मेला पटना आदि में भी कतरनी चुड़ा, चावल आदि का काउंटर लगाती हैं।
कोट
यह योजना निश्शक्त और बेसहारा महिलाओं के लिए है। इसके माध्यम से छोटे स्तर पर कारोबार शुरू करने के लिए मदद की जाती है। साथ ही रोजगार शुरू करने से पहले प्रशिक्षण भी दिया जाता है। जिससे वह परिवार का भ्रण-पोषण कर सके।
-संजय कुमार ,जिला परियोजना प्रबंधक ,बांका

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