सारण में खनक कर टूटी गुलामी की जंजीरें तो बदला शहीदों का गांव

संजय सिंह, दाउदपुर (सारण) : मांझी प्रखंड का दाउदपुर व जैतपुर मठिया गांव छपरा-सिवान राष्ट्रीय राज्यमार्ग किनारे बसा स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीदों की पावन भूमि है। ब्रिटिश हुक्मरानों का जब दमन चक्र चल रहा था, तब इस गांव के वीर सपूत आत्मबल लेकर आजादी पाने का अभियान चला रहा थे। उनके अभियान का बढ़ता चरण 13 अगस्त 1942 को सिवान पहुंचा। वहां के पोस्ट आफिस पर लहरा रहे ब्रिटिश ध्वज को उखाड़ वीर बांकुरों ने तिरंगा फहरा दिया। तब अंगेज दनादन गोलियां दागने लगे। इस गांव के सपूत छठू गिरि, कमता गिरि व फागू गिरि शहीद हो गए। पांच वर्ष बाद 15 अगस्त 1947 को इनके अभियान के माथे पर विजय तिलक लगा। गुलामी की जंजीरें खनक कर टूटीं। सांस लेने की आजादी मिली। आजादी के साढ़े सात दशक के सफर में शहादत वाले इस गांव में बदलाव व विकास की कई बयारें बहीं। -----------------

ढि़बरी से लालटेन और अब जल रहे एलीईडी बल्ब
जैतपुर मठिया गांव के 70 वर्षीय श्रीराम गिरि शनिवार की दोपहर अपनी झोपड़ी में सकुन से लेटे हैं। बगल में बिजली का पंखा चल रहा है। वे नींद में हैं। आवाज लगाने पर झट से उठ बैठते हैं। आजादी के बाद गांव के विकास के सवाल पर स्वतंत्रता के पूर्व से लेकर वर्तमान तक की दास्तान सुनाने लगते हैं। कहते हैं, आज जो दिख रहा है उसकी कल्पना तक अंग्रेजों के शासन काल में नहीं थी।
दादा जी व पिता जी बताते थे कि गुलामी काल में जब गर्मी पड़ती थी तो ताड़ के पत्तों का हाथ से बना पंखा या गमछे से पसीना सूखाते थे। आजादी के बाद बदलाव शुरू हुआ। आज देखिए मेरी झोपड़ी में बिजली का पंखा चल रहा है। गुलामी का दौर था तो रात के अंधेरे में उजाले के लिए घर में तील व सरसों की तेल से ढिबरी जलते थे। आजादी मिलने के कुछ दिन बाद केरोसिन मिलने लगा। लालटेन जलने लगे। अब तो घर-घर में एलीइडी बल्ब जल रहे हैं। ------------
गांव की पगडंडियां बनीं ढलाई वाली पक्की सड़क
दाउदपुर के मठिया गांव के 85 वर्षीय मोतीलाल गिरि गुलामी के दिनों की चर्चा होते ही पुरानी दिनों की याद में खो जाते हैं। कहते हैं कि अंग्रेजी शासन काल में करीब 15 घरों वाला उनका दाउदपुर मठिया गांव टापू जैसा था। गांव में आने-जाने के लिए कोई सड़क नहीं थी। पगडंडी पकड़कर लोग गांव में आते थे। उनकी बातों में हामी भरते हुए 80 वर्षीय बिंदा गिरि बताते हैं कि उन दिनों हमारे गांव के सभी लोगों के घर मिट्टी के थे। आज गांव में चारों तरफ ईंट के छतदार घर दिखाई देते हैं। तब की पगडंडी वाले रास्ते अब ढलाई वाली पक्की सड़क बन गई है। आजादी के बाद क्रमवार गांव का विकास हुआ है।
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वैद्य-हकीम की जगह अस्पताल में हो रहा इलाज
गांव के 40 वर्षीय लालबाबू गिरि बताते हैं कि गुलामी का दौर तो उन्होंने नहीं देखा, लेकिन बड़े बुजुर्गों से सुना जरूर है। उस जमाने में गांव का कोई व्यक्ति बीमार पड़ता था तो वैद्य-हकीम से इलाज करवाता था। अब स्थितियां बदल गईं हैं। गांव में अस्पताल है और दवाएं भी फ्री मिलती हैं। तब शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं थीं। आज स्कूल व अस्पताल दोनों हैं। खेतीबाड़ी में नई तकनीक आई। रोजगार के संसाधन भी हैं।
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सफर बदलाव का
- दाउदपुर-जैतपुर मठिया गांव के तीन शहीदों के खून से धरती माता का आंचल हो उठा था लाल
- आजादी के साढे़ सात दशक की सफर में शहादत वाले इस गांव में बही बदलाव व विकास की बयार
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13 अगस्त 1942 को सिवान पोस्ट आफिस पर तिरंगा फहराते गांव के तीन सपूतों ने दी थी शहादत
15 अगस्त 1947 के बाद आजादी के लिए कुर्बानी देने वाले शहीदों के गांव की बदल गई तस्वीर
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