संसद में गतिरोध खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री हस्तक्षेप करें, मॉनसून सत्र बढ़ाया जाए: मनोज झा

(आसिम कमाल)

नयी दिल्ली, आठ अगस्त राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सांसद मनोज कुमार झा ने सरकार पर पेगासस मुद्दे पर संसद में गतिरोध समाप्त करने के लिए ''वार्ता के द्वार बंद करने'' का आरोप लगाते हुए रविवार को कहा कि इसके समाधान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हस्तक्षेप करना चाहिए। उन्होंने कहा कि संसद के व्यर्थ गए समय के बदले मॉनसून सत्र का विस्तार किया जाना चाहिए।
राज्यसभा सदस्य एवं प्रभावशाली विपक्षी नेता झा ने इस बात के लिए भी सरकार की आलोचना की कि वह बार-बार यह कह रही है कि विपक्षी दलों के साथ संवाद कायम करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह नहीं होता कि आप ''जेब में हाथ डालकर, चेहरे पर कठोर भाव बनाकर कहें कि हमारे पास देने को बस यही है, कुछ और नहीं।''
झा ने पीटीआई-भाषा के साथ एक साक्षात्कार में कहा, ''संवाद कायम करने की आड़ में वे (सरकार) वार्ता के लिए दरवाजे बंद कर रहे हैं। मैंने कई बार यह कहा है कि संवाद बनाने की जिम्मेदारी जिन तथाकथित लोगों को दी गई, संभवत: उनके पास किसी तरह की ठोस पेशकश देने का अधिकार नहीं है।''
उल्लेखनीय है कि 19 जुलाई को संसद का मॉनसून सत्र शुरू होने के बाद से ही विपक्षी दलों के विरोध और गतिरोध के कारण सदन की कार्यवाही बाधित रही है। विपक्षी दल पेगासस जासूसी विवाद पर चर्चा की मांग पर अड़े हुए हैं और इससे एक गतिरोध बना हुआ है।
एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूह ने कहा है कि 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल फोन नंबर इजराइली कंपनी एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पाईवेयर का उपयोग कर निगरानी के लिए संभावित लक्ष्यों की सूची में थे। इसके अनुसार इसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी, दो केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल और अश्विनी वैष्णव, उद्योगपति अनिल अंबानी और कम से कम 40 पत्रकारों के नंबर शामिल थे। सरकार इस मामले में विपक्ष के सभी आरोपों को खारिज करती रही है।
पेगासस मामले पर विपक्ष की चर्चा की मांग और संसद में इसे लेकर बने गतिरोध के बारे में पूछे जाने पर झा ने कहा कि सरकार मीडिया में कहती है कि वह संवाद कायम करने का प्रयास कर रही है लेकिन इस तरह के प्रयासों का मतलब ''केवल सुनना नहीं, बल्कि समझना'' होना चाहिए।
राजद के वरिष्ठ नेता झा ने आरोप लगाया कि सरकार ''द्वेषपूर्ण भाषा'' का प्रयोग कर रही है जिससे ''गतिरोध'' खत्म होने की संभावना खत्म हो गई है।
उन्होंने कहा, ''यद्यपि यदि प्रधानमंत्री स्वयं हस्तक्षेप करें और अपने लोगों से गतिरोध खत्म करने तथा यह बोलने को कहें कि 'हम किसी भी विषय पर चर्चा के लिए तैयार हैं' तो चर्चा अब भी संभव है। जो समय व्यर्थ चला गया, उसके बदले अगर संभव हो तो सत्र की अवधि बढ़ाई जाए। हम 15 अगस्त के बाद भी चर्चा कर सकते हैं।''
यह पूछे जाने पर कि क्या मॉनसून सत्र के विस्तार से आगे का रास्ता निकल सकता है, जो 13 अगस्त को समाप्त होने वाला है, तो झा ने हां में जवाब दिया और संसद में महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के महत्व पर बल देने के लिए कोविड पर राज्यसभा में अपने भाषण का उल्लेख किया, जिसे व्यापक रूप से सराहा गया और जो सोशल मीडिया पर वायरल भी हुआ था।
संसद में कोविड-19 की दूसरी लहर पर विस्तार से चर्चा नहीं होने पर झा ने सरकार पर तथ्यों से खुलेआम इनकार करने का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा, ''जिस दिन मैंने (राज्यसभा में कोविड पर) भाषण दिया था, सरकार ने प्रतिक्रिया में कहा कि ऑक्सीजन की कमी के कारण किसी की मौत नहीं हुई। जब आप वैश्विक महामारी से लड़ते हैं तो आपको नाकामियों को स्वीकार करना चाहिए और सफलता का श्रेय भी लेना चाहिए। मैं सिर्फ केंद्र सरकार को दोष नहीं देता, बल्कि कई राज्य सरकारों ने भी तथ्यों से साफ इनकार किया है।''
यह पूछे जाने पर कि क्या विपक्ष को मॉनसून सत्र में पेगासस की जगह कीमतों में वृद्धि, किसान आंदोलन और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर अधिक ध्यान देना चाहिए था, झा ने कहा कि ये सभी मुद्दे अहम हैं और विपक्ष इन्हें लगातार उठा रहा है लेकिन पेगासस मामला, मीडिया में आईं खबरों में जासूसी का जो स्तर बताया गया है, उसे देखते हुए बेहद महत्वपूर्ण हो गया है।
उन्होंने कहा, ''मैं यह नहीं कहता कि हमारे लिए पेगासस पहले नंबर पर है लेकिन मीडिया में आईं खबरों के मुताबिक जासूसी के स्तर को देखते हुए यह महत्वपूर्ण हो गया है, दुनिया के कई देश इसकी जांच के आदेश दे रहे हैं लेकिन हमारे यहां तो स्वीकारोक्ति तक नहीं हो रही।''
जासूसी के आरोपों को सरकार द्वारा ''कोई मुद्दा नहीं'' कहे जाने पर झा ने कहा कि विस्तार से चर्चा के बाद यदि ऐसा साबित हो जाता है तो विपक्ष इसे स्वीकार कर लेगा लेकिन चर्चा ही नहीं कराना तो संसदीय लोकतंत्र के विचार के विपरीत है।
झा ने कहा, ''क्या हम भूल गए कि बोफोर्स (के सामने आने के बाद) चर्चा हुई थी, जवाहरलाल नेहरू सरकार के वक्त मूंदड़ा मामले पर भी चर्चा हुई थी जबकि उस वक्त तो विपक्ष लगभग आस्तित्व में ही नहीं था।''
झा ने हंगामे के बीच कुछ विधेयकों को पारित कराने के लिए भी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि विधेयकों को लगभग आठ मिनट में पारित कराया जा रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि यह नया सामान्य हो जाता है तो भविष्य की सरकारें भी इस मार्ग को अपना सकती हैं, जिससे बहस और चर्चा अतीत की बात बन सकती है।
वर्तमान संसद सत्र के दौरान दिख रही विपक्षी एकता के साथ ही यह पूछे जाने पर कि क्या 2024 के आम चुनावों के लिए महागठबंधन का आधार रखा जा रहा है, झा ने कहा कि जब संसद में पार्टियों के नेता समन्वय कर रहे होते हैं तो उनके दिमाग में 2024 नहीं होता और प्रमुख चिंता का विषय कृषि कानूनों को निरस्त कराना, मुद्रास्फीति और बेरोजगारी जैसे मुद्दे होते हैं।
झा ने यह भी कहा कि 2024 के लिए विचारों का गठबंधन होना चाहिए और राजद नेता तेजस्वी यादव के उस बयान की ओर ध्यान दिलाया कि कांग्रेस को भाजपा के खिलाफ गठबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण स्थिति में होना चाहिए क्योंकि वह लगभग 200 सीटों पर भाजपा के साथ सीधी लड़ाई में है।
उन्होंने साथ ही कहा कि भारत राज्यों का एक संघ है और ऐसी व्यवस्था एक विकल्प प्रदान करेगी जिसमें कांग्रेस और क्षेत्रीय दल एक संघीय मोर्चे की सच्ची भावना के साथ एकसाथ आएंगे।
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