रानी लक्ष्मीबाई और बेगम हजरत महल के जीवन की समानता के बारे में नयी किताब

नयी दिल्ली, आठ अगस्त भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 के विद्रोह में अवध की शासक बेगम हजरत महल और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने काफी अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि दोनों के बीच कभी मुलाकात नहीं हुई थी, लेकिन दोनों का ही जीवन 1857 के भारतीय विद्रोह में चुनौतियों से भरा रहा।

इतिहासकार रूद्रांगशु मुखर्जी की किताब 'एक बेगम और एक रानी: 1857 में हजरत महल और लक्ष्मीबाई' में दोनों बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन के अनछुए पहलुओं के बारे में लिखा गया है। यह पुस्तक पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया (पीआरएचआई) ने प्रकाशित की है।
इस पुस्तक में बेगम और रानी के जीवन तथा संघर्ष के विभिन्न पहलुओं के बारे में लिखा गया है। दरअसल, यह पुस्तक 'एक विद्रोह में दो महिलाओं' की कहानी है।
रानी लक्ष्मीबाई और बेगम हजरत महल दोनों का विवाह शाही घरानों में हुआ था, दोनों ने ही अपने-अपने पति द्वारा तय किए गए शासन और संस्कृति की परंपराओं को बनाए रखने का फैसला किया। लेकिन लॉर्ड डलहौजी ने झांसी पर 1854 में जबकि अवध पर 1856 में कब्जा कर लिया था। पुस्तक लिखने वाले रूद्रांगशु मुखर्जी अशोक विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर हैं।
प्रोफेसर मुखर्जी ने कहा, '' जब मैं लगभग 40 साल पहले एक शोध छात्र हुआ करता था, तब से ही मुझे 1857 के विद्रोह को लेकर विशेष रूचि रही है। मैंने अपनी अन्य पुस्तकों में विद्रोहियों के कार्यों और उनकी चेतना की स्थिति को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है। इस पुस्तक में मैंने दो उल्लेखनीय महिलाओं के कार्यों और नेतृत्व को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है और यह भी समझने की कोशिश की है कि कैसे एक को लोग अपना आदर्श मानते हैं जबकि दूसरे को लगभग भुला दिया जाता है।''
रानी लक्ष्मीबाई (1828-58) और बेगम हजरत महल (1820-79) ने ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने की कोशिश में अपने प्राणों की आहुति दे दी। दोनों ही ब्रिटिश शासन को विदेशी और दमनकारी मानती थीं।
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