लखीसराय में भारत माता का जयघोष कर वीर सपूतों ने दी थी कुर्बानी

लखीसराय। शहीदों के मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का बाकी यही निशां होगा.। स्वतंत्रता आंदोलन में लखीसराय जिले के वीर सेनानियों की कुर्बानी कभी भुलाई नहीं जा सकती है। लखीसराय रेलवे स्टेशन के पास मुख्य सड़क पर अवस्थित शहीद द्वार और उसके बगल में उपेक्षित पड़ा शहीद स्थल आज भी जिले के उन रणबांकुरे की यादव दिलाता है। 13 अगस्त 1942 को अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के तहत लड़ाई लड़ते हुए सेनानियों ने अपनी कुर्बानी दी थी। नौ अगस्त सोमवार को एक बार फिर शहीद वीर सपूतों को याद कर शहीद स्थल पर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाएगी। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान लखीसराय स्टेशन पर स्वतंत्रता सेनानियों की वीरता को देख अंग्रेजों ने अंधाधुंध गोली चलानी शुरू कर दी थी जिसमें आठ स्वतंत्रता सेनानी भारत माता की जयघोष करते अपनी कुर्बानी दे दी थी। उन्हीं वीर सपूतों की स्मृति में बना शहीद द्वार आज भी स्वतंत्रता आंदोलन की कहानी बयां कर रहा है। ----

अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते शहीद हो गए थे आठ स्वतंत्रता सेनानी
13 अगस्त 1942 को स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई में अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते जिले के आठ स्वतंत्रता सेनानी भारत माता की जय घोष करते हुए शहीद हो गए थे। इसमें सामनडीह के झरी सिंह, सदायबिगहा के बैजनाथ सिंह, सलौनाचक के गुज्जू सिंह, इंदुपुर के बनारसी सिंह, बड़हिया के महादेव सिंह और परशुराम सिंह, महसोरा के दारो सिंह एक साथ भारत माता की जय कहकर धरती पर सदा के लिए सो गए। अंग्रेजों ने खून की होली खेली। अपने साथियों को मरते देख पतनेर के यदुवंश सिंह, अखिलेश्वर सिंह एवं श्याम सुंदर सिंह सहित कई अन्य को गिरफ्तार कर लिया गया। ---
1947 में शहीद द्वार का हुआ था शिलान्यास
स्वतंत्रता सेनानियों की याद में 25 अगस्त 1947 को राजेश्वरी प्रसाद सिंह ने लखीसराय शहर के मध्य रेलवे स्टेशन के नजदीक शहीद द्वार का शिलान्यास किया। इसका निर्माण स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हुआ। 25 फरवरी 1951 को राज्य सरकार के तत्कालीन मंत्री डा. अनुग्रह नारायण सिंह ने उक्त शहीद द्वार का उद्घाटन किया था। तब से शहीद द्वार पर 15 अगस्त एवं 26 जनवरी को राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है। स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले पतनेर निवासी स्व. अखिलेश्वर प्रसाद सिंह ने 20 जनवरी 2004 को 13 अगस्त 1942 में शहीद हुए वीर सपूतों की याद में शहीद द्वार के पास एक शहीद स्थल निर्माण का शिलान्यास कराया लेकिन उनके निधन के बाद आज तक शहीद स्थल का निर्माण नहीं हो पाया है। शहीद स्थल के शिलान्यास के 16 वर्ष बीत जाने के बाद भी शासन-प्रशासन एवं क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने स्वतंत्रता सेनानियों के अधूरे सपने को पूरा करने के प्रति कभी रुचि नहीं ली।

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