यहां गांव की महिलाएं बनाती थी तिरंगा

सहरसा। एक समय था, जब देश की शान का प्रतीक तिरंगे का निर्माण गांव की महिलाएं करती थी। खादी ग्रामोद्योग से जुड़ी महिलाएं सूत की कताई कर तिरंगा बनाने के बाद सरकारी और गैर सरकारी कार्यालयों में आपूर्ति करती थी।

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर जोर-शोर से निर्माण किया जाता था। खादी भंडार के माध्यम से इसकी बिक्री होती थी। लेकिन 1984 में आयी बाढ़ के बाद प्रखंड क्षेत्र में बने नौ केंद्र बंद हो गया जो कभी शुरू नहीं हो सका।
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सूत कताई के बाद बनाया जाता था तिरंगा
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चरखा पर महिलाओं के द्वारा पूनी से सूत की कताई की जाती थी। सूत से करघा पर थान तैयार किया जाता था। थान को हरा, केसरिया एवं सफेद रंग में रंगाई किया जाता था। धूप में सुखाने के बाद विभिन्न साइज में कटिग कर सिलाई करके तिरंगा तैयार किया जाता। उसके बाद कुशल महिलाएं तिरंगे के बीच का सफेद रंग में चक्र बनाती थी। नौला की उमा देवी बताती है कि झंडा बनाने के काम में बहुत मन लगता था। उत्साह के साथ घर में बच्चे भी सहयोग करते थे।
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संचालित होता था नौ केंद्र
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प्रखंड के विभिन्न पंचायत में नौ केंद्र संचालित थे। जहां महिलाएं सूत काटने से लेकर खादी को बढ़ावा देने के लिए अन्य कार्य करती थी । कासीमपुर, नवहट्टा, बड़ाही, एकाढ़, मोहनपुर, मंझौल, डरहार व नौला में केंद्र संचालित था। एकाढ़ निवासी 83 वर्षीय राजकांत राय ने बताया कि 1984 में आई बाढ़ के बाद केंद्र तहस-नहस हो गया। उसके बाद इसे खड़ा करने के प्रति सरकार या प्रशासन ने कोई कदम नहीं उठाया गया ।
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कोट
खादी से जुड़े महिलाओं की तलाश कर नई पीढ़ी को भी इस हुनर की सीख दी जाएगी ।
राजेश कुमार, एसी
जीविका, नवहट्टा

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