क्रांतिकारी कमलानंद विश्वास के पराक्रम से हिल गई थी अंग्रेजी हुकूमत

अररिया। स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में सीमावर्ती प्रखंड क्षेत्र के रणबाकुरे के अमूल्य योगदान को भुलाया नही जा सकता। स्वतंत्रता प्राप्ति के 73 वर्ष बीत जाने के बाद भी इस मिट्टी में स्थानीय क्रांतिकारियों की खुशबू आज भी विधमान है। राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी हो या 15 अगस्त इन क्रांतिकारियों की याद स्वत: ताजा हो उठती है। स्वतंत्रता आंदोलन की सुलगी आग में अंग्रेजी शासन की जड़ हिलाने में जांबाज क्रांतिकारी कमलानंद विश्वास ने अहम भूमिका निभाई थी। गुलामी की जंजीरों में जकड़ी भारत माता तथा इनके सपूतों पर अंग्रेजों द्वारा हो रहे अत्याचार को देखकर अररिया जिले का लाल क्रांतिकारी कमलानंद विश्वास मात्र 19 वर्ष की आयु में 26 जनवरी 1932 को हाथों में तिरंगा थामे अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ा था। क्रांतिकारी वीर सपूत कमलानंद विश्वास का जन्म कुर्साकांटा प्रखंड क्षेत्र के बखरी फुलवारी गांव में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। वे शुरू से ही महात्मा गांधी और डा राजेंद्र प्रसाद को अपना आदर्श मानते थे। आगे चलकर इनसे प्रेरित होकर देश की आजादी के लिए आंदोलन में कूद पड़े थे। शुरुआती दौर में विश्वास छुप-छुपकर अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाकर कार्य करते रहे। 1932 में पुर्णिया में जब सत्याग्रह के समय भोला पासवान शास्त्री पर अंग्रेजों द्वारा लाठियां बरसाई जा रही थी तो उस आंदोलन में वे भी सक्रिए रहे। वही भारत छोड़ो आंदोलन के समय 23 अगस्त 1942 को विश्वास अन्य क्रांतिकारियों के साथ 1828 का बना कुआड़ी ओपी पहुंच थाने के आवश्यक कागजात को आग के हवाले कर दिया और जेल में बंद अपने साथियों को छुड़ाया। इस दौरान उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर कुआड़ी थाने की छत पर तिरंगा झंडा फहराने का ऐतिहासक कार्य किया। आजादी के दीवाने यही नही रुके। इस दौरान देशी शराब की दुकान तथा डाकघर में लूटपाट कर आग के हवाले कर दिया। इससे अंग्रजी शासन की नींव हिल गई और उन्होंने धोखे से जांबाज युवा क्रांतिकारी को पकड़कर बेरहमी से पीटा और अररिया हवालात में डाल दिया। अररिया हवालात में इस क्रांतिकारी ने 9 माह दो दिन कैद में रहे। पुर्णिया जेल में पांच माह एक दिन, पटना जेल में पांच माह बाईस दिन तथा भागलपुर जेल में तीन वर्ष सात माह बीस दिन का समय गुजारना पड़ा। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जांबाज सिपाही कमलानंद विश्वास को सीमावर्ती क्षेत्र ही नही बल्कि जिले के लोगों ने भी फूलों का हार पहनाकर अभिनंदन किया। माध्यम परिवार में जन्मे कमलानंद विश्वास 80 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। आज भी उन वीरों की गाथा सीमावर्ती प्रखंड क्षेत्र के लोग सम्मान के साथ याद करते हैं।


अन्य समाचार