पंचायती राज व्यवस्था में महिला जनप्रतिनिधियों को नहीं मिली आजादी

संसू,सिकटी (अररिया): इन पांच सालों में आरक्षण के बल पर महिलाओं के सिर पर मुखिया , सरपंच व समिति का ताज तो सजा, लेकिन पंचायत में उनकी भागीदारी शोपीस से अधिक कुछ नहीं रही। इन पांच सालों में पंचायत की जगह किचन में ही काम करती नजर आई। ऐसी ही स्थिति ज्यादातर त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में देखने को मिलती है। महिला मुखिया , सरपंच व पंसस चुनकर तो पहुंची, लेकिन कुछेक को छोड़कर अधिकांश कभी भी घूंघट से बाहर नहीं आ सकी। कहने को तो महिलाएं चुनकर असली जनप्रतिनिधि होती हैं, लेकिन पंचायत में उनकी भागीदारी धरातल पर देखने को नही मिली। सीमावर्ती प्रखंड क्षेत्र में इन पांच सालों में यहां महिला मुखिया , सरपंच व पंसस चुनकर तो पहुंची, लेकिन कभी भी घूंघट से बाहर नहीं आ सकी। कहने को तो महिलाएं चुनकर असली जनप्रतिनिधि होती हैं, लेकिन जनता उनके पति या परिवार के किसी पुरुष सदस्य को ही असली मुखिया , सरपंच व पंसस मानते हैं। वर्तमान समय में पंचायत चुनाव को लेकर तेज गति से मतदाताओं से हालचाल पूछने का सिलसिला चल रहा है। चौपाल लग रहे हैं। मतदाताओं से उनकी परेशानी पूछी जा रहीं है। वहां महिला जनप्रतिनिधि आपको बातचीत करती नहीं मिलेगी। वहां उनके पति या अन्य रिश्तेदार फोटो खींचवाते या सेल्फी लेते मिलेंगे। कई पंचायत की महिला जनप्रतिनिधि ऐसी भी हैं, जो अपने दम पर सत्ता को चलाती आ रही है। लेकिन अधिकांश महिला जनप्रतिनिधि ऐसी नहीं है । पंचायत स्तरीय ग्रामसभा, स्थायी सशक्त समिति, वित्त अंकेक्षण एवं योजना समिति की बैठकों में अधिकतर महिला जनप्रतिनिधि के साथ उनके अलग से जनप्रतिनिधि साथ होते हैं। त्रिस्तरीय पंचायत में सरकार ने महिलाओं को भागीदारी का मौका दिया। आधी आबादी पंचायती राज व्यवस्था के तहत पंचायतों में चुनी भी जाती है। लेकिन हालत यह है कि जनता द्वारा चुने जाने के बाद महिला पंचायत प्रतिनिधि चूल्हे-चौका तक ही सिमट कर रह जाती है। उनकी कमान पति, ससुर, भाई या अन्य रिश्तेदार के पास होते हैं। बैठक हो, शिलान्यास हो या कोई अन्य कार्यक्रम महिला की जगह उनके प्रतिनिधि ही भाग लेते हैं।


--- हस्ताक्षर तक ही सिमटी होती है महिला जनप्रतिनिधि -- ग्राम पंचायत में जनप्रतिनिधि के रूप में चयनित महिलाओं का काम सिर्फ कागजों पर हस्ताक्षर तक ही सीमित होता है। इनके बदले में सारा कार्य पति, पुत्र या अन्य रिश्तेदार संभालते है। आवश्यक मीटिग में सिर्फ इनकी उपस्थिति दर्ज होती है। पति, ससुर, पुत्र या अन्य रिश्तेदार बैखौफ होकर वे पंचायत कार्यालय में उनकी कुर्सी पर बैठते हैं और हस्ताक्षर भी कर देते हैं। जबकि पंचायतीराज विभाग इसे आपराधिक कृत्य मानता है। आज कें दौर में लोगों को समझने की जरूरत है कि हम महिला जनप्रतिनिधि को वोट दें रहे हैं या उनके रिश्तेदारों को ...
-----क्या कहते हैं प्रखंड प्रमुख----प्रखंड प्रमुख कुर्साकांटा सुशील कुमार सिंह ने बताया कि आरक्षण के बल पर कई बार सही महिला प्रत्याशी के चयन में नागरिकों से चूक हो जाती है। यहां नागरिकों को समझना होगा कि वे जानकार व जुझारू प्रत्याशी का चयन करें। हालांकि हाल के दिनों में तस्वीर कुछ बदली है। अब महिला मुखिया, सरपंच तथा पंसस खुद कमान थामती नजर आ रहीं हैं। लेकिन ऐसी महिलाओं की संख्या गिनती में हैं।

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