बाढ़-बारिश से जिले में दूध की आपूर्ति में कमी, पशुपालकों की आय घटी

मधुबनी । कृषि प्रधान क्षेत्र होने के कारण यहां कृषि व पशुपालन से संबंधित उद्योगों का संचालन भी होता है। लगातार हो रही बारिश व बाढ़ के कारण डेयरी उद्योग भी काफी हद तक प्रभावित हुआ है। पंडौल औद्योगिक क्षेत्र में पिछले पांच वर्षों से चल रहा मिथिला डेयरी उद्योग भी बाढ़ व बरसात से प्रभावित हुआ है। उद्योग के संचालक रणधीर रणधीर कुमार झा ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग स्वयं दुधारू मवेशियों का पालन करते हैं। जिस कारण ग्रामीण क्षेत्रों में दूध व उसके उत्पादों की 20 से 25 प्रतिशत आपूर्ति हो जाती है। अनुमानित आंकड़ों के अनुसार पूरे जिला में बाढ़-बारिश से पूर्व करीब डेढ़ लाख लीटर दूध की प्रतिदिन खपत होती थी, लेकिन निरंतर हो रही बारिश व बाढ़ के कारण यह आंकड़ा एक लाख लीटर पर सिमटा हुआ है। पंडौल प्रखंड की बात की जाए तो बाढ़ बरसात से पूर्व यहां प्रतिदिन 13 हजार लीटर से अधिक दूध की खपत थी, जो वर्तमान में 10 हजार लीटर के आसपास है। इसकी कई वजहें हैं। लगातार हो रही बारिश व बाढ़ के कारण पशुचारा की कमी हुई है। नतीजा, दूध का उत्पादन भी प्रभावित हुआ है। यहां के शहरी क्षेत्र मधुबनी, जयनगर, झंझारपुर में स्टैंडर्ड दूध (फूल क्रिम) की खपत अधिक है। वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों सहित अधिकांश क्षेत्रों में टोन्ड मिल्क (हाल्फ क्रिम) की खपत अधिक है। बाढ़-बरसात से पूर्व मिथिला डेयरी उद्योग प्रतिदिन 50 हजार लीटर से अधिक दुग्ध सप्लाई कर रहा था, जो अभी खपत व सप्लाई के आधार पर महज 35 हजार लीटर पर सिमट कर रह गई है। लगभग 50 प्रतिशत दुग्ध कलेक्शन प्रभावित हुआ है। बटुरी निवासी पूर्व जिप उपाध्यक्ष सह किसान भारत भूषण कहते हैं कि पिछले पंचायत चुनाव में हारने के बाद उन्होंने कृषि व पशुपालन की ओर ध्यान दिया। सरकार से मिलने वाले अनुदान के तहत 10 दुधारू गायों का पालन शुरू किया। प्रारंभ में उन गायों से इतनी दूध होती थी की उसकी खपत के लिए सही मार्केटिग नहीं होने की वजह से काफी परेशानियां हुई। फिर उन दूधों का अन्य उत्पाद बनाना शुरू किया। उसके लिए होटलों व बाजारों में भी संपर्क किया। जिसमें काफी हद तक सफलता मिली, लेकिन कभी सुखाड़ तो कभी बाढ़ के कारण आवश्यकता अनुसार पशुचारा उपलब्ध नहीं हो पाने व अन्य समस्याओं के कारण दूध उत्पादन प्रभावित होने लगा। नतीजा, धीरे-धीरे सभी गायें बिक गई। ग्रामीण क्षेत्र में ऐसे बहुत किसान हैं जो दो या दो से अधिक देहाती नस्ल की गाय और भैंस पालन कर उससे प्राप्त दूध गांव-मोहल्लों में अथवा चाय-मिठाई की दुकानों में पहुंचाते हैं। ऐसे में ग्रामीण किसानों की माने तो दुधारू मवेशियों का पालन आज के महंगाई में आसान काम नहीं है। फिर भी ग्रामीण क्षेत्र के किसान काफी हद तक पशुपालन उद्योग पर ही निर्भर हैं।

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