पूर्णिया : आंखें जता रही थी शिकवा, किस खता में मिला जिस्म का बाजार

पूर्णिया। नाजुक आंखों में अब हसरतें भी दम तोड़ चुकी है। दिल की चीख जरुर रह-रहकर आंखों से झांकने की कोशिश करती है, क्योंकि जुबान पर खौफ का पहरा लगा हुआ है। शिकवा-शिकायत भी आंखों से ही छलकती है। एक मौन सवाल हर आंखें पूछती है कि आखिर किस खता में उन्हें यह जिस्म का बाजार मिला है। यह सवाल आज कथित सभ्य समाज के साथ पूरे शहर को शर्मसार कर रहा है। दरअसल दिल्ली की एक एनजीओ की सूचना पर जब पुलिस द्वारा पूर्णिया स्थित दो रेड लाइट एरिया में छापेमारी की गई तो वहां से बालिग लड़कियों के साथ सात नाबालिग बच्चियां भी बरामद हुई। इसमें एक बच्ची की उम्र बमुश्किल दस साल थी। एक बच्ची 12 वर्ष तो शेष 14 से 16 वर्ष की बच्चियां थी। बच्चियों का काउंसिलिग भी हुआ फिर कोर्ट में बयान भी दर्ज कराया गया। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान सख्त कानूनी कार्रवाई के लायक पुलिस को भी कुछ नहीं मिल पाया। यह पहले भी होता रहा है। धंधे के संचालकों के साम, दंड, भेद के आगे ये निरीह बच्चियां बस एक रटन्तु तोता बन कर रह जाती हैं। काउंसिलिग या पूछताछ के दौरान उनकी जुबान भले ही बंद रहती है, लेकिन चेहरे का भाव-भंगिमा उनके पीछे छुपे दर्द को बयां करने के लिए काफी होता है। काउंसिलिग में शामिल महिला प्रतिनिधियों के अनुसार बच्चियों ने भले ही अपनी जुबान नहीं खोली लेकिन उनके चेहरे के भाव से यह स्पष्ट था कि अपने अरमानों को कुचले जाने से वह बुरी तरह आहत है। उनकी हसरतें अब दम तोड़ने लगी है। हर बच्ची के मन में अपनी वर्तमान स्थिति को लेकर बड़ा सवाल था, लेकिन वे चाहकर भी इसे जुबान पर लाने से परहेज करती रही। स्कूल का भी मुंह नहीं देख पाई हैं बच्चियां

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काउंसिलिग में एक और बात सामने आई कि इनमें से कोई बच्चियां अब तक स्कूल का मुंह नहीं देख पाई है। शिक्षा के सवाल पर बच्चियों ने बस इतना बताया कि वे लोग घर में ही कुछ-कुछ पढ़ लिख लेते हैं। जाहिर तौर पर होश संभालने के बाद से ही उनके हसरतों को कुचलने की प्रक्रिया शुरु हो गई और अब वर्तमान दशा को वे अपनी नियति मान चुकी है। उनकी दशा से यह साफ था कि उनके स्वास्थ्य के साथ भी खुलकर खिलवाड़ किया जा रहा है और उनकी जीवन नैया पूरी तरह मझधार में फंस चुकी है।
छद्म माता-पिता बन धंधा कराने का रहा है दस्तूर
पूर्णिया के कटिहार मोड़ व रानीपतरा में संचालित रेड लाइट एरिया में नाबालिग बच्चियों को जिस्म फरोशी के धंधे में ढकेलना कोई नई बात नहीं है। इससे पूर्व भी कई बच्चियां यहां से बरामद हो चुकी है। शातिराना अंदाज में इन बच्चियों के छद्म माता-पिता भी तैयार हो जाते हैं और फिर उनसे बेखौफ होकर धंधा कराया जाता है। कागजी तौर पर पुख्ता प्रमाण के चलते पुलिस व प्रशासन के लिए भी कार्रवाई की गुंजाइस खत्म हो जाती है।

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