बंजर हो रही जमीन की रक्षा के लिए होगी पटसन की खेती

सहरसा। मिट्टी जांच रिपोर्ट के आधार पर कोसी क्षेत्र की जमीन में माइक्रो न्यूट्रेन, नाइट्रोजन, पोटाश आदि पोषक तत्वों की हो रही कमी के कारण उसकी सेहत बिगड़ रही है। इसकी क्षतिपूर्ति करने तथा प्रवासी मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कोसी प्रमंडल में पटसन की उन्नत खेती करने की योजना बनाई गई है। सालोंभर जलजमाव के कारण कोसी क्षेत्र पटसन की खेती के लिए काफी उपयुक्त है। यह इलाका इसके लिए मशहूर भी रहा है। लेकिन विगत एक दशक से क्लाईमेट के परिवर्तन, बाजार की कमी और पालिथीन के बढ़ते प्रयोग के कारण जूट की प्रासंगिकता समाप्त होती चली गई। इससे पटसन की खेती लगभग रूक गई।


विभाग ने कृषि योग्य भूमि की खराब हो रही उर्वराशक्ति को बचाने के लिए नए सिरे से पटसन की खेती प्रारंभ कराने का निर्णय लिया है। विभाग का मानना है कि इससे कोरोना संक्रमण के कारण आयी मंदी को दूर करने में सहुलियत होगी, बाहर से आए प्रवासियों को रोजगार मिलेगा और किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी।
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किसानों की आर्थिक स्थिति में होगा सुधार
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विगत कुछ वर्षों में बाजार के अभाव में ही किसानों ने पाट की खेती से अपना मुंह मोड़ लिया था, जबकि यह परंपरागत खेती की अपेक्षा अधिक लाभप्रद है। इस समस्या के समाधान के लिए इसका मूल्य निर्धारित कर दिया है। सामान्य जूट के लिए 35 सौ रुपये प्रति क्विंटल दर निर्धारित किया गया है। जानकार बताते हैं कि एक हेक्टेयर में इसकी खेती करने में अमूमन 30 हजार रुपये खर्च आता है और कम- से- कम 25 क्विटल की उपज होती है। पटसन के बीज दो सौ से तीन सौ रुपये किलोग्राम मिलता है। तीन महीने की इस खेती के बल पर एक हेक्टेयर में एक लाख तक आमदनी का अनुमान है।
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पर्यावरण संरक्षण के लिए भी काफी कारगर है पटसन
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कृषि वैज्ञानिक डा. पीसी पाठक कहते हैं कि जिस जल में पटसन के पौधे को सड़ाया जाता है, वह सिचाई और मत्स्यपालन आदि के लिए काफी कारगर होता है। इसकी खेती में अन्य खेती की अपेक्षा माईक्रोन्यूट्रेन, नाईट्रोजन फास्फोरस, पोटाश आदि की आवश्यकता 70 फीसद से भी कम हो जाता है। यह पर्यावरण को शुद्ध रखने में भी काफी सहायक होता है। पटसन का पौधा वायुमंडल से कार्बन डाइआक्साइड को खींचकर आक्सीजन छोड़ता है।
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कोसी क्षेत्र में पटसन के खेती की व्यापक संभावना है। इसके नये सिरे से खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षित किया जाएगा। विभाग इसके लिए तैयारी में जुटा है। इसकी खेती से इलाका काफी समृद्ध हो सकता है।
दिनेश प्रसाद सिंह , जिला कृषि पदाधिकारी, सहरसा।

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