कभी चुराते थे नजरें, अब मिलाने को बेकरार

दरभंगा। राजनीति का भी कोई भरोसा नहीं। पता नहीं कब गांव की राजनीति किस करवट बैठ जाए। प्रखंड क्षेत्र के इलाकों में इन दिनों पंचायत चुनाव को लेकर राजनीति का बदलता रंग दिख रहा है। सुबह जगने के बाद से लेकर रात के सोने तक पंचायत की सरकार में अपनी भागीदारी देने के लिए बेताब प्रत्याशियों का दलाने-दलान जनसंपर्क शुरू हो जाता है। इस दौरान दिखता है वह नजारा जो राजनीति के करवट बदलने का संदेश देता है। कभी नजरें चुरानेवाले नजरें मिलाने को बेकरार नजर आते हैं तो हालचाल भी नहीं पूछने वाले पैर छूने में भी देर नहीं लगाते। प्रखंड में सांतवें चरण में चुनाव होगा। इसके लिए 15 नवंबर को वोट डाले जाएंगे।

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मालूम हो कि प्रखंड में 26 मुखिया, 26 सरपंच, 36 पंचायत समिति सदस्य, 355 वार्ड सदस्य व 355 पंच एवं चार जिला परिषद के सदस्यों का चुनाव होना है। इसके लिए 361 मतदान केंद्रों पर 1 लाख 91 हजार 103 मतदाता ( पुरुष 101677 व महिला मतदाता 89426 ) अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इसके अतिरिक्त पांच थर्ड जेंडर मतदाता भी है। इसके लिए प्रशासनिक तैयारी के साथ ही प्रत्याशियों की तैयारी भी युद्धस्तर पर जारी है। मैदान मारने के लिए तैयार प्रत्याशियों अपना सारा समय चुनाव पर लगाना शुरू कर दिया है। सुबह होते ही इनका दौरा शुरू हो जाता है। कभी समर्थकों के साथ, तो कभी अकेले प्रत्याशियों को गांव की गलियों का खाक छानते देखा जा सकता है। इसमें सबसे अधिक परेशानी वैसे प्रत्याशियों को हो रही है जो निवर्तमान जनप्रतिनिधि हैं। इस परेशानी का कारण अपने कार्यकाल में किसी को लाभ नहीं पहुंचा पाना है। पूछने पर ऐसे प्रतिनिधियों ने बताया कि पंचायत में लोगों की अपनी-अपनी समस्याएं होती हैं, जिसके लिए लोग जनप्रतिनिधि के पास आते हैं। सबकी समस्या का समाधान हो जाए ऐसा संभव नहीं है। दूसरी बात कि सबको एक साथ लाभान्वित करना किसी के बूते की बात नहीं है। ऐसे में वे गलत धारणा पाल बैठते हैं। उनसे नजरें मिलाना संभव नहीं होता। अब चुनाव है तो ऐसे लोगों का मान-मनौव्वल तो करना ही होगा। वहीं मतदाता कहते हैं- पहले सामने पड़ते थे तो बात करना तो दूर नजरें मिलाना भी मुनासिब नहीं समझते थे। अब जब चुनाव आया है तो लोगों की याद आने लगी है। ऐसा ही पहले रहता तो आज दलाने-दलान घूमने की आवश्यकता नहीं पड़ती। मतदाता भी समझ रहे हैं कि यह चांदनी चार दिनों की है और प्रत्याशी भी समझते हैं कि पांच साल में एक बार तो मतदाताओं को मौका मिलता है। यह स्वभाविक सी बात है। बहरहाल, ऐसी ही चहलकदमियों से पंचायतों की सियासत गर्म है। मतदाताओं को मनाने-रिझाने का दौर चल रहा है। -

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