पूर्णिया विश्वविद्यालय में नियम को ताक पर रखकर बहाल किए गए अतिथि शिक्षक

पूर्णिया। पूर्णिया विश्वविद्यालय (पीयू) में नियमों को तक पर रखकर अतिथि शिक्षकों की बहाली का मामला सामने आया है। इसके विरोध में छात्र संगठन लामबंद हो रहे हैं। गुरुवार को सिनेट सदस्य सह जदयू नेता राकेश कुमार ने कुलपति डा. राजनाथ यादव से मिलकर इस बाबत आवेदन दिया है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) के नेताओं ने भी पूरे मामले की जांच की मांग की है।

कुलपति को दिए आवेदन में सीनेट सदस्य राकेश कुमार ने कहा है कि विश्वविद्यालय के स्थापना वर्ष 2018 में अतिथि शिक्षकों की बहाली हुई थी। उक्त बहाली में विशेषकर कामर्स व बाटनी में एलाइड विषय में ऐसे भी शिक्षक नियुक्त कर लिए गए हैं, जो शिक्षा विभाग द्वारा एलाट विषयों की सूची में नहीं हैं। कामर्स का एलाइड विषय कुछ होता ही नहीं है। इतना ही नहीं इसमें मैनेजमेंट की डिग्री प्राप्त बगैर नेट व पीएचडी पास वाले अभ्यर्थी का चयन कर लिया गया है। यही हाल बाटनी का है। इसमें एग्रीकल्चर विषय के अभ्यर्थी की नियुक्ति की गई है। यह यूजीसी एवं शिक्षा विभाग के नियमावली का घोर उल्लंघन है। उन्होंने इस संबंध में आवश्यक कागजात भी कुलपति को उपलब्ध कराया है और इसकी जांच कर उचित कार्रवाई का अनुरोध किया है।

वहीं, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने भी इस मामले में नियमों की अनदेखी करने का आरोप लगाया है। अभाविप के निखिल कुमार ने कहा कि वर्ष 2018 में पूर्णिया विश्वविद्यालय द्वारा जारी विज्ञापन के अनुसार, जिन लोगो का अतिथि शिक्षक की नियुक्ति के समय पीएचडी डिग्री, 2009 रेगुलेशन के अंतर्गत नहीं था और जिन्हें बीपीएससी-2014 बहाली में अयोग्य करार दिया गया था, वैसे भी अभ्यर्थियों की नियुक्ति भी पूर्णिया विश्वविद्यालय द्वारा कर ली गई। यह पूरी तरह नियम के विरुद्ध है। बिहार सरकार ने 2009 रेगुलेशन की मान्यता सितंबर 2020 में दी है। उन्होंने इस मामले में पूरे कागजात की जांच की मांग उठाई है।
अभाविप नेता ने कहा कि शिक्षकों की नियुक्ति की नई प्रणाली में साफ साफ निहित है कि ऐसे अतिथि शिक्षक जिनका विगत वर्षों में कार्य संतोषपद्र नहीं रहा हो, उनका सेवा विस्तार नहीं किया जाए। विश्वविद्यालय को इस पर भी ध्यान देना चाहिए। इसी तरह इतिहास, राजनीति विज्ञान, जीव विज्ञान, भौतिकी, व रसायनशास्त्र सहित लगभग सभी विषयों में एलाइड के अभ्यर्थियों की नियुक्ति की गई है। संस्कृत विषय में रोस्टर का पालन नहीं किया गया है। इस पूरे मामले की भी जांच होनी चाहिए।

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