ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा शहरों में भी कायम है सूदखोरी का कारोबार

मधुबनी । अनुमंडल मुख्यालय समेत ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सूदखोरी की प्रथा परवान पर है। सरकार भले ही बैंकों पर लोगों को विभिन्न कार्यों के लिए ऋण देने का दबाव बनाती हो, लेकिन बैंकों का रवैया आज भी इस मामले में उदासीन ही है। इस कारण आमलोग जरूरत पड़ने पर आज भी महाजन से सूद पर रुपये लेने को मजबूर हैं। लोग जरूरत पड़ने पर सूदखोरों की सभी शर्तें मानकर रुपये ले लेते हैं और उसके बाद उसके शोषण का शिकार होते रहते हैं।

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शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्र में चलता सूद का कारोबार :

सूद पर रुपये लगाने का कारोबार शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में फलफूल रहा है। शहरी क्षेत्र में लोग कारोबार को बढ़ाने, व्यापार प्रारंभ करने और कभी-कभी घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए सूद पर रुपया उधार लेते हैं। एक दिन, एक सप्ताह या एक महीना के लिए कारोबारी लोगों को अधिक ब्याज पर सूदखोर रुपया उधार देते हैं। रकम के हिसाब से भी सूद की दर तय होती है। कम रुपया लेने पर अधिक ब्याज देना पड़ता है।कम राशि कम दिनों के लिए लेने पर पांच से दस प्रतिशत प्रति सैकड़ा के हिसाब से ऋण लिया जाता है। अधिक राशि लेने पर ब्याज की दर तीन प्रतिशत प्रति सैकड़ा होती है। वहीं, ग्रामीण क्षेत्र में लोग बेटा-बेटी की शादी पर, तो कभी घर में किसी के बीमार पड़ने पर, तो कभी घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर आयोजित होने वाले श्राद्धकर्म के लिए महाजन से सूद पर उधार लेते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में तीन से पांच रुपये प्रति सैकड़ा के हिसाब से महाजन सूद पर रुपया उधार देते हैं। महाजन अगले के जरूरत को देखते हुए सूद की दर निर्धारित करते हैं, जिस पर रुपया उधार लेने की मजबूरी बनी रहती है। दो तरीकों से सूद पर लगाते रुपये :
महाजन दो तरीकों से सूद पर रुपया लगाते हैं। या तो गहना गिरवी रखकर या स्टैंप पेपर पर हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान लेकर रुपया सूद पर उधार देते हैं। कई बार सूद का रुपया समय पर नहीं देने पर लोगों को बंधक लगाए गहनों से भी हाथ धोना पड़ता है, तो कई बार पंचायत के माध्यम से दोनों के बीच लोग सुलह कराई जाती है। कई बार तो स्थिति मारपीट तक पहुंच जाती है, लेकिन हमेशा जीत सूदखोर की ही होती है।
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सूदखोरों का मजबूत नेटवर्क :
शहरी से ग्रामीण क्षेत्रों तक सूदखोर का मजबूत नेटवर्क बना हुआ है। ये लोग जरूरतमंदों को फंसाने के लिए हर जगह अपना आदमी खड़े रखते हैं। अधिक राशि सूद पर लेने वाले लोग कई बार समय पर रुपया वापस नहीं कर पाते तो सूदखोर हर हथकंडा अपना कर रुपया वापस लेने में सफल हो जाते हैं। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में यह कहावत प्रचलित है कि भगवान सूदखोर से बचाए। समाज में आज भी सूदखोर को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है। सुबह-सुबह सूदखोर के दर्शन को कई लोग आज भी अशुभ मानते हैं। धार्मिक ²ष्टिकोण से भी सूद से पैसा कमाने के धंधे को अच्छा नहीं माना गया है।

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