मानवीय गरिमा और सांप्रदायिक विभाजन से परे अधिकारों की वकालत करने के कारण आज भी प्रासंगिक हैं भगत सिंह

Highlights देश की आजादी के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों में भगत सिंह को खास जगह मिलने का एक कारण यह भी है कि उन्होंने हमेशा मानवीय गरिमा और सांप्रदायिक विभाजन से परे अधिकारों की वकालत की. भगत सिंह को विश्वास था कि धर्म शोषकों के हाथों में एक हथियार है जो जनता को अपने हितों के लिए ईश्वर के निरंतर भय में रखता है.

नई दिल्ली: आज शहीद-ए-आजम भगत सिंह की 114वीं जयंती है. अविभाजित पंजाब के लायलपुर (अब पाकिस्तान) में 28 सितंबर 1907 को जन्मे भगत सिंह बहुत छोटी उम्र से ही आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए और उनकी लोकप्रियता से भयभीत ब्रिटिश हुक्मरान ने 23 मार्च 1931 को 23 बरस के भगत सिंह को फांसी पर लटका दिया था.
देश की आजादी के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों में भगत सिंह को खास जगह मिलने का एक कारण यह भी है कि उन्होंने हमेशा मानवीय गरिमा और सांप्रदायिक विभाजन से परे अधिकारों की वकालत की.
23 मार्च, 1931 को फांसी पर चढ़ने से पहले दो साल तक भगत सिंह ने लाहौर की जेल में गुजारे थे. वह बेहद कम उम्र से ही किताबें पढ़ने लगे थे और उनके पसंदीदा लेखकों में कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगल्स, बार्टंड रसेल, विलियम वर्ड्सवर्थ, रविंद्रनाथ टैगोर आदि थे.
उनके सबसे चर्चित लेखों में एक मैं एक नास्तिक क्यों हूं है जिसे उन्होंने जेल में रहते हुए लिखा था. इसमें एक तरफ जहां अधविश्वास को जोरदार खंडन किया जाता है तो वहीं सटीक तरीके से तार्किकता को भी पेश करती है.
उन्होंने साफ किया कि क्रांतिकारियों को अब किसी धार्मिक प्रेरणा की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उनके पास एक उन्नत क्रांतिकारी विचारधारा है, जो अंध विश्वास के बजाय तर्क पर आधारित है.
भगत सिंह को विश्वास था कि धर्म शोषकों के हाथों में एक हथियार है जो जनता को अपने हितों के लिए ईश्वर के निरंतर भय में रखता है.
भगत सिंह ने अपनी नास्तिकता को बिल्कुल साफ किया था कि जब उन्होंने लिखा कि मेरी नास्तिकता कोई हाल फिलहाल की नहीं है. मैंने भगवान पर विश्वास करना तभी बंद कर दिया था जब मैं एक अस्पष्ट युवक था, जिसके बारे में मेरे दोस्तों को भी पता नहीं था.
उन्होंने तर्क दिया कि कोई भी व्यक्ति जो प्रगति के लिए खड़ा है, उसे पुराने विश्वास की हर वस्तु की आलोचना, अविश्वास और चुनौती देनी होगी. यदि काफी तर्क-वितर्क के बाद किसी सिद्धांत या दर्शन पर विश्वास किया जाता है, तो उसकी आस्था का स्वागत किया जाता है.
वह मैं नास्तिक क्यों हूं को युवाओं को पढ़ने के लिए प्रेरित तो करते हैं लेकिन साथ में चेतावनी भी देते हैं. वह उसका आंख बंद करके अनुसरण करने के बजाय पढ़ने, आलोचना करने, सोचने और अपना विचार तैयार करने के लिए कहते हैं.
सोशल मीडिया पर गर्व के साथ याद कर रहे लोग
देश के लोगों खासकर युवा हमेशा से ही भगत सिंह के प्रशंसक रहे हैं. भगत सिंह के विचार उन्हें आकर्षित करते हैं. यही कारण है कि भगत सिंह को आज भी पूरी श्रद्धा और गर्व के साथ लोग याद करते हैं. आज भी सोशल मीडिया पर कुछ ऐसा नजारा देखने को मिला.
राज संधू नाम के यूजर भगत सिंह की लाइनें शेयर करते हुए लिखते हैं कि हर प्रदर्शनकारी किसान अब भगत सिंह है.
https://twitter.com/sandhu94717/status/1442664306026237961
वहीं, रंभा देवी लिखती हैं कि जिस मामले में भगत सिंह को फांसी पर लटकाया गया, उसी मामले में सावरकर ने ब्रिटिश सरकार से माफी मांग ली थी.
https://twitter.com/RAMBHA56/status/1442691848737226754
प्रिंसेस कौर नाम की यूजर लिखती हैं कि भगत सिंह एक क्रांतिकारी थे. वह आज भी हममें से कई लोगों के बीच अपने-अपने संभावित तरीकों से एक क्रांतिकारी हैं.
https://twitter.com/blue_horizzon/status/1442665268275134468
उपदेश कौर लिखते हैं कि अंग्रेज अधिकारों की मांग करने वालों की आवाज दबा देते थे. वे घमंडी थे और उन्हें लोगों की मौत से फर्क नहीं पड़ता था और न इस सरकार को पड़ता है. लेकिन याद रखें, हमारे पास भगत सिंह भी हैं! बस आवाज तेज करो!
https://twitter.com/updeshkb/status/1442663565651890176

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