भ्रष्टाचार नहीं विकास चाहिए बहु नहीं मुखिया चाहिए

ज्योतिष झा, जोकीहाट (अररिया): जिले में अधिकतर महिला जनप्रतिनिधियों को उनके पति घर की चहारदीवारी में बहु बनाकर रखते रहे हैं। फिर पत्नी के ब्रांड पर पांच साल तक मलाई खाते रहते हैं। लेकिन अब महिलाएं अपने अधिकार के प्रति सजग हो रही है। वोट मांगने भी उनके पतिदेव हीं घर घर जा रहे हैं। मुखिया के पतियों को इस चुनाव में महिला वोटरों की ओर से विरोध का सामना करना पड़ रहा है। महिलाएं कहते सुनी जा रही हैं कि असली मुखिया को मैदान में उतारिए। घर में रहने वाली बहु नहीं मुखिया चाहिए जो महिलाओं के दुख दर्द को समझ सके। उनका कहना है अब महिला पति रूपी बैसाखी पर चलने वाली नहीं है। महिलाओं के ताबड़तोड़ सवाल से मुखिया पति उहापोह में पड़ गए फिर जबाब दिया कि मेरी बीबी पढ़ी लिखी कम है। तो महिलाओं ने कहा कि नेतागिरी में पढ़ाई की बात कहां से आ गई। वोट पत्नी को मिला है आपको नहीं। महिलाओं ने गजब का तर्क देते हुए कहा कि बच्चा जब जन्म लेकर चलना सीखता है तो माता पिता बच्चों के गिरने की परवाह नहीं करते क्योंकि परवाह करे तो फिर बच्चे चलना नही सीखेंगे। उसी तरह महिलाओं को अपने अधिकार और पद का उपयोग करने दें आप दुरूपयोग न करें। इतना बोलना कि पतिदेव को कुछ जबाब देते नहीं बन रहा था। इधर उधर झांकने लगे फिर मुस्कुराते हुए चलते बने। तब से पति महिला वोटरों का सामना करने से परहे•ा करते हैं। पढ़ी लिखी महिलाओं का कहना है कि जब पचास प्रतिशत सीट महिलाओं के लिए आरक्षण देकर सरकार हमें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने की मंशा रखती है। लेकिन सरकार और समाज का यह सपना पूरा होता नहीं दिख रहा। महिलाओं के अधिकारों और उनके कर्तव्य से कोई और नहीं बल्कि उनके पतिदेव ही अलग थलग रख देते हैं। जिले में दर्जनों ऐसी महिला जनप्रतिनिधि रहे हैं जिन्हें अपने व्यक्तित्व को गौरवान्वित करने के बदले उनके पति ही घर में शोभा की वस्तु


बनाकर रखते हैं। इतना ही नहीं सरकारी बैठकों में भी महिलाओं के बदले उनके पति, पुत्र, ससुर ही शामिल होते रहे हैं। ऐसे में महिला आरक्षण का क्या मतलब। लोगों की मानें तो इस दिशा में प्रशासनिक अधिकारी भी सख्त नही दिखते। ऐसी महिला प्रत्याशियों के पति और परिवार वालों से मतदाता सवाल पूछ रहे हैं कि मुखिया आप हैं या आपकी की पत्नी। पूछना भी चाहिए क्योंकि जबतक समाज में महिलाओं को उनके अधिकार का प्रयोग करने नहीं दिया जाएगा समाज का विकास नहीं हो सकता। कई महिला प्रखंड प्रमुख , जिला पार्षद के पतियों को जबाब देने में पसीने छूट रहे हैं। खासकर पढ़ी लिखी महिला मतदाताओं के मन में मुखिया पतियों के इस कार्य से आक्रोश दिख रहा है। महिलाओं की सजगता से ऐसा लग रहा है कि पंचायती राज व्यवस्था में पतियों का राज अब खत्म होने वाला है।

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