विरासत की सियासत बचाने कई अपने भी मैदान में

अरुण कुमार झा, रेणुग्राम (अररिया): 'विरासत' की 'सियासत' को बचाने चुनावी अखाड़े में अपनों के साथ साथ सगे संबंधी भी मैदान में उतरे है। कहीं बहु तो कहीं पुत्र -पुत्री तो कहीं पर पत्नी चुनावी मैदान में है।अमूनन एक आध को छोड़ ऐसा देखा जाता है कि पिता की विरासत बेटे ही संभालते रहे है। मगर राजनीतिक विरासत बचाने पंचायत चुनाव में बड़ी संख्या में बहुएं, बिटिया, सहित नजदीकी सगे संबंधी चुनावी समर में है।लोकतंत्र के इस महापर्व में अबकी सबकी भागीदारी दिखने को मिल रही है।कही मुखिया पद के लिए बहु मैदान में है तो कही


पुत्री, तो किसी जगह निकट संबंधी पर भरोसा है। वहीं सदस्य, पंच, समिति सदस्य, जिला परिषद पद का भी यही हाल है। जिले के रानीगंज में भी विरासत को लेकर कईयों की दावेदारी है। यहां भी कई पंचायतों में सगे संबंधी की सियासत देखने को मिली। यहां तो इससे एक कदम आगे अपनों से अपने ही एक दूसरे के सामने मैदान में दिखे। यहां का भाग्य तो ईवीएम व मतपत्र में कैद हो चुका है। फैसले की घड़ी भी निकट है। फैसला जनता का होगा। कमोबेश हर प्रखंडों में यही स्थिति है। जहां चुनावी अखाड़े में 'अपने' ही 'अपने' के सामने मैदाने जंग में है। तो कही चुनावी अखाड़े में आने की तैयारी में है। राजनीति ऐसी चीज है कि इसमें कोई सगा नही होता है। सबके सब अपने अपने दाव देखते है। चाहे भाई- भाई हो या चाचा- भतीजा, या फिर मामा- भांजा ही क्यों न हो। रिश्तेदारी,नातेदारी भी चुनाव के आगे 'फेल' है। सबको सिर्फ अपनी 'कुर्सी' की चिता। सबकी अपनी लड़ाई है। चाहे कैसे भी मिले। राजनीतिक के इस खेल में ऐसे अनेको रंग आप को देखने को मिल जाएंगे। कहा भी जाता है कि राजनीति में सब 'जायज' है। फिलहाल चुनाव में कही विरासत बचाने की जद्दोजहद चल रही है तो कही अपनो से शह मात का खेल खेलने की कवायद जारी है। कोई सेवा भाव से मैदान में है तो कोई अधूरे सपनों को पूरा करने का संकल्प लिए राजनीतिक पारी खेलने के लिए।सभी जनता जनार्दन के आशीर्वाद पाने की जुगत में लगे है। जो भी हो पर यह डगर कितना सफल हो पाएगा।चुनाव बाद ही तय होगा।

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