खाने को तरस रहे बेजुबान पशुधन



मोतिहारी । ग्लोबल वार्मिंग का असर इंसान के साथ पशुओं के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है। बेजुबान जानवरों के सामने पीने के पानी और खाने के लिए हरी घास का संकट खड़ा हो गया है। गांवों में पहले चरागाह हुआ करते थे, जो धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं। सरकारी नक्शों से गोचर भूमि तेजी से गायब हो रही है। जबकि पशुपालकों को जानवरों का पेट भरने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। बताते हैं कि पिछले कुछ दशकों में जिले में गोचर भूमि में काफी कमी आई है। विकास की अंधदौड व शहरीकरण की लालसा ने इन बेजुबानों के लिए अब बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। यहां के ज्यादातर पशुओं को सूखे कचरे पर गुजारा करना पड़ रहा है। जबकि मवेशियों को पर्याप्त चारा न मिल पाने के कारण दुग्ध उत्पादन में कमी आ रही है और पशुपालकों के लिए पशुपालन घाटे का सौदा साबित हो रहा है।

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इनसेट
गोचर जमीनों पर दबंगों का कब्जा
बताते हैं कि जिले के अधिकांश गोचर जमीनों पर अवैध कब्जा कर लिया गया है। कई जगहों पर तो इनका अतिक्रमण कर पक्का निर्माण कर लिए जाने की भी सूचना है। पशुपालक भी कब्जाधारियों के दबंग होने के कारण कुछ नही बोल पाते। वहीं विभिन्न जगहों पर ऐसे। भूमि पर पंचायत भवन व अथवा अन्य सरकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिससे पशुपालकों की परेशानी बढ़ गई है। पहले प्रखंड स्तर पर जमीन उपलब्ध हुआ करती थी। लेकिन फिलहाल यह व्यवस्था भी खत्म हो गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में परती व खाली पड़े सरकारी जमीनों पर पशुपालक अपने पशुवों को चरने के लिए ले जाते थे, लेकिन अब अधिकतर जगहों पर पक्का निर्माण हो गया है।
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वर्जन
विभागीय स्तर पर फिलहाल गोचर भूमि को लेकर कोई योजना नहीं है। इसको लेकर मार्गदर्शन की मांग विभाग से की जाएगी
प्रवीण कुमार सिंह
जिला पशुपालन पदाधिकारी, पूर्वी चंपारण

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