सुपौल में टूटी 40 वर्षों की परंपरा

जागरण संवाददाता, सुपौल: अधर्म पर धर्म के विजय के प्रतीक विजयादशमी के मौके पर सार्वजनिक पूजा स्थल गांधी मैदान में 40 वर्षों से रावण वध की परंपरा चली आ रही है। इस वर्ष कोरोना गाइड लाइन की वजह से रावण दहन का यह कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया था। जिले के ग्रामीण इलाके से काफी संख्या में पहुंचे लोगों को सुपौल पहुंचने पर निराशा हो रही थी। बच्चों का उत्साह भी कुछ फीका पड़ता दिखाई दे रहा था। बच्चे गांधी मैदान के निकट पहुंचते ही हठात अपने मम्मी पापा से पूछ बैठते थे कि रावण कहां चला गया। विजयादशमी के दिन इस उत्सव का होना भी एक परंपरा बन चुकी है और इसके वगैर ऐसा महसूस हो रहा था कि शायद विजयादशमी का मेला अधूरा सा रह गया। रावण दहन के इस मौके पर शहरवासी अधर्म पर धर्म की विजय का संकल्प दोहराते हैं। दशहरे के मौके पर रावण वध को लेकर पूरा शहर सुबह से ही तैयारी में जुटा होता है। माता की यात्रा पूजा के बाद हर किसी का रूटीन रावण वध के हिसाब से ही तय होता है। निर्धारित समय पर पूजा स्थल से भगवान श्री राम की विजय यात्रा निकाली जाती है जो शहर के प्रमुख मार्गों का भ्रमण करते वापस गांधी मैदान लौटती है और फिर रावण दहन का कार्यक्रम किया जाता है। यात्रा में तरह-तरह की झांकियां प्रस्तुत की जाती है। शहर में भगवान राम की इस झांकी को देखने के लिए शहरवासी सड़क किनारे कतारबद्ध खड़े रहते हैं। राम, लक्ष्मण, हनुमान व उनकी बानरी सेना और साथ में अधर्म पर विजय पाने को लोग चल रहे होते हैं। ऐसा लगता है मानो सचमुच श्रीराम के आदर्शों को मानते शहरवासी आज सामाजिक बुराईयों को, विकारों को, अपने अंदर के अहंकार को खत्म कर देंगे।


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1981 में शुरु किया गया था कार्यक्रम
सन 1981 में समाज के बुजुर्गों द्वारा पटना के गांधी मैदान की तर्ज पर रावण वध करने की योजना बनाई गई। समाज के लोगों के साथ भरपूर प्रशासनिक सहयोग मिला। उस वक्त सुपौल सहरसा जिले का अंग हुआ करता था। लेकिन कार्यक्रम में पूरा प्रशासनिक महकमा सुपौल में ही दिखा और कार्यक्रम पूरी तरह सफल हुआ। उस वक्त के अधिकारियों ने यहां के लोगों की शांतिप्रियता, आपसी सौहार्द और सार्वजनिक कार्यों में भी अपनेपन से दिलचस्पी को मिसाल बताया। फिर क्या था इस कार्यक्रम ने तो एक परंपरा का रूप ले लिया। धीरे-धीरे स्थिति ऐसी बन गई कि रावण वध कार्यक्रम को देखने के लिए बच्चे सालों भर प्रतिक्षा करने लगे और माता पिता कार्यक्रम का भरोसा दिलाते अपनी बात मनवाते रहे।

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