हस्ताक्षर तक ही सिमटी है महिला पंचायत प्रतिनिधि

मधेपुरा। पुरैनी प्रखंड क्षेत्र में बीते पंचवर्षीय में आरक्षण सहित बिना आरक्षण के भी महिलाओं के सिर पर मुखिया, सरपंच व पंचायत समिति सदस्य का ताज तो सजा, लेकिन पंचायत में उनकी भागीदारी शो पीस से अधिक कुछ नहीं रही। बीते पांच साल के दौरान महिला प्रतिनिधि पंचायत की जगह रसोई घर में ही काम करती नजर आई। ऐसी स्थिति महिला प्रतिनिधि बनने वाली लगभग हर पंचायत में हैं।

मालूम हो कि प्रखंड क्षेत्र की सभी नौ पंचायतों में से औराय, नरदह व बंशगोपाल पंचायत जहां मुखिया व सरपंच पद सामान्य महिला के लिए आरक्षित है। वहीं पंचायत समिति सदस्य के कुल 12 पद में से सपरदह, औराय के दो में से एक, नरदह, गणेशपुर के दो में से एक व पुरैनी पंचायत में पंचायत समिति सदस्य पद विभिन्न कोटि के महिलाओं के लिए आरक्षित है। लेकिन बीते पंचायत चुनाव में जहां सपरदह पंचायत के सामान्य अन्य के सीट पर कंचन देवी व मकदमपुर पंचायत के अनुसूचित जाति अन्य के सीट पर अनिता देवी ने दर्जनों पुरूष उम्मीदवार को पटकनी देकर मुखिया बनने में कामयाब रही थी। वहीं पंचायत समिति सदस्य पद पर कुरसंडी पंचायत के निर्वाचन क्षेत्र संख्या एक सामान्य अन्य की सीट पर मीना देवी व मकदमपुर पंचायत के निर्वाचन क्षेत्र संख्या 11 अनुसूचित जाति अन्य के सीट पर अमृता देवी चुनाव जीतने में सफल हुई थी। प्रखंड क्षेत्र में तीन के बजाय पांच मुखिया, तीन सरपंच व पांच के बजाय सात महिला पंसस चुनकर तो पहुंची। लेकिन कुछेक को छोड़कर अधिकांश महिला प्रतिनिधि कभी भी घूंघट से बाहर नहीं आ सकी। कहने को तो महिलाएं चुनकर असली जनप्रतिनिधि होती है। लेकिन पंचायत में उनकी शत-प्रतिशत भागीदारी धरातल पर देखने को नहीं मिल रही है। यही कारण है कि जनता उनके पति या परिवार के किसी पुरूष सदस्य को ही असली मुखिया, सरपंच व पंसस मानते हैं। वर्तमान समय में पंचायत चुनाव को लेकर तेज गति से मतदाताओं से हालचाल पूछने का सिलसिला चल रहा है। चौपाल में चुनावी चर्चा जोर-शोर से की जा रही है। संभावित प्रत्याशियों द्वारा मतदाताओं से उनकी परेशानी पूछी जा रही है। लेकिन कहीं भी महिला प्रत्याशी मतदाताओं से बातचीत करती नजर नहीं आ रही है। जगह-जगह उनके पति या अन्य रिश्तेदार फोटो खींचवाते या सेल्फी लेते मिल रहे हैं। इतना ही नही पंचायत स्तरीय ग्रामसभा, स्थायी सशक्त समिति, वित्त अंकेक्षण व योजना समिति की बैठकों में अधिकतर महिला प्रतिनिधि के साथ उनके पुरूष प्रतिनिधि साथ रहा करते थे। जबकि त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था में सरकार ने महिलाओं को भागीदारी का मौका दिया है। आधी आबादी पंचायत राज व्यवस्था के तहत पंचायतों में चुनी भी जाती है। लेकिन हालत यह है कि जनता द्वारा चुने जाने के बाद महिला पंचायत प्रतिनिधि चूल्हे-चौका तक ही सिमट कर रह जाती है। इतना ही नही अधिकांश महिला प्रतिनिधि अपने प्रखंड के विभिन्न पदाधिकारी सहित पंचायत में कार्यरत कर्मियों का नाम भी पांच वर्षों में नही जान पाती है। उनकी सारी जानकारी पति, ससुर,भाई या अन्य रिश्तेदार के पास होते हैं। बैठक, शिलान्यास हो या कोई अन्य कार्यक्रम महिला की जगह उनके प्रतिनिधि ही भाग लेते दिखाई देते हैं।

ग्राम पंचायत में प्रतिनिधि के रूप में चयनित महिलाओं का काम सिर्फ कागजों पर हस्ताक्षर तक ही सीमित होकर रह गया है। इनके बदले में सारा कार्य पति, पुत्र या अन्य रिश्तेदार संभालते हैं। आवश्यक मीटिग में सिर्फ इनकी उपस्थिति दर्ज होती है। पति, ससुर, पुत्र या अन्य रिश्तेदार बैखौफ होकर पंचायत कार्यालय में उनकी कुर्सी पर बैठते हैं और हस्ताक्षर भी कर देते हैं। जबकि पंचायत राज विभाग में इसे आपराधिक कृत्य माना जाता है। क्या कहते हैं मतदाता प्रखंड क्षेत्र के दर्जनों बुद्धिजीवी मतदाताओं ने कहा कि आरक्षण के कारण अक्सर सही महिला प्रत्याशी के चयन में आम मतदाताओं से चूक हो जाया करती है। मतदाताओं को समझना होगा कि वे जानकार व जुझारू प्रत्याशी का चयन करें। यद्यपि हाल के दिनों में तस्वीर कुछ बदली है। अब महिला मुखिया, सरपंच व पंसस खुद कमान थामती नजर आ रही हैं। लेकिन ऐसी महिलाओं की संख्या गिनती में हैं।

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