कबाड़ के कारोबार का बड़ा बाजार, छोटे शहर का सालाना टर्नओवर 20 करोड़ के पार

सीतामढ़ी। पर्व-त्योहार खासकर दीपावली-छठ के मौके पर हर घर की सफाई होती है और सालभर का जमा कचरा बाहर निकलता है जिसको हम-आप कौड़ी के मोल बेचकर इत्मीनान हो लेते हैं। लेकिन, आपने कभी सोचा है कि जिन वस्तुओं को हमने कचरा समझकर घर से हटा दिया उनको बेचकर एक कबाड़ीवाला और उसका सेठ महीने और साल का कितनी कमाई करता होगा। सुनकर आप दंग रह जाएंगे। जी हां, कबाड़ का एक बड़ा बाजार खड़ा हो चुका है, जिसका सालाना टर्नओवर इस छोटे से शहर में 15 से 20 करोड़ रुपये से ऊपर का है। मजे की बात तो यह है कि इस कारोबार में बेहिसाब कमाई के बाद भी सरकारी तंत्र कोई दखल नहीं देती। इस धंधे में न लाइसेंस लेने की जरूरत समझी जाती न टैक्स भरने का टेंशन ही रहता। इतना ही नहीं आपके घर का बिका हुआ कबाड़ फिर घूमकर आपके घर भी आ सकता है क्योंकि, जो सामान मार्केट में उपलब्ध नहीं होता कबाड़ वाले के जरिये उसकी पहुंच आपके घर तक हो जाती है। जैसे संतोष कुमार शांति नगर निवासी बताते हैं कि पुराने स्पेयर पा‌र्ट्स या किन्हीं के द्वारा बेच दिया गया नया सामान ही जो बाजार में उपलब्ध नहीं होते हैं, वैसे सामान को 10 प्रतिशत से 20 प्रतिशत मुनाफे पर फिर बेच दिया जाता है। सीतामढ़ी जिले की बात करें तो सिर्फ शहर में कबाड़ के छोटे-बड़े तकरीबन डेढ़ सौ दुकानें हैं। महीने में एक करोड़ से उपर का इनका टर्नओवर है। अब साल की बात करें तो कम से कम 12 करोड़। ये आंकड़े वैसे हैं जिनके बारे में कबाड़ी वाले बात नहीं करना चाहते, क्योंकि उनके उपर सरकार की नजर पड़ जाएगी। कबाड़ के कारोबार वाले का इसलिए कोई यूनियन वगैरह भी नहीं है। सच तो यह है कि दबी जुबां जो आंकड़ा सामने आया है हकीकत उससे कहीं ज्यादा है।


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छोटे कारोबारी सिर्फ घर चलाते तो बड़े मोटा माल बनाते
प्रत्येक दुकान से 10 से 20 लोगों का घर-परिवार चलता है। इस व्यवसाय से जुड़े हरि किशोर पासवान, संतोष कुमार डुमरा रोड, बबलू कुमार आजाद चौक, चंद्र किशोर प्रसाद पुनौरा, शंभू कुमार बाईपास रोड, रवि कुमार आदि कारोबारी ने बताया कि स्क्रैप बिजनेस में बड़े पैमाने पर कारोबार करने वाले व्यापारियों को ज्यादा मुनाफा मिलता है। वही छोटे कारोबारी के लिए उनके परिवार का भरण पोषण ठीक ढंग से हो जाता है। स्क्रैप बिजनेस में काफी समस्या भी है। इसको बेचने के लिए ट्रक से मुजफ्फरपुर चांदनी चौक माल भेजा जाता है। ठेला चालक मेला रोड निवासी लाल बाबू साह, संजीव चौधरी, दिनेश कापर, विमल साह, इंदू कुमार, विनय राम बताते हैं कि वे लोग प्रतिदिन ढाई सौ से 500 रुपये तक कमा लेते हैं। इन दिनों दीपावली-छठ के समय में रोजाना अच्छी कमाई हो जा रही है। ज्यादातर रद्दी कॉपी- किताब एवं घरेलू उपयोग के सामान खरीदे जा रहे हैं। गैराज से भी गाड़ी के रिजेक्टेड पा‌र्ट्स मिल जाते हैं। कबाड़ी हरि किशोर डुमरा रोड निवासी बताते हैं कि उनके इस व्यवसाय से 20 से 25 लोगों के परिवार का भरण पोषण होता है। सारा खर्च काटकर 1000-1500 रुपये औसतन बच जाते हैं। लॉकडाउन में तो भुखमरी की नौबत आ गई थी। ----------------------------
न लाइसेंस न कोई झमेला, बेरोकटोक चल रहा कारोबार
बिना लाइसेंस और प्रशासन की अनुमति के बिना करोड़ों का कारोबार फलफूल रहा है। इस कारोबार में किसी का नियंत्रण नजर नहीं आता। कारोबारी छोटे बच्चों को धंधे में लगा कर इस दलदल में धकेल रहे हैं। जिले में दो दर्जन से अधिक कबाड़ के व्यवसायी हैं। जो साल में करोड़ों का कारोबार करते हैं। कबाड़ी बिना सत्यापन के साइकिल, मोटरसाइकिल एवं चोरी के अन्य सामान बेधड़क खरीद रहे हैं। इस व्यवसाय में एक पूरा सिडिकेट सक्रिय है। काला कारोबार करने वाले कबाड़ियों पर पुलिस नकेल नहीं कस पा रही है।

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