अलविदा 2021 : ईवीएम से गांवों में निकली परिवर्तन की आवाज

जागरण संवाददाता, पूर्णिया। वर्ष 2021 अब विदाई की दहलीज पर है। खट्ठी-मीठी यादें भी छोड़ जा रही है। इन यादों में गांवों में गूंजी परिवर्तन की आवाज लोगों के जेहन में अर्से तक कैद रहेगी। पहली बार पंचायत चुनाव में इवीएम का उपयोग भी काफी दिलचस्प था।

ईवीएम से गांवों में निकली परिवर्तन की लहर भी यादगार हो गई। 80 फीसदी से अधिक पुराने जनप्रतिनिधियों की ताज इस वर्ष छिन गई। इतनी ही संख्या में नए लोगों को इस बार मौका मिला। ऐसे में पक्ष-विपक्ष का बड़ा समूह शायद ही इस वर्ष को भूल पाएंगे। गांवों में कहीं नई उम्मीद की धारा बह रही है तो कहीं गम के कोहरे के साथ वर्ष की विदाई हो रही है।

बहरहाल गांवों की राजनीति का यह नया स्वरुप कई मायनों में अहम है। यह ऐसी धारा है, जिसका अस्तित्व तलवार की नोक पर है। लोगों ने नई सुबह की उम्मीद में सब कुछ किया है। ऐसे में उनके अहम निर्णय का यह साल अग्निपरीक्षा के समान है। खुशी के साथ संशय की एक धारा में उनके साथ है। बता दें कि इस बार जिला परिषद सदस्य, मुखिया, सरपंच व पंचायत समिति सदस्य का चुनाव इवीएम के माध्यम कराया गया है। वार्ड सदस्य व पंच सदस्य का चुनाव बैलेट से हुआ है। बिहार के इतिहास में यह पहली पहल है। यद्यपि इसको लेकर चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को अपना रोना भी रहा। हर बूथ पर एक साथ-साथ चार-चार इवीएम् का बटन दबोने की बाध्यता को भी कई लोग अपनी नैया डूबने का कारण मान रहे हैं। इसके अलावा इवीएम में स्थान को लेकर परिणाम प्रभावित होने की टीस हर तरफ रही। इसके अलावा पंचायत चुनाव में भी अब बेहिसाब खर्च का नजारा लोगों ने अपनी आंखों से देखा।गांवों की राजनीति का यह बदरंग स्वरुप भी लोगों के लिए भूलना आसान नहीं होगा। यद्यपि कहीं-कहीं चौकाने वाले परिणाम भी सामने आए। सबसे कर्म खर्च वाले प्रत्याशियों के सिर पर ताज भी बंधा..।

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