जिले में 31 फीसद गर्भवती महिलाएं संस्थागत प्रसव से वंचित

जागरण संवाददाता, पूर्णिया। स्वास्थ्य व्यवस्था की पहुंच से अभी भी बड़ी आबादी दूर है। यही कारण है कि जिले में 100 गर्भवतियों में 31 का घरेलू प्रसव हो रहा है। यह बात राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे -5 में उजागर हुई है। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 68.9 प्रतिशत गर्भवती ही संस्थागत प्रसव कराती हैं। सर्वे में यह बात भी सामने आया है कि घरेलू प्रसव के बाद महज एक प्रतिशत ही 24 घंटे में अस्पताल में चेकअप के लिए पहुंच पाती हैं। यही कारण है कि अभी भी बड़ी संख्या में प्रसूता की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है।

संस्थागत प्रसव के लिए प्रोत्साहन राशि भी लोगों को नहीं कर पा रही आकर्षित

जननी सुरक्षा योजना में गर्भवती महिलाओं को चिकित्सा संस्थाओं में प्रसव कराने पर 1400 रुपये प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है। प्रोत्साहन राशि का प्रलोभन भी काम नहीं आ रहा है। प्रेरक के तौर पर आशा को भी प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है। संस्थागत प्रसव से मातृ व शिशु मृत्यु दर को कम किया जा सकता है। शत प्रतिशत संस्थागत प्रसव कराने में विभागीय नाकामी के कारण जिले में शिशु मृत्यु दर उच्च है। संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए और मातृ मृत्यु दर में कमी लाने के लिए जननी सुरक्षा, मातृ वंदन योजना, मातृत्व सुरक्षा योजना आदि का संचालन किया जा रहा है। अब तक शत फीसद संस्थागत प्रसव के लक्ष्य से दूर है। बीकोठी पीएचसी में पदस्थापित डा. लूसी साह ने बताया कि संस्थागत प्रसव के कई लाभ हैं। इसमें जच्चा और बच्चा दोनों सुरक्षित रहते हैं। अस्पताल में सभी संसाधन से सुसज्जित ओटी मौजूद होता है। किसी तरह के जटिलता की स्थिति में सर्जन को भी सकते हैं। आक्सीजन से लेकर तमाम सुविधा मौजूद रहती हैं। अधिकांश मामले में अधिक रक्तश्राव के कारण प्रसूता की मौत हो जाती है। ऐसे मामले आए दिन घर पर प्रसव के दौरान देखने को मिलते हैं। कोटे के लिए
संस्थागत प्रसव में जिले की स्थिति चिताजनक है। शत-प्रतिशत लक्ष्य से अभी जिला दूर है। आशा और एएनएम के माध्यम से प्रखंड के ग्रामीण इलाके में लोगों को जागरूक किया जा रहा है। सरकारी अस्पताल में प्रसव पर प्रोत्साहन राशि भी सरकार प्रदान करती है।
डा. एसके वर्मा, सिविल सर्जन

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