अब गरमा धान की खेती नहीं करते किसान, बो रहे मखान

सुनील कुमार, सुपौल: भले ही सुपौल जिला धान के कटोरे की श्रेणी में नहीं आता हो, परंतु धान उत्पादन मामले में इसे कमतर नहीं आंका जा सकता। गत वर्ष की ही बात करें तो जिले में 85 हजार हेक्टेयर खेतों में धान की फसल लगाई गई थी। परंतु विडंबना देखिए कि यहां के प्रमुख फसल में धान शामिल होने के बाद भी जिले के किसान गरमा धान से विमुख होते जा रहे हैं। पिछले 5 वर्ष के आंकड़े पर गौर करें तो गरमा धान के आच्छादन में 70 फीसद की कमी दर्ज की गई है। जहां वर्ष 2017-18 में जिले के 9 हजार हेक्टेयर खेतों में यह फसल लगाई गई थी। वहीं इस वर्ष ढाई हजार एकड़ खेतों में ही इसकी रोपाई की गई है। किसानों की मानें तो इस खेती को लेकर लगातार दर्द सहने के बाद भी कभी किसी ने मरहम लगाने की कोशिश नहीं की। प्रतिनिधियों ने गरमा खेती से कन्नी काट रहे किसानों का दर्द नहीं सुना और ना ही कर्ज में डूब रहे किसानों को किसी स्तर से कोई सहायता ही मिल पाई। यहां तक कि विभाग भी हमेशा यह कह कर पल्ला झाड़ता रहा कि इस खेती को लेकर कोई योजना ही नहीं है। दरअसल सुपौल जिला का एक बड़ा क्षेत्र कोसी के कोख में बसा हुआ है। हर वर्ष बाढ़ आने के कारण यहां धान की रोपाई उस समय नहीं हो पाती है। जब बाढ का पानी उतर जाता है या जलजमाव बना रहता है तब किसान उन खेतों में गरमा धान की रोपाई करते हैं। परंतु किसानों द्वारा उत्पादित इस धान को लेकर ना कोई लक्ष्य शामिल होता है और ना ही इसके लिए कोई सहायता योजना चलाई जाती है। अपने बलबूते जब किसान उत्पादन को घर लाते हैं तो सरकार द्वारा धान अधिप्राप्ति का समय बीत गया होता है। मजबूरन किसान उत्पादन को औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर होते हैं। परिणाम होता है कि किसान को उत्पाद की सही कीमत नहीं मिलने से आखिरकार यह किसानी घाटे का सौदा बन कर रह जाती है।


-----------------------------------
वाजिब कीमत भी नहीं मिलती
अच्छी कीमत नहीं मिलने के कारण तथा फसल का नुकसान होने से किसान इस खेती से दिन व दिन दूर भागता गया। जिसके कारण गर्मा धान का रकबा घटता ही जा रहा है। किसान बताते हैं कि महंगे दामों में डीजल खाद लगाकर फसल को तैयार करते हैं। वह भी समय पर खाद नहीं मिल पा रहा है। जिससे खेती की लागत बढ़ जाती है और समर्थन मूल्य भी नहीं मिलने के कारण गरमा धान की खेती घाटे का सौदा बन कर रह जाता है। दूसरी तरफ धान कटनी के समय मजदूर का भी अभाव बना रहता है।
-------------------------------
फसल लगाने में किसान नहीं दिखा रहे दिलचस्पी
ऐसे किसान अब मक्का, मखाना समेत अन्य नगदी फसलों को लगाने में दिलचस्पी ले रहे हैं। लगातार हो रहे घाटे से किसानों में गर्मा धान का क्रेज घटता जा रहा है। जिससे यह खेती सिमटती जा रही है। एक समय था जब गर्मा धान की खेती से यहां के किसानों ने समृद्धि की नींव रखनी शुरू की थी। अच्छी उपज भी हो रही थी। किसानों को इस फसल से काफी उम्मीद रहती थी। इधर मक्का और मखाना खेतों में सरकार द्वारा दी जा रही अनुदान ने भी गर्मा खेती को पीछे छोड़ दिया है।
-------------------------------
पिछले 5 वर्षों में गर्मा खेती का रकबा
-2017-18- 9 हजार हेक्टेयर
-2018-19- 10 हजार हेक्टेयर
-2019-20- 6 हजार हेक्टेयर
-2020-2- 4 हजार हेक्टेयर
-2021-22- 2.5 हजार हेक्टेयर

अन्य समाचार