होलिका दहन कर धारण करें भस्म : आचार्य

संवाद सूत्र, करजाईन बाजार (सुपौल): होली रंगों का त्योहार है। जिस प्रकार प्रकृति रंगों से भरी हुई है, उसी प्रकार हमारी भावनाएं भी विभिन्न रंगों से जुड़ी हुई है। होली के महात्म्य पर प्रकाश डालते हुए आचार्य पंडित धर्मेन्द्रनाथ मिश्र ने बताया कि होली पर्व के बारे में पुराणों में कथा है कि, राजा हिरण्यकश्यप चाहता था कि उनका पुत्र प्रहलाद भगवान नारायण की पूजा उपासना छोड़कर उनकी पूजा करें। ऐसा नहीं करने पर राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद पर क्रोधित होकर अपनी बहन होलिका को आदेश देते हुए कहा कि, बहन तुम अपनी मायावी शक्ति का प्रयोग कर प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठाकर अग्नि प्रज्वलित कर प्रह्लाद को जलाकर भस्म कर दो। अपने भाई की आज्ञा मानकर बहन होलिका ने ऐसा ही किया। परिणाम यह हुआ कि भगवान के भक्त प्रह्लाद पर तो इसका कोई भी असर नहीं हुआ कितु होलिका अग्नि में भस्म हो गई। उसी दिन से लेकर आज तक होलिका दहन की खुशी में रंग, अबीर, गुलाल लगाकर सभी अति उमंग के साथ होली मनाते हैं। आचार्य ने बताया कि विश्वविद्यालय पंचांग के अनुसार होलिका दहन 17-मार्च यानि गुरुवार को रात्रि के 1:09 के उपरांत होगा तथा होली पर्व दिनांक 18 मार्च यानि शुक्रवार को है। शुक्रवार को ही फाल्गुनी पूर्णिमा एवं कुल देवताओं को सिदूर आदि अर्पण होंगे। शुक्रवार को पूर्णिमा तिथि दिन में 1:03 तक है तत्पश्चात प्रतिपदा तिथि आरंभ हो जाएगा और यह पर्व फाल्गुन पूर्णिमा को मनाने का विधान है। इस दिन कुलदेवता को सिदूर अर्पण करने के साथ-साथ श्री चैतन्य जयंती भी मनाया जाता है। होलिका दहन में भद्रा का त्याग करना चाहिए।


------------------------------------ इन मंत्रों के साथ करें होलिका दहन
होलिका दहन के समय ऊँ होलिकायै नम: मंत्र के साथ विधिवत पूजन का विधान है। ऊँ होलिकायै नम: मंत्र से पंचोपचार विधि से पूजन कर प्रात:काल होली का भस्म धारण करना चाहिए तथा होलिका दहन समय अग्नि की तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए।

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