डीजे की धुन में गुम हो गए फाग के गीत

संवाद सूत्र, फुलकाहा (अररिया): होली अब पहले जैसी नहीं रही। अब गांव से लेकर शहर तक के चौपालों तक पारंपरिक होली गीत पर ढोल की थाप सुनाई नहीं देती है। हर जगह होली के नाम पर फूहड़ गीत संगीत प्रस्तुत किए जाने लगे हैं। और तो और होली के एक सप्ताह पूर्व से होली के नाम पर सवारी वाहनों में बजाए जाने वाले गीतों ने सभ्य परिवार सहित महिलाओं को खासा परेशान कर देता है। आज से कुछ वर्ष पूर्व गांव से लेकर शहर तक के चौपाल में पारंपरिक होली गीतों में होली खेले रघुबीरा अवध में, होले खेले रघुबीरा.,'गउरा संग लिये शिवशंकर खेलत फाग.,'आज बिरज में होरी रे रसिया. जैसे कर्णप्रिय होली गीत अब सुनाई नहीं देते हैं। अब इन पारंपरिक गीतों की जगह भोंड़े, अश्लील और द्विअर्थी गानों ने अपना स्थान बना लिया है। पहले वसंत पंचमी के दिन ही होलिका स्थापित करने के बाद जोगीरा एवं होली गीतों की मदमस्त राग से गांव का वातावरण ओत प्रोत हो जाता था। तब के पारंपरिक होली गीतों में राग विहाग, सुर लय ताल, साहित्य, विनम्रता, सौम्यता का संदेश हुआ करते थे। गांव के चौपाल में युवा, अधेड़ व वृद्ध एकजुट होकर देर रात तक थिरकते प्रेम एवं मस्ती के सागर में विभोर हो जाया करते थे। बीच में कुछ फिल्मी होली गीत भी आये जो लोगों की जुबान पर चढ़े तो आज तक नहीं उतरे। जिसमें फिल्म सिलसिला का गीत रंग बरसे भींगे चुनरवाली, रंग बरसे., फिल्म मदर इंडिया का होली आई रे कन्हाई रंग बरसे.,कोहिनूर का तन रंग लो जी, मन रंग लो जी.फिल्म कटी पतंग का गाना आज न छोड़ेंगे बस हमजोली, खेलेंगे हम होली.. आज भी लोगों को जुबान पर है। कितु आज के बदलते परिवेश में संस्कारित होली गीतों के मस्ती के सागर में बेसिर पैर और अश्लीलता एवं फूहड़ता ऐसा फैल गया है, जिससे समाज काफी मर्माहत है। समाजसेवी सह युवा राजद जिला महासचिव प्रभात यादव ने कहा कि आधुनिकता का युवाओं पर बढ़ता प्रभाव चैती, बैसवारा, रंगपाल, डेढ़ताल व झूमर आदि गीतों को अब इतिहास के पन्नों में ढकेल दिया है। रंग में सराबोर होकर पूरे वर्ष के गिले शिकवे भूल ढोल मंजीरों के साथ टोली बनाकर एक-दूसरे के घर जाकर होली के एक सप्ताह पूर्व से ही फाग गीतों का गाना व नाचना अब सपना होता जा रहा है। गांव-गांव में ढोल मंजीरा के बीच चलता फगुआ रात के अंधेरे में हर कानों को काफी कर्ण प्रिय हुआ करता था, लेकिन नई पीढ़ी में इसकी अब कोई पूछ नहीं रही। होली आई रे कन्हाई होली आई रे, रंगों के दिन दिल खिल जाते हैं, रंगों से रंग मिल जाते हैं, रंग बरसे भीजे चुनर वाली आदि ने लोगों पर दशकों तक राज किया, लेकिन होली के दिन ढोल मंजीरों के साथ निकलने वाली टोली डीजे पर बजने वाले फूहड़ गीतों के बीच नाचते गाते चलने लगी है। पुराने फाग गीतों का पतन तो हुआ ही साथ ही इन अश्लील गीतों ने सामाजिक पतन भी कर दिया। नतीजतन व्यभिचार व भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया। पहले के फाग गीतों में मिठास के साथ साथ मौसम का उमंग भी होता था।


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