बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को बाधित करता है कृमि

जासं, सहरसा: बच्चों को कुपोषण सहित अन्य कई प्रकार की परेशानियों का एक कारण उनका कृमि संक्रमित होना है जिसके रोकथाम के लिए जिले में राष्ट्रीय कृमि मुक्ति कार्यक्रम चलाया जाएगा। एक वर्ष से 19 वर्ष तक के सभी बच्चों को अल्बेंडाजोल 400 मिलीग्राम की निश्चित खुराक खिलाई जाएगी। जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डा. कुमार विवेकानंद ने बताया कृमि ऐसे परजीवी हैं जो मनुष्य के आंत में रहता है। जिससे मानव शरीर आवश्यक पोषक तत्वों की कमी का शिकार हो जाता है और वे कई अन्य प्रकार की बीमारियों हो जाती है। खासकर बच्चों और किशोर एवं किशोरियों पर कृमि के कई दुष्प्रभाव पड़ते हैं। इससे मानसिक और शारीरिक विकास का बाधित हो सकता है। कृमि का संचरण चक्र संक्रमित बच्चे के खुले में शौच से आरंभ होता है। खुले में शौच करने से कृमि के अंडे मिट्टी में मिल जाती है और विकसित होती है। बच्चे जो नंगे पैर चलते हैं या गंदे हाथों से खाना खाते हैं या बिना ढ़के हुए भोजन का सेवन करते हैं आदि लार्वा के संपर्क में आकर संक्रमित हो जाते हैं। इसके लक्षणों में दस्त, पेट में दर्द, कमजोरी, उल्टी और भूख का न लगना आदि है। संक्रमित बच्चों में कृमि की मात्रा जितनी अधिक होगी उनमें उतने ही अधिक लक्षण परिलक्षित होते हैं। हल्के संक्रमण वाले बच्चों व किशोरों में आमतौर पर कोई लक्षण नहीं दिखाई पड़ते हैं।


----- कृमि नाशक गोलियों का सामुदायिक स्तर पर एक साथ सेवन जरूरी
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कृमिनाशक गोली अल्बेंडाजोल के सेवन की आवश्यकता पर बल देते हुए जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डा. कुमार ने बताया कृमिनाशक गोलियां अल्बेंडाजोल का साल में एक बार सेवन करने से बच्चों के शरीर पर किसी प्रकार के विपरीत परिणाम नहीं आते हैं। इसके सेवन से उनके शरीर में पल रहे कृमि नष्ट हो जाते हैं जिससे उनके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में विकास होता है। उनके स्वास्थ्य और पोषण में सुधार आता है जिससे उनके शारीरिक विकास के उचित लक्षण दिखाई देने लगते हैं। एनीमिया का शिकार होने से बच पाते हैं। यही नहीं एक साथ इस आयुवर्ग के बच्चों द्वारा कृमि नाशक गोलियों का सेवन किये जाने से सामुदायिक स्तर पर कृमि से किसी अन्य के संक्रमित हो जाने की संभावनाएं कम हो जाती है।

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