दो सालों से कोरोना की पीड़ा, इस बार हरेगा खीरा

संस, रूपौली (पूर्णिया)। प्रखंड में 2020 से ही कोरोना की मार झेल रहे यहां के किसानों की पीड़ा पर खीरा फसल मरहम लगाने वाली है । अभी खीरा 1400 रुपये की दर से खेतों में ही बिकने लगी है। यद्यपि अभी भरपूर फसल का उत्पादन अगले एक-दो सप्ताह बाद ही होने की उम्मीद की जा रही है ।

यह बता दें कि प्रखंड का तेलडीहा गांव सब्जी उत्पादन का हब बनता जा रहा है। इसके आसपास के गांवों गोड़ियर, शिशवा, तीनटंगा, हरनाहा, मेंहदी, धूसर आदि में भी इसकी खेती होती है। यहां के किसान अब प्राय: सब्जी की खेती की ओर अग्रसर होने लगे हैं, इसमें एक तो समय कम लगता है, दूसरी ओर लागत से कई गुणा ज्यादा आमदनी की उम्मीद रहती है। यद्यपि पिछले दो सालों से यहां के किसानों की फसलों की कोई कीमत नहीं मिली थी, जिससे किसान काफी परेशान दिख रहे थे । परंतु पिछले साल आयी बाढ़ ने यहां के किसानों की किस्मत खोल दी तथा सब्जी की फसल में भरपूर आमदनी हुई है ।
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एक बीघा खीरा उपजाने में किसानों को लगभग पचास हजार रुपये की लागत आती है। वर्तमान में जो खीरा की जो रेट चल रही है, अगर यह टीकी रही तो यहां के किसानों को तीन से साढे़ तीन लाख रुपये की आमदनी की संभावना है। आलू की खेती के बाद खीरे की फसल 60 से 70 दिनों के बीच तैयार होने लगती है, जो रामनवमी के समय में जोर पकड़ लेता है तथा यह मई माह के दूसरे सप्ताह तक रहता है । इसके बाद किसान इसी में कदू की फसल को लगा देते हैं, जो लगभग तीन माह में वह भी तैयार होकर बिक जाती है । फिर किसान इसी में करैला की फसल लगा देते हैं । इस तरह किसान अपनी चार फसलों को ले लेते हैं । परंतु सबसे बड़ा दुर्भाग्य इस क्षेत्र के लिए यह है कि यहां इन किसानों को किसानी का गुर सिखाने वाला कोई नहीं है । यहां के किसान सलाहकार या कृषि विभाग के कर्मी बस भगवान से मनाते हैं कि किसानों की फसल पर प्राकृतिक मार पडे़ तथा वे उसके मुआवजे के नाम पर भरपूर वसूली करें । शायद ही किसान सलाहकार किसी किसान के खेतों को देखें हों तथा उन्हें उन्नत खेती के गुर सिखाते हैं । कुल मिलाकर इस बार यहां के किसानों की पीड़ा खीरा हरने वाली है । काश अगर सरकार इसमें मदद करती, तो किसानों के लिए यह सोना में सुहागा जैसी बात होती ।

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