विलुप्त होने के कगार पर है कोसी की लोककला

संवाद सूत्र, सहरसा : कोसी क्षेत्र की लोक कलाएं संसाधन व उपेक्षा के अभाव में विलुप्त होता जा रहा है। कोसी की लोक विरासत, लोक संस्कृति के प्रति लोगों की आस्था कम होती जा रही है। इसका मुख्य कारण रंगकर्मियों व कलाकारों को मंच नहीं मिल पा रहा है। कोसी क्षेत्र की लोक संस्कृति व लोक आस्था के रूप में सामा चकेवा, जट जटिन, डोमकच्छ, भगैत गायन की परंपरा अब धीरे धीरे कम होता जा रहा है। जिले में कई सांस्कृतिक दल है। जिन्हें रंगमंचीय सुविधा नहीं मिल पाती है। रिहर्सल के लिए जगह नहीं मिलती है। जिस कारण रंगकर्मियों का भी लगाव इससे कम होता जा रहा है। जिला प्रशासन द्वारा आयोजित कार्यक्रमों सहित अन्य महोत्सवों में भी लोक संस्कृति की प्रस्तुति नहीं होती है। गांवों में भी अब लोक संगीत- नाटक की जगह आर्केष्ट्रा व जागरण का रूप ले लिया है।


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रिहर्सल के लिए नहीं मिलती जगह
शहर के सांस्कृतिक दलों को रिहर्सल करने के लिए भी जगह नहीं मिल पाती है। जिस कारण स्थानीय रंगकर्मियों की टीम नाटक की रिहर्सल नहीं कर पाते है। इधर दो वर्षों तक कोरोना काल में सारा कुछ बंद था। एक तो शहर में नाटक करने के लिए एक भी हाल की सुविधा कलाकारों व रंगकर्मियों को नहीं है। रंगकर्मी कुंदन कुमार वर्मा, विनय, उमेश, अमित सिंह, संजय सारथी, मुकेश, रमेश पासवान, अनिल कुमार ने कहा कि हर जिला में रंगकर्मियों को रिहर्सल करने के लिए कला भवन में जगह दी जाती है। लेकिन सहरसा में रंगकर्मियों को कार्यक्रम करने के लिए किराया पर कला भवन आवंटित की जाती है। रिहर्सल के अभाव में अच्छी प्रस्तुति नहीं हो पाती है।

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