भगवान ब्रह्मा के अवतार थे पंडित मंडन मिश्र : शंकराचार्य

संसू, महिषी (सहरसा) : पं. मंडन मिश्र का जन्म ही सनातन धर्म के सिद्धांत को स्थापित करने के लिए हुआ था। वो इस धरा पर ब्रह्मा के अवतार थे। उक्त बातें सोमवार को महिषी स्थित स्व. श्याम ठाकुर के ठाकुरबाड़ी प्रांगण में आयोजित संगोष्ठी कार्यक्रम के दौरान पूछे गए प्रश्न का उत्तर देने के दौरान गोवर्धन पीठाधीश्वर जगन्नाथ धाम के जगतगुरु शंकराचार्य निश्चलानन्द सरस्वती ने कही। मंडनधाम के विकास के संबंध में पूछे गए प्रश्न का जबाव देते हुए उन्होंने ग्रामीणों से कहा कि शासन से अपेक्षा न रखे पहले खुद से इस पवित्र स्थल के विकास की शुरूआत करें तो शासन से लेकर मठ तक सभी आपके विकास में सहयोग के लिए आने लगेगें।


इस दिव्य स्थल की उपेक्षा के लिए उन्होंने शासन को दोषी ठहराते हुए मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक उनके इस संदेश को पहुंचाने की बात कही। एक प्रश्न के जबाव में उन्होंने कहा कि मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच हुए शास्त्रार्थ की घटना प्रमाणिक है और मंडन मिश्र का ही संन्यासी नाम सुरेश्वाचार्य पड़ा वो इतने विख्यात हुए कि आज श्रृंगी मठ और द्वारिका मठ दोनों ये दावा करते हैं कि सुरेश्वराचार्य उनके मठ के प्रथम आचार्य थे। पं. मंडन मिश्र के जन्मस्थली के विकास नहीं हो पाने के लिए इस स्थल के प्रचार प्रसार में अपेक्षाकृत अभाव को भी एक कारण बताया। शंकराचार्य द्वारा चार मठों की स्थापना से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा कि चार वेद के लिए चार मठ की स्थापना की गयी थी । उन्होंने कहा कि औरों की दृष्टि में असंभव हो और जो इसे संभव बना देता है वहीं पुरूष इतिहास लिखता है। उन्होंने कहा कि सत्ता की लोलुपता के कारण ही समग्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना नहीं की जा सकी। धर्म और आध्यात्म से जुड़े पुर्नजन्म के सवाल के पर कहा कि अगर आप कर्म फल को मानते हैं तो पुर्नजन्म को भी मानना पड़ेगा। प्राब्ध कर्म फल के कारण ही जीवों के बीच अंतर होता है और सनातन धर्म में पुर्नजन्म को विभिन्न ग्रंथों में भी माना जाता है। जीवात्मा का कभी नाश नहीं होता। उन्होंने मंडन मिश्र पर अन्य प्रांत के दावे से संबंधित सवाल का जबाब देते हुए कहा कि मिथिलावासी कालीदास ,मंडनमिश्र ,विद्यापति को नहीं संभाल पाए इसलिए अन्य प्रांत वाले दावा करने लगे हैं। इसके लिए यहां के लोगों को ही आगे आना होगा तथा अपने धरोहर की रक्षा के लिए कदम बढ़ाना होगा। वहीं दरभंगा से आए एक श्रद्धालु ने शंकराचार्य को धन्यवाद करते हुए कहा कि शंकर मठ के आचार्य के रूप में मंडन मिश्र के बाद उन्होंने ही ये पद ग्रहण किया है इससे मिथिला के लोगों को उनसे काफी उम्मीदें हैं।

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