दहेज और बाल विवाह की रोकथाम के लिए सरिता का प्रयास अद्वितीय

नमो देव्यो

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- बाल मजदूरी के लिए भी निजी स्तर से कर रही प्रयास
- गांव गावं जाकर लोगों को कर रही जागरूक
फोटो- 06 जमुई- 35
संवाद सहयोगी, जमुई : दिल में कुछ कर गुजरने की ललक हो तो कोई भी अड़चन बढ़ते हुए कदमों को नहीं रोक सकती है। सरिता देवी ने अपने दम पर दहेज और बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई के प्रति लोगों को जागरूक करके ना केवल इस पर रोक लगाने का काम किया, बल्कि सर्वांगीण विकास के लिए कार्य करने वालों के लिए एक नजीर बन चुकी है।
वह बताती हैं कि वर्ष 1993 में माता पिता ने मेरी शादी बचपन में कर दी थी। जिसके कारण मैंने महिलाओं और युवतियों को बाल विवाह के कारण होने वाली परेशानियों को नजदीक से देखा और इसके खिलाफ समाज के लोगों को जागरूक कर रोक लगाने का फैसला लिया। सबसे पहले मैं ग्राम शिक्षा समिति की सदस्य बनी। इसके पश्चात मैंने बाल विवाह और दहेज प्रथा के उन्मूलन के लिए अनवरत रूप से लोगों को गांव गांव जाकर जागरूक करना शुरू किया। शुरुआती दौर में तो मुझे इस कार्य में लोगों का नहीं के बराबर सहयोग मिला और बहुत विरोध भी झेलना पड़ा। परिवार के लोगों ने भी सही तरीके से मेरे इस मुहिम में मेरा साथ नहीं दिया। लेकिन इन सबके बावजूद मेरा हौसला बुलंद होता चला गया और मैंने हर हाल में इस सामाजिक कुरीति को दूर करने का प्रण लिया। इस दौरान मैंने बाल मजदूरी पर रोक लगाने के लिए भी निजी स्तर से और अलग-अलग संस्थाओं से जुड़कर अभियान चलाती रही। धीरे-धीरे लोगों ने मेरे इस मुहिम को समझ कर समुचित सहयोग देना शुरू किया और इसके पश्चात मैंने महिलाओं की टोली बनाकर इस कार्य को अंजाम देना शुरू किया। समाज के सभी वर्ग के लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया। वर्तमान समय में मैं बाल कल्याण समिति लखीसराय में कार्यरत हूं और हर हमेशा यह प्रयास करती रहती हूं कि महिलाओं को उनके अधिकार और कर्तव्य के प्रति जागरूक करके आत्मनिर्भर बनाया जाए। ताकि वह भी समाज के लोगों के साथ कदम से कदम मिलाकर समुचित तरीके से अपना विकास कर सकें।

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