सदर थाना क्षेत्र का शहरी इलाका बना अपराधियों का साफ्ट टारगेट

जागरण संवाददाता, किशनगंज : शांतचित्त रहने वाला किशनगंज जिला अपराध, लूट व छिनतई जैसे आपराधिक घटनाओं की वजह से अब अशांत होता जा रहा है। बेलगाम अपराधी लगातार अपराधिक घटनाओं को अंजाम देकर लोगों के मन में असुरक्षा की भावना उत्पन्न कर दिये हैं। वहीं सदर पुलिस की कार्यशैली शहरवासियों की चिता और डर में और बढ़ोतरी कर दी है। सदर थाने से अगर अपराधिक वारदातों के परिणाम जानना चाहें तो, अपराध पर लगाम लगाने और आरोपितों को गिरफ्तार करने के मामले में पुलिस के हाथ ज्यादातर खाली ही रहे हैं। आलम है कि सदर थाना क्षेत्र का शहरी इलाका अपराधियों का साफ्ट टारगेट बन गया है। एक घटना को पुलिस सुलझा नहीं पाती कि अपराधी दूसरी घटना को अंजाम दे देते हैं।


अपराधियों की गिरफ्तारी नहीं होने से शहरी क्षेत्र में छिनतई, रुपये उड़ाने, लूट जैसी वारदात आम होते जा रहा है। अपराधी लोगों की गाढ़ी कमाई पर लगातार हाथ साफ कर रहे हैं। अपराधियों में पुलिस का कोई खौफ ही नहीं रह गया है। बुधवार को नगर परिषद कर्मी से शहर के बीचोबीच व्यस्ततम इलाके में 50 हजार रुपये की छिनतई होने से लोगों में घबराहट हो गई है। लोग रुपये लेकर घर या बैंक से निकलने में कतराने लगे हैं। इससे चार दिन पहले डे मार्केट के पास एक महिला से रुपये छिनतई का प्रयास किया गया था। इसमें रुपये छिनतई में अपराधी सफल तो नहीं हो पाए, लेकिन महिला ई-रिक्शा से गिरकर घायल हो गई थी। वहीं पिछले माह में दो अलग-अलग जगहों से मोटरसाइकिल की डिक्की से लाखों रुपये बदमाशों ने उड़ा लिये और धरमगंज में एक सीएसपी संचालक से लूट का प्रयास किया गया था। हालांकि लूट में सफल नहीं होने पर अपराधी गोलीबारी कर फरार हो गये। इन सभी मामले में अब तक अपराधियों की पहचान सदर थाना पुलिस के तेज तर्रार पदाधिकारी नहीं कर पाए हैं, और ना ही कोई कार्रवाई हो पाई है। ऐसे अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं और एक के बाद एक घटना को अंजाम दे रहे हैं। सीसीटीवी फुटेज भी नहीं आ रहा पुलिस के काम:: आपराधिक घटना के बाद सीसीटीवी में आए अपराधियों का फुटेज भी पुलिस के काम नहीं आ रहा है। सीसीटीवी में अपराधियों का करतूत कैद होने के बाद भी पुलिस का तकनीकी अनुसंधान सफल नहीं हो पाता है। पुलिस उस फुटेज को साक्ष्य के तौर पर बस अपने पास रखकर जांच जारी होने की बात कहते फिरती है। वहीं कई ऐसे पुलिस पदाधिकारी भी हैं, जो घटना के बाद अनुसंधानकर्ता बनाए जाने के बाद मामले को गंभीरता से नहीं लेते और शिथिल गति से जांच के नाम पर खानापूर्ति करते रहते हैं।

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